जयपुर. राजस्थान में साइबर क्राइम का ग्राफ बढ़ता (cyber crime in Rajasthan) जा रहा है. साइबर ठग हर दिन नए-नए तरीकों को अपनाकर लोगों को ठगी के जाल में फंसा रहे हैं. कई मामले तो ऐसे होते हैं कि ठगी का शिकार होने वाला व्यक्ति चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहा है. टेक्नोलॉजी के दौर में विभिन्न टेलीकॉम कंपनी यूजर को ई-सिम की सुविधा प्रदान कर रही हैं. ई-सिम यानी कि एंबेडेड सिम कार्ड को टेलीकॉम कंपनी से प्राप्त ओटीपी व अन्य डिटेल के आधार पर यूजर अपने मोबाइल में एक्टिवेट कर सकता है.
ई सिम की सुविधा में कई खामियां भी हैं जिसका फायदा उठाकर साइबर ठग लोगों को ठगी (cyber crime through e-sim) का शिकार बना रहे हैं. मोबाइल बनाने वाली कंपनियां डिवाइस में स्पेस को बचाने के लिए ई-सिम की सुविधा देती हैं. इसके साथ ही जितने भी वियरेबल डिवाइस मार्केट में मौजूद हैं. उन सब में भी बाय डिफॉल्ट कंपनी की ओर से ई-सिम की सुविधा प्रदान की जाती है. यूज़र किसी भी टेलीकॉम कंपनी से संपर्क कर उनसे यूजर आईडी और पासवर्ड प्राप्त कर अपने नंबर को उस डिवाइस में एक्टिवेट कर सकता है.
केस -1
साइबर ठगों ने एक सेवानिवृत्त एक्सईएन कृष्ण कुमार को अपना शिकार बनाते हुए सिम कार्ड बंद होने का झांसा देकर तकरीबन 66 लाख रुपए की ठगी की. ठगों ने पीड़ित को सिम कार्ड बंद होने का डर दिखाकर तमाम जानकारी हासिल की और पीड़ित के बैंक अकाउंट को अपने मोबाइल पर ऑपरेट करने लगे. इसकी भनक तक पीड़ित को नहीं लगी और धीरे-धीरे कर ठगों ने पीड़ित के बैंक खाते से उसकी पूरी जिंदगी की जमा पूंजी तकरीबन 66 लाख रूपए निकाल लिए.
केस -2
साइबर ठगों ने राजधानी के एक व्यापारी सुभाष शाह को ठगी का शिकार बनाते हुए 24 लाख रुपए की ठगी की वारदात को अंजाम दिया. ठगों ने नेटवर्क एरर सही करने का झांसा देकर पीड़ित से तमाम जानकारी हासिल की और पीड़ित के नाम से ई-सिम एक्टिवेट कर उसके नेट बैंकिंग का इस्तेमाल कर खाते से 24 लाख रुपए निकाल लिए. इस प्रकरण में पीड़ित को सिम कार्ड बंद होने तक की भनक नहीं लगी और जब उसे पता चला तब तक ठग अपना खेल कर चुके थे.
सिम रीएक्टिवेशन के जरिए बना रहे ठगी का शिकार: साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट आयुष भारद्वाज ने बताया कि जिन मोबाइल में केवल एक ही फिजिकल सिम डालने की सुविधा होती है, उसमें यदि यूजर अपनी दूसरी सिम एक्टिवेट करना चाहता है तो वह नेटवर्क प्रोवाइडर कंपनी से संपर्क कर ई-सिम की सुविधा एक्टिवेट करने की रिक्वेस्ट करता है. जिसके बाद उस यूजर की ईमेल आईडी पर सर्विस प्रोवाइडर कंपनी की ओर से ई-सिम की सुविधा एक्टिवेट करने के लिए एक क्यूआर कोड भेजा जाता है.
यूजर अपने मोबाइल की सिम सेटिंग में जाकर उसे स्कैन करता है और तब उसके मोबाइल पर उसका दूसरा नंबर ई-सिम (cyber crime through e-sim) के रूप में एक्टिवेट हो जाता है. साइबर ठग यूज़र को फोन करके उसकी ई-सिम के नेटवर्क और डाटा की स्पीड को तेज करने या अपग्रेड करने का झांसा देते हैं. ठग यूजर के मोबाइल पर एक मैसेज भेजते हैं और उस मैसेज को सर्विस प्रोवाइडर कंपनी के ऑफिशियल कस्टमर केयर नंबर पर मैसेज करने के लिए कहते हैं. क्योंकि मैसेज कंपनी के ही नंबर पर सेंड करना होता है, ऐसे में यूजर उसे कंपनी के नंबर पर अपने नेटवर्क को अपग्रेड करने के लिए भेज देता है. मैसेज में नंबर तो यूजर का ही होता है लेकिन ईमेल आईडी ठगों की होती है जो सर्विस प्रोवाइडर कंपनी के डोमेन से मिलती-जुलती होती है. जिस पर यूजर का ध्यान नहीं जाता है.
