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नूंह में सोशल मीडिया पर ईद की नो शॉपिंग कैंपन, जानें क्या हैं इसके मायने

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Published : May 22, 2020, 6:29 PM IST

नूंह में इस बार लॉकडाउन की वजह से ईद पर बाजारों की रौनक फीकी दिख रही है. नूंह के युवाओं ने गरीबों की मदद हो सके, इसको लेकर सोशल मीडिया पर ईद पर नो शॉपिंग कैंपेन की शुरुआत की है.

no shopping campaign in nuh
नूंह में नो शॉपिंग कैंपेन

नूंह: ईद उल फितर के त्यौहार के अवसर नूंह जिले में इन दिनों सोशल मीडिया पर 'ईद पर नो शॉपिंग' का प्रचार काफी चल रहा है. लोग इस प्रचार की काफी सराहना कर रहे हैं. इस तरह का प्रचार युवा चला रहे हैं. युवाओं का मानना है कि शॉपिंग करने से कुछ हासिल नहीं होता है. शॉपिंग की फिजूलखर्जी में पैसे खर्च करने की बजाय लॉकडाउन मजदूर, गरीबों, यतीम और बेसहारा लोगों की मदद की जाए.

ईद पर नो शॉपिंग कैंपेन का मकसद

लॉकडाउन की वजह से बड़ी संख्या में लोगों के रोजगार चले गए हैं. लोगों के खाने तक के लाले पड़ गए हैं. ऐसे में इन युवाओं के इस कैंपेन का मकसद है कि शॉपिंग में फिजूलखर्ची ना कर, लोगों की मदद की जाए.

देश के आगे आई इस संकट की घड़ी में सभी को एक साथ खड़े होकर सरकार और लोगों की हर संभव मदद करनी चाहिए. इस दौरान मीडिया से बात करते हुए बड़ा मदरसा नूंह के संचालक मुफ्ती जाहिद हुसैन ने कहा कि…

इस्लाम धर्म यही सिखाता है कि गरीबों, बेसहारा लोगों की मदद करें. चाहे वो इंसान किसी धर्म या बिरादरी से संबंध रखता हो. कोरोना महामारी से लोग इस बार परेशान हैं. बहुत से लोगों के रोजगार बीमारी