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बच्चों के स्वास्थ्य पर ई-कचरे का पड़ रहा खतरनाक प्रभाव

डब्ल्यूएचओ ने वैश्विक तौर पर दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे ई-कचरे पर अपनी एक रिपोर्ट पेश की है, जिसमें संगठन ने इस समस्या को बच्चों के लिए स्वास्थ्य के सबसे ज्यादा हानिकारक बताया है. इस कारण बच्चों में कई खतरनाक बीमारियों की संभावना जताई है.

ई-कचरा
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Published : Jun 20, 2021, 2:32 PM IST

हैदराबाद : विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वैश्विक तौर पर दिनों-दिन बढ़ता ई-कचरा (E-Waste) दुनियाभर के लाखों बच्चों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है. संगठन ने इस बाबत तत्काल कदम उठाने को कहा है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक नई ग्राउंडब्रेकिंग रिपोर्ट के अनुसार, बिजली और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के अनौपचारिक प्रसंस्करण के कारण दुनिया भर में लाखों बच्चों, किशोरों और गर्भवती माताओं का स्वास्थ्य खतरे में आ गया है और इनकी सुरक्षा के लिए प्रभावी और बाध्यकारी कार्रवाई की तत्काल आवश्यकता है.

ये भी पढ़ें : कोरोना वैक्सीनेशन में देश में अव्वल बना गुरुग्राम, 49 फीसदी लोगों को लग चुका है टीका

डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस अदनोम घेब्रेयेसस ने कहा, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के उत्पादन और निपटान की बढ़ती मात्रा के मद्देनजर अंतरराष्ट्रीय मंच ने इसे 'ई-कचरे' की सुनामी के रूप में वर्णित किया है, जो जीवन और स्वास्थ्य को खतरे में डाल रहा है.

रिपोर्ट के मुताबिक, अनौपचारिक कचरा क्षेत्र (Informal Waste Sector) में 12.9 मिलियन महिलाएं काम कर रही हैं, जो संभावित रूप से हानिकारक ई-कचरे के संपर्क में हैं, जिस कारण महिलाओं और उनके होने वाले बच्चों के लिए बड़ा खतरा पैदा हो रहा है.

इस बीच, 18 मिलियन से अधिक बच्चे और किशोर, जिनमें से कुछ 5 वर्ष से कम उम्र के हैं, अनौपचारिक औद्योगिक क्षेत्र में सक्रिय हैं.

मानव स्वास्थ्य पर ई-कचरे का प्रभाव

रिपोर्ट में मानव स्वास्थ्य पर ई-कचरे के प्रभाव के बारे में बताया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक, तांबे और सोने जैसी सामग्री के उप्तादन के लिए श्रमिकों को सीसा, पारा, निकेल, ब्रोमिनेटेड ज्वाला मंदक और पॉलीसाइक्लिक ऐरोमेटिक हाइड्रोकार्बन (पीएएचएस) सहित एक हजार से अधिक हानिकारक पदार्थों के संपर्क में आने का खतरा बना रहता है.

वहीं, मां बनने वाली महिलाओं के लिए ई-कचरा उनके और उनके होने वाले बच्चों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है. यहां तक कि कुछ मामलों में मृत बच्चा (Stillbirth) की समस्या, प्रीमैच्योर और शारीरिक रूप से बेहद कमजोर बच्चा पैदा होने की संभावना बनी रहती है.

बच्चों में हो सकती हैं ये बीमारियां

बच्चों में 'ध्यान अभाव सक्रियता विकार' (एडीएचडी) की समस्या भी आम हो गई है. एडीएचडी में बच्चे अत्यधिक गुस्सा, सामान्य बच्चों की तुलना में अलग व्यवहार और ध्यान की कमी के शिकार होने लगते हैं. साथ ही उनमें फेफड़ों में समस्या, सांस लेने में तकलीफ, डीएनए और थायरॉयड पर कुप्रभाव और लंबी व खतरनाक बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है, जैसे कि कैंसर और हृदय रोग.

रिपोर्ट की प्रमुख लेखक मैरी-नोएल ब्रुने ड्रिसे ने कहा, एक बच्चा जो एग्बोगब्लोशी (Agbogbloshie) (घाना में एक अपशिष्ट स्थल) से सिर्फ एक मुर्गी का अंडा खाता है, वह क्लोरीनयुक्त डाइऑक्सिन के सेवन के लिए यूरोपीय खाद्य सुरक्षा प्राधिकरण की दैनिक सीमा का 220 गुना अवशोषित करता है. उन्होंने इसका कारण अनुचित ई-कचरा प्रबंधन को बताया है.

तेजी से बढ़ रही समस्या

विश्व स्तर पर ई-कचरे की मात्रा तेजी से बढ़ रही है. ग्लोबल ई-वेस्ट स्टैटिस्टिक्स पार्टनरशिप (GESP) के अनुसार, 2019 तक पांच वर्षों में यह 21 फीसदी बढ़ा, जब 53.6 मिलियन मीट्रिक टन ई-कचरा उत्पन्न हुआ. बीते साल ई-कचरे का वजन 350 क्रूज जहाजों जितना था.

2019 में उत्पादित ई-कचरे का केवल 17.4 फीसदी ही औपचारिक प्रबंधन या पुनर्चक्रण हुआ. जीईएसपी (GESP) के नवीनतम अनुमानों के अनुसार, शेष ई-कचरे को अवैध रूप से कम या मध्यम आय वाले देशों में फेंक दिया गया, जहां अनौपचारिक श्रमिकों द्वारा इसका पुनर्नवीनीकरण किया गया.