यूजर जैसे ही सर्विस प्रोवाइडर कंपनी के नंबर पर मैसेज करता है वैसे ही ठगों की ईमेल आईडी सर्विस प्रोवाइडर कंपनी अपने सिस्टम में अपडेट कर लेती है. इस पूरी प्रक्रिया को सिम रीएक्टिवेशन कहा जाता है. ईमेल आईडी को अपडेट करने के बाद सर्विस प्रोवाइडर कंपनी की ओर से यूजर को ई-सिम रीएक्टिवेट करने के लिए एक नया क्यूआर कोड मेल आईडी पर भेजा जाता है जो यूजर की मेल आईडी पर ना जाकर ठगों की मेल आईडी पर उन्हें प्राप्त होता है.
सामने आए ई सिम से ठगी के 40 मामले
यदि बात ई-सिम फ्रॉड की करें तो वर्ष 2022 के शुरुआती 4 महीनों में तकरीबन 40 मामले सामने आए हैं. जिसमें ठगों ने केवाईसी अपडेट करने के नाम पर, सिम को डीएक्टिवेट होने से बचाने के नाम पर, नेटवर्क एरर को सही करने के नाम पर और बढ़िया सर्विस प्रोवाइड करने के नाम पर यूजर से 20 हजार रुपए से लेकर 66 लाख रुपए तक की ठगी की है. वहीं कई मामले ऐसे भी हैं जिसमें यूजर की सतर्कता के चलते ठगी की वारदात को घटित होने से पहले ही टाल दिया गया या फिर ठगी गई राशि को ठगों के बैंक खातों में जाने से पहले फ्रिज करवा दिया गया.
ठग अपने मोबाइल में ई-सिम एक्टिवेट करने के बाद करते हैं ठगी: आयुष भारद्वाज ने बताया कि जैसे ही ठगों को उनकी मेल आईडी पर सर्विस प्रोवाइडर कंपनी की ओर से ई-सिम एक्टिवेट करने का क्यूआर कोड प्राप्त होता है उसे ठगों की ओर से अपने मोबाइल के ई-सिम मॉड्यूल में जाकर स्कैन कर लिया जाता है. इसके बाद यूजर की ई-सिम ठगों के मोबाइल पर एक्टिवेट हो जाती है और यूजर के मोबाइल पर ई-सिम की सुविधा बंद हो जाती है. यूज़र को इसकी भनक तक नहीं लगती और वह ई-सिम अपग्रेड होने की प्रक्रिया के तहत नेटवर्क चले जाने की बात सोचकर निश्चिंत हो जाता है. वहीं दूसरी ओर ठग यूजर के तमाम सोशल नेटवर्किंग अकाउंट, ऑनलाइन बैंकिंग अकाउंट, ऑनलाइन पेमेंट एप आदि के पासवर्ड यूजर के ई-सिम नंबर पर प्राप्त कर लेते हैं. जिसके बारे में यूजर को कुछ पता नहीं रहता और फिर उसके बाद ठग यूजर के तमाम बैंक खाते खाली कर देते हैं.
पढ़ें. सोशल मीडिया पर अश्लील वीडियो डालने वालों की हो रही मॉनिटरिंग, जोधपुर में एक गिरफ्तार
बचाव में करें यह उपाय
फोन कॉल और मैसेज पर न दें ध्यान: साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट आयुष भारद्वाज का कहना है कि ई-सिम फ्रॉड से बचने के लिए यूजर का सतर्क होना बेहद आवश्यक है. यूजर को यह ध्यान रखने की बेहद आवश्यकता है कि ई-सिम को अपग्रेड करने या नेटवर्क की बैंड को बढ़ाने के नाम पर आने वाले फोन कॉल को नजरअंदाज करें. साथ ही मोबाइल पर ई-सिम अपग्रेड के लिए आए हुए मैसेज पर गौर न करें और न ही उसे सर्विस प्रोवाइडर कंपनी के ऑफिशियल कस्टमर केयर नंबर पर सेंड करें. तमाम सर्विस प्रोवाइडर कंपनी के सिस्टम में यह बग देखा गया है की यूजर की ओर से मैसेज भेजते ही मैसेज में दी गई ईमेल आईडी अपने आप सर्विस प्रोवाइडर कंपनी के सिस्टम में अपडेट हो जाती है. उसके बाद साइबर ठग बिना वक्त गवाएं ठगी की वारदात को अंजाम देते हैं.
इस नंबर को न करें ई-सिम में अपडेटः साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट आयुष भारद्वाज का कहना है कि यूजर अपने वह मोबाइल नंबर जिनके माध्यम से वह नेट बैंकिंग करता है या अन्य ऑनलाइन पेमेंट अकाउंट ऑपरेट करता है उसे ई-सिम में अपडेट नहीं किया जाना चाहिए. ई-सिम का प्रयोग सुरक्षित नहीं होने के चलते यूजर के वह मोबाइल नंबर हमेशा साइबर ठगों के निशाने पर रहते हैं. इसके चलते यूजर की एक छोटी सी गलती उसको बहुत बड़ा आर्थिक नुकसान पहुंचा जाती है.