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दिल्ली सरकार ने प्रदूषण से निपटने के लिए 'वर्क फ्रॉम होम' का सुझाव दिया - air pollution delhi

दिल्ली सरकार ने एक शपथ पत्र में कहा, जीएनसीटीडी (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार) स्थानीय उत्सर्जन को काबू करने के लिए पूर्ण लॉकडाउन जैसे कदम उठाने के लिए तैयार है.. यदि इसे पूरे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में लागू किया जाता है.

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Published : Nov 16, 2021, 8:30 AM IST

Updated : Nov 16, 2021, 2:19 PM IST

नई दिल्ली : दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने मंगलवार को कहा कि वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग की बैठक में उनकी सरकार ने दिल्ली तथा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में ‘वर्क फ्रॉम होम’ नीति लागू करने और कुछ उद्योगों को बंद करने का सुझाव दिया.

शहर के प्रदूषण संकट से निपटने के लिए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने शनिवार को विद्यालयों को एक सप्ताह के लिए बंद करने, निर्माण गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने और सरकारी कर्मचारियों के लिए वर्क फ्रॉम होम सहित कई आपातकालीन उपायों की घोषणा की थी.

राय ने पत्रकारों से कहा कि दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) के दल सोमवार को कई स्थान पर पहुंचे और यह देखा कि उपायों को लागू किया गया है या नहीं. उन्होंने पाया कि निर्माण कार्य राके दिए गए हैं.

उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग को एक संयुक्त बैठक करने का निर्देश दिया था. मंगलवार को पंजाब, राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश राज्यों ने इस बैठक में हिस्सा लिया.

राय ने कहा, बैठक में, दिल्ली सरकार के अधिकारियों ने प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए दिल्ली तथा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में ‘वर्क फ्रॉम होम’ (डब्ल्यूएफएच) नीति लागू करने और उद्योगों को बंद करने का सुझाव दिया. अन्य राज्यों ने भी अपने विचार रखे, हमे आयोग की आधिकारिक अधिसूचना का इंतजार कर रहे हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने दिया था आपात बैठक बुलाने का निर्देश

न्यायालय ने इस बात पर गौर किया कि दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के वायु प्रदूषण में पराली जलाए जाने का योगदान मात्र 10 प्रतिशत है. न्यायालय ने केंद्र को प्रदूषण से निपटने के लिए मंगलवार को एक आपात बैठक बुलाने का निर्देश दिया.

न्यायालय ने निर्माण, उद्योग, परिवहन, ऊर्जा एवं वाहनों की आवाजाही को प्रदूषण के बड़े कारण बताया और केंद्र से कहा कि वह अनावश्यक गतिविधियों को रोकने और कर्मियों द्वारा घर से काम करने जैसे कदम उठाए.

प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा, ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग अधिनियम द्वारा कुछ निर्णय किए गए हैं, लेकिन इसने सटीक तरीके से यह नहीं बताया है कि वे वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार कारकों को नियंत्रित करने के लिए क्या कदम उठाने जा रहे हैं.

पीठ ने कहा, इसके मद्देनजर हम भारत सरकार को निर्देश देते हैं कि वह कल एक आपात बैठक बुलाए और हमने जिन क्षेत्रों की बात की है, उन पर चर्चा करे तथा यह देखे कि वह वायु प्रदूषण को प्रभावी तरीके से काबू करने के लिए क्या आदेश पारित कर सकती है.

पराली जलाया जाना प्रदूषण का बड़ा कारण नहीं

पीठ ने कहा, जहां तक पराली जलाए जाने की बात है, तो शपथपत्र व्यापक रूप से कहते हैं कि दो महीनों को छोड़ दिया जाए, तो उसका योगदान बहुत अधिक नहीं है. बहरहाल, इस समय हरियाणा और पंजाब में पराली जलाए जाने की घटनाएं बड़ी मात्रा में हो रही हैं.

पीठ ने केंद्र और एनसीआर राज्यों को कर्मियों से घर से काम कराने की समीक्षा करने को कहा.