ये भी पढ़ें : कोविशील्ड की दो डोज के बीच अंतराल का फैसला वैज्ञानिक प्रमाणों पर आधारित

बता दें, पर्यावरण की रक्षा और जलवायु उत्सर्जन को कम करने के लिए ई-कचरे का उचित संग्रह और पुनर्चक्रण बेहद आवश्यक है. जीईएसपी ने अपनी रिपोर्ट में पाया कि 17.4 फीसदी ई-कचरे का पुनर्नवीनीकरण करने से 15 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड को पर्यावरण में घुलने से रोक लिया गया.

हैदराबाद : विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वैश्विक तौर पर दिनों-दिन बढ़ता ई-कचरा (E-Waste) दुनियाभर के लाखों बच्चों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है. संगठन ने इस बाबत तत्काल कदम उठाने को कहा है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक नई ग्राउंडब्रेकिंग रिपोर्ट के अनुसार, बिजली और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के अनौपचारिक प्रसंस्करण के कारण दुनिया भर में लाखों बच्चों, किशोरों और गर्भवती माताओं का स्वास्थ्य खतरे में आ गया है और इनकी सुरक्षा के लिए प्रभावी और बाध्यकारी कार्रवाई की तत्काल आवश्यकता है.

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डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस अदनोम घेब्रेयेसस ने कहा, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के उत्पादन और निपटान की बढ़ती मात्रा के मद्देनजर अंतरराष्ट्रीय मंच ने इसे 'ई-कचरे' की सुनामी के रूप में वर्णित किया है, जो जीवन और स्वास्थ्य को खतरे में डाल रहा है.

रिपोर्ट के मुताबिक, अनौपचारिक कचरा क्षेत्र (Informal Waste Sector) में 12.9 मिलियन महिलाएं काम कर रही हैं, जो संभावित रूप से हानिकारक ई-कचरे के संपर्क में हैं, जिस कारण महिलाओं और उनके होने वाले बच्चों के लिए बड़ा खतरा पैदा हो रहा है.

इस बीच, 18 मिलियन से अधिक बच्चे और किशोर, जिनमें से कुछ 5 वर्ष से कम उम्र के हैं, अनौपचारिक औद्योगिक क्षेत्र में सक्रिय हैं.

मानव स्वास्थ्य पर ई-कचरे का प्रभाव

रिपोर्ट में मानव स्वास्थ्य पर ई-कचरे के प्रभाव के बारे में बताया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक, तांबे और सोने जैसी सामग्री के उप्तादन के लिए श्रमिकों को सीसा, पारा, निकेल, ब्रोमिनेटेड ज्वाला मंदक और पॉलीसाइक्लिक ऐरोमेटिक हाइड्रोकार्बन (पीएएचएस) सहित एक हजार से अधिक हानिकारक पदार्थों के संपर्क में आने का खतरा बना रहता है.

वहीं, मां बनने वाली महिलाओं के लिए ई-कचरा उनके और उनके होने वाले बच्चों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है. यहां तक कि कुछ मामलों में मृत बच्चा (Stillbirth) की समस्या, प्रीमैच्योर और शारीरिक रूप से बेहद कमजोर बच्चा पैदा होने की संभावना बनी रहती है.

बच्चों में हो सकती हैं ये बीमारियां

बच्चों में 'ध्यान अभाव सक्रियता विकार' (एडीएचडी) की समस्या भी आम हो गई है. एडीएचडी में बच्चे अत्यधिक गुस्सा, सामान्य बच्चों की तुलना में अलग व्यवहार और ध्यान की कमी के शिकार होने लगते हैं. साथ ही उनमें फेफड़ों में समस्या, सांस लेने में तकलीफ, डीएनए और थायरॉयड पर कुप्रभाव और लंबी व खतरनाक बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है, जैसे कि कैंसर और हृदय रोग.

रिपोर्ट की प्रमुख लेखक मैरी-नोएल ब्रुने ड्रिसे ने कहा, एक बच्चा जो एग्बोगब्लोशी (Agbogbloshie) (घाना में एक अपशिष्ट स्थल) से सिर्फ एक मुर्गी का अंडा खाता है, वह क्लोरीनयुक्त डाइऑक्सिन के सेवन के लिए यूरोपीय खाद्य सुरक्षा प्राधिकरण की दैनिक सीमा का 220 गुना अवशोषित करता है. उन्होंने इसका कारण अनुचित ई-कचरा प्रबंधन को बताया है.

तेजी से बढ़ रही समस्या

विश्व स्तर पर ई-कचरे की मात्रा तेजी से बढ़ रही है. ग्लोबल ई-वेस्ट स्टैटिस्टिक्स पार्टनरशिप (GESP) के अनुसार, 2019 तक पांच वर्षों में यह 21 फीसदी बढ़ा, जब 53.6 मिलियन मीट्रिक टन ई-कचरा उत्पन्न हुआ. बीते साल ई-कचरे का वजन 350 क्रूज जहाजों जितना था.

2019 में उत्पादित ई-कचरे का केवल 17.4 फीसदी ही औपचारिक प्रबंधन या पुनर्चक्रण हुआ. जीईएसपी (GESP) के नवीनतम अनुमानों के अनुसार, शेष ई-कचरे को अवैध रूप से कम या मध्यम आय वाले देशों में फेंक दिया गया, जहां अनौपचारिक श्रमिकों द्वारा इसका पुनर्नवीनीकरण किया गया.

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बता दें, पर्यावरण की रक्षा और जलवायु उत्सर्जन को कम करने के लिए ई-कचरे का उचित संग्रह और पुनर्चक्रण बेहद आवश्यक है. जीईएसपी ने अपनी रिपोर्ट में पाया कि 17.4 फीसदी ई-कचरे का पुनर्नवीनीकरण करने से 15 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड को पर्यावरण में घुलने से रोक लिया गया.

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