हैदराबाद: यूं तो उत्तराखंड छोटा और पहाड़ी राज्य है. कहने को तो केवल 70 सीटों वाली विधानसभा है, परंतु मुख्यमंत्री के भाग्य का फैसला करने में अव्वल राज्य है, इसी का परिणाम है कि 2012 के बाद से निवर्तमान मुख्यमंत्री चुनाव नहीं जीतते हैं.
उत्तराखंड के इतिहास में मुख्यमंत्री के चुनाव हारने का ट्रेंड साल 2012 से निरंतर चला आ रहा है, क्या यह मिथक निवर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी तोड़ पाएंगे.
जैसा कि हम जानते हैं कि विधानसभा चुनाव 2012 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मेजर जनरल (रिटायर्ड) भुवनचंद्र खंडुडी कोटद्वार विधान सभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी सुरेंद्र सिंह नेगी से चुनाव हार गए थे, परिणामस्वरूप कांग्रेस 32 सीट जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी, उसके बाद काफी राजनीतिक उठा पटक हुआ था, अंततोगत्वा प्रदेश को विजय बहुगुणा के रूप में एक नया मुख्यमंत्री मिला था.
ठीक उसी तरह विधान सभा चुनाव 2017 में तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत स्वयं दो सीटों अर्थात हरिद्वार ग्रामीण ओर किच्छा से चुनावा लड़ा था, उनका उद्देश्य यह था कि वो यदि दोनों सीटों से चुनाव जीतते हैं तो एक सीट वह अपनी बेटी अनुपमा रावत के पक्ष में खाली करके उसे विधानसभा का सदस्य बनाएंगे. आश्चर्य की बात यह है कि हरीश रावत स्वयं को कुमाऊं का बड़ा नेता मानते थे इसीलिए उन्होंने दोनों गढ़वाल और कुमाऊं से चुनाव लड़ा था और दोनों सीट वह हार गए थे हालांकि वह दोनों सीटों अर्थात किच्छा से भाजपा प्रत्याशी राजेश शुक्ला से और हरिद्वार ग्रामीण से भाजपा प्रत्याशी स्वामी यतीश्वरानंद से चुनाव हार गए थे जिससे यह बात बलवती हो गई थी कि मुख्यमंत्री का मुख्यमंत्री के रूप में जीतना काफी मुश्किल है.
ठीक उसी की परछाईं विधान सभा चुनाव 2022 में देखने को मिल रही है जब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जो कि खटीमा विधानसभा सीट से तीसरी बार अपना लक आजमा रहे हैं. यदि वह जीतते हैं तो यह उनकी उस सीट से हैट्रिक होगी. हालांकि वर्तमान में वह कांग्रेस प्रत्याशी भुवन चंद्र कापड़ी से लगभग 1000 मतों से पीछे चल रहे हैं. यदि यही हाल रहा तो इस बात को मजबूत आधार मिलेगा कि मुख्यमंत्री के लिए उत्तराखंड से चुनाव जीतना बहुत ही मुश्किल है. हालांकि अभी नतीजे आने में काफी समय शेष है परंतु यह देखने वाली बात होगी कि मुख्यमंत्री अपनी सीट बचाने में सफल होते हैं या नहीं.