केंद्र की पैरवी कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को उन कई कदमों की जानकारी दी, जिन पर केंद्र सरकार और दिल्ली, पंजाब एवं हरियाणा के सचिवों के साथ हुई आपात बैठक में विचार-विमर्श किया गया था.

पढ़ें : पराली को लेकर बिना किसी तथ्यात्मक आधार के हल्ला मचाया जा रहा : सुप्रीम काेर्ट

मेहता ने कहा, हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि पराली जलाया जाना प्रदूषण का बड़ा कारण नहीं है और वायु प्रदूषण में इसका योगदान मात्र 10 प्रतिशत है.

पीठ ने उनके इस प्रतिवेदन पर कहा, क्या आप इस बात से सहमत हैं कि पराली जलाया जाना मुख्य कारण नहीं है? इस हल्ले का कोई वैज्ञानिक या तथ्यात्मक आधार नहीं है.’’

कोर्ट की फटकार

शीर्ष अदालत ने केंद्र के शपथपत्र का जिक्र करते हुए कहा कि 75 प्रतिशत वायु प्रदूषण तीन कारणों-उद्योग, धूल और परिवहन के कारण है. पीठ ने कहा, इससे पहले (शनिवार को) हुई सुनवाई में हमने कहा था कि पराली जलाया जाना मुख्य कारण नहीं है, शहर संबंधी कारक भी इसके पीछे है, इसलिए यदि आप उनके संबंध में कदम उठाते हैं, तो स्थिति में सुधार होगा.’’

उसने कहा, अब असलियत सामने आ गई है कि चार्ट के अनुसार प्रदूषण में किसानों द्वारा पराली जलाए जाने का योगदान मात्र चार प्रतिशत है. यानी हम ऐसी चीज को निशाना बना रहे हैं, जिसका कोई महत्व ही नहीं है.

शीर्ष अदालत ने इससे पहले हुई आपात बैठक पर भी नाखुशी जताई और कहा, हमें एक कार्यकारी आपात बैठक इस प्रकार बुलाए जाने की अपेक्षा नहीं थी. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमें एजेंडा तय करना पड़ा है.

उसने कहा, गठित की गई समिति से पूछिए और फैसला कीजिए कि कल शाम (मंगलवार) तक कार्य योजना लागू कैसे करनी है.

नई दिल्ली : दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने मंगलवार को कहा कि वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग की बैठक में उनकी सरकार ने दिल्ली तथा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में ‘वर्क फ्रॉम होम’ नीति लागू करने और कुछ उद्योगों को बंद करने का सुझाव दिया.

शहर के प्रदूषण संकट से निपटने के लिए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने शनिवार को विद्यालयों को एक सप्ताह के लिए बंद करने, निर्माण गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने और सरकारी कर्मचारियों के लिए वर्क फ्रॉम होम सहित कई आपातकालीन उपायों की घोषणा की थी.

राय ने पत्रकारों से कहा कि दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) के दल सोमवार को कई स्थान पर पहुंचे और यह देखा कि उपायों को लागू किया गया है या नहीं. उन्होंने पाया कि निर्माण कार्य राके दिए गए हैं.

उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग को एक संयुक्त बैठक करने का निर्देश दिया था. मंगलवार को पंजाब, राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश राज्यों ने इस बैठक में हिस्सा लिया.

राय ने कहा, बैठक में, दिल्ली सरकार के अधिकारियों ने प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए दिल्ली तथा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में ‘वर्क फ्रॉम होम’ (डब्ल्यूएफएच) नीति लागू करने और उद्योगों को बंद करने का सुझाव दिया. अन्य राज्यों ने भी अपने विचार रखे, हमे आयोग की आधिकारिक अधिसूचना का इंतजार कर रहे हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने दिया था आपात बैठक बुलाने का निर्देश

न्यायालय ने इस बात पर गौर किया कि दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के वायु प्रदूषण में पराली जलाए जाने का योगदान मात्र 10 प्रतिशत है. न्यायालय ने केंद्र को प्रदूषण से निपटने के लिए मंगलवार को एक आपात बैठक बुलाने का निर्देश दिया.

