बिलासपुर: साल दर साल घटते मत्स्य उत्पादन पर चिंतित सरकार अब गोबिंद सागर की साइंटिफिक स्टडी करवाएगी. इसको लेकर सेंटर इनलैंड फिशरीज रिसर्च इंस्टीच्यूट सिफरी बैरकपुर कोलकाता के साथ करार हुआ है.
गोबिंदसागर की साइंटिफिक स्टडी
हालांकि, एक्सपर्ट टीम ने अक्टूबर अंत या नवंबर महीने में सर्वे के लिए हिमाचल आना था, लेकिन कोरोना संकट के कारण विकट हुई परिस्थितियों के सामान्य होने पर ही टीम आएगी और मत्स्य उत्पादन घटने के कारण जानने के साथ ही बढ़ोतरी को लेकर स्टडी रिपोर्ट भी सरकार को प्रेषित करेगी.
गोबिंदसागर में मत्स्य उत्पादन में कमी
इसी रिपोर्ट के आधार पर गोबिंद सागर झील में मत्स्य उत्पादन बढ़ोतरी के लिए कार्य योजना बनेगी. मत्स्य उत्पादन में औसतन देश भर में अग्रणी आंके जा चुके गोबिंदसागर में पिछले कुछ सालों से मत्स्य उत्पादन में कमी दर्ज की जा रही है. मत्स्य उत्पादन घटने का सीधा असर मत्स्य कारोबार पर पड़ा है और भविष्य के लिए मछुआरों की रोजी पर भी संकट खड़ा हुआ है.
क्या कहना है मत्सय वैज्ञानिकों का
मत्स्य विशेषज्ञों की मानें, तो कोलडैम लगने के बाद जलस्तर में हुई कमी की वजह से झील में मछली के ब्रीडिंग और फीडिंग ग्राउंड खत्म हो गए. इसके अलावा फोरलेन के निर्माण कार्य के दौरान झील में मलबा भी मत्सय उत्पादन का मुख्य कारम है. झील में मत्स्य उत्पादन में भारी गिरावट से चिंतित मत्स्य विभाग ने रिसर्च करवाने का निर्णय लिया है.
एक्सपर्ट टीम को टला दौरा
प्रबंधन से रिसर्च किए जाने के लिए मंजूरी मिल चुकी है और टीम ने अक्टूबर या नवंबर में हिमाचल दौरे पर आना था, लेकिन कोरोना संकट की वजह से एक्सपर्ट टीम का दौरा टल गया है, अब स्थिति सामान्य होने पर ही टीम स्टडी के लिए हिमाचल आएगी.
क्या कहते हैं मत्स्य निदेशालय बिलासपुर के निदेशक
मत्स्य निदेशालय बिलासपुर के निदेशक सतपाल मेहता ने बताया कि गोबिंदसागर में मत्स्य उत्पादन बढ़ाने को लेकर कोलकाता के विशेषज्ञ साइंटिफिक स्टडी करेंगे. इसको लेकर संस्थान की ओर से हरी झंडी मिल गई है. उस ओर से स्वीकृति पत्र जारी करने के साथ ही आश्वस्त भी किया गया था कि स्टडी के लिए टीम जल्द हिमाचल आएगी, लेकिन कोरोना के कारण उपजी परिस्थितियों के मद्देनजर यह स्टडी अब स्थिति सामान्य होने के बाद ही करवाई जाएगी.
सतपाल मेहता ने बताया कि रिसर्च रिपोर्ट के आधार पर ही झील में फिश प्रोडक्शन बढ़ाने के लिए अगली कार्ययोजना को अंतिम रूप दिया जाएगा. उन्होंने माना कि पिछले कुछ सालों से झील में मछली का उत्पादन कम हो रहा है. इसीलिए झील में 2017-18 से 70 से 100 एमएम साइज का मछली बीज डालना शुरू किया गया है, जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आने लगे हैं. इस बार अभी तक झील में 50 मीट्रिक टन मत्स्य उत्पादन हो चुका है और यह आंकड़ा सीजन खत्म होने तक 100 मीट्रिक टन पार कर जाने की संभावना है. इससे इस वर्ष झील में मछली का उत्पादन 400 मीट्रिक टन क्रॉस कर जाएगा।
इस बार 300 मीट्रिक टन जा पहुंचा उत्पादन
यदि आंकड़ों पर नजर डालें, तो वर्ष 2013-14 में गोबिंदसागर में 1492 मीट्रिक टन मत्स्य उत्पादन हुआ था. उसके बाद 2014-15 में यह घटकर 1061 मीट्रिक टन, 2015-16 में 858.8 मीट्रिक टन और 2016-17 में महज 753 मीट्रिक टन रह गया और अब स्थिति और अधिक विकट हो चुकी है. झील में मत्स्य उत्पादन घटते-घटते अब 300 मीट्रिक टन पर पहुंच चुका है.
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