यमुनानगर: फाइनेंस कंपनी के कर्मचारी मनोज कुमार को आत्महत्या के लिए मजबूर करने के मामले में सुसाइड नोट के अलावा अन्य ठोस सबूत साबित नहीं हो पाए. मृतक ने जिन लोगों के साथ लेनदेन की बात लिखी वो बैंक और कॉल डिटेल में साबित नहीं हो पाई. जिला एवं सत्र न्यायधीश दीपक अग्रवाल की कोर्ट ने करनाल के सेक्टर-14 निवासी तनूज मदान और हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी करनाल निवासी विशाल राणा को बरी कर दिया.
दरअसल, फाइनेंस कंपनी के कर्मचारी विष्णु नगर कॉलोनी निवासी मनोज कुमार ने 20 सितंबर 2017 को घर में फंदा लगाकर सुसाइड कर लिया था. फर्कपुर पुलिस को दी शिकायत में मृतक के ससुर मुल्खराज ने फाइनेंस कंपनी के मैनेजर तनुज मदान, विशाल राणा और तत्कालीन जगाधरी एसएचओ को जिम्मेदार ठहराया था. सुसाइड नोट में नाम होने के बावजूद पुलिस ने जांच में तत्कालीन एसएचओ का नाम निकाल दिया.
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तनुज और विशाल को आरोपित बनाया गया. परिजनों ने कंपनी के अधिकारियों पर करीब 20 लाख रुपये की रिकवरी न किए जाने पर उस पर दबाव बनाने और शहर जगाधरी एसएचओ द्वारा केस दर्ज करने की धमकी देने का आरोप लगाया था.
पुलिस को जांच के दौरान तकिये के नीचे से सुसाइड नोट मिला था, जिसमें फाइनेंस कंपनी के मैनेजर तनुज मदान, विशाल राणा और तत्कालीन शहर जगाधरी एसएचओ को मौत का जिम्मेदार ठहराया गया. सुसाइड नोट के मुताबिक तनुज मदान पैसे नहीं दे रहा और जगाधरी एसएचओ से झूठे केस में फंसाने की धमकी दिलवाने के बारे में लिखा था.
एडवोकेट डीएस खुराना ने बताया कि सुसाइड नोट में पैसों के लेन देन की बात तो लिखी थी, लेकिन उस पर लेने देने की कोई तारीख अंकित नहीं थी. सुसाइड नोट की हैंड राइटिग के संदर्भ में भी कोई पक्का सबूत पेश नहीं हो पाया.
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