न्यायालय ने निर्माण, उद्योग, परिवहन, ऊर्जा एवं वाहनों की आवाजाही को प्रदूषण के बड़े कारण बताया और केंद्र से कहा कि वह अनावश्यक गतिविधियों को रोकने और कर्मियों द्वारा घर से काम करने जैसे कदम उठाए.

प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा, ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग अधिनियम द्वारा कुछ निर्णय किए गए हैं, लेकिन इसने सटीक तरीके से यह नहीं बताया है कि वे वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार कारकों को नियंत्रित करने के लिए क्या कदम उठाने जा रहे हैं.

पीठ ने कहा, इसके मद्देनजर हम भारत सरकार को निर्देश देते हैं कि वह कल एक आपात बैठक बुलाए और हमने जिन क्षेत्रों की बात की है, उन पर चर्चा करे तथा यह देखे कि वह वायु प्रदूषण को प्रभावी तरीके से काबू करने के लिए क्या आदेश पारित कर सकती है.

पराली जलाया जाना प्रदूषण का बड़ा कारण नहीं

पीठ ने कहा, जहां तक पराली जलाए जाने की बात है, तो शपथपत्र व्यापक रूप से कहते हैं कि दो महीनों को छोड़ दिया जाए, तो उसका योगदान बहुत अधिक नहीं है. बहरहाल, इस समय हरियाणा और पंजाब में पराली जलाए जाने की घटनाएं बड़ी मात्रा में हो रही हैं.

पीठ ने केंद्र और एनसीआर राज्यों को कर्मियों से घर से काम कराने की समीक्षा करने को कहा.

केंद्र की पैरवी कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को उन कई कदमों की जानकारी दी, जिन पर केंद्र सरकार और दिल्ली, पंजाब एवं हरियाणा के सचिवों के साथ हुई आपात बैठक में विचार-विमर्श किया गया था.

पढ़ें : पराली को लेकर बिना किसी तथ्यात्मक आधार के हल्ला मचाया जा रहा : सुप्रीम काेर्ट

मेहता ने कहा, हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि पराली जलाया जाना प्रदूषण का बड़ा कारण नहीं है और वायु प्रदूषण में इसका योगदान मात्र 10 प्रतिशत है.

पीठ ने उनके इस प्रतिवेदन पर कहा, क्या आप इस बात से सहमत हैं कि पराली जलाया जाना मुख्य कारण नहीं है? इस हल्ले का कोई वैज्ञानिक या तथ्यात्मक आधार नहीं है.’’

कोर्ट की फटकार

शीर्ष अदालत ने केंद्र के शपथपत्र का जिक्र करते हुए कहा कि 75 प्रतिशत वायु प्रदूषण तीन कारणों-उद्योग, धूल और परिवहन के कारण है. पीठ ने कहा, इससे पहले (शनिवार को) हुई सुनवाई में हमने कहा था कि पराली जलाया जाना मुख्य कारण नहीं है, शहर संबंधी कारक भी इसके पीछे है, इसलिए यदि आप उनके संबंध में कदम उठाते हैं, तो स्थिति में सुधार होगा.’’

उसने कहा, अब असलियत सामने आ गई है कि चार्ट के अनुसार प्रदूषण में किसानों द्वारा पराली जलाए जाने का योगदान मात्र चार प्रतिशत है. यानी हम ऐसी चीज को निशाना बना रहे हैं, जिसका कोई महत्व ही नहीं है.

शीर्ष अदालत ने इससे पहले हुई आपात बैठक पर भी नाखुशी जताई और कहा, हमें एक कार्यकारी आपात बैठक इस प्रकार बुलाए जाने की अपेक्षा नहीं थी. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमें एजेंडा तय करना पड़ा है.

उसने कहा, गठित की गई समिति से पूछिए और फैसला कीजिए कि कल शाम (मंगलवार) तक कार्य योजना लागू कैसे करनी है.

Last Updated : Nov 16, 2021, 2:19 PM IST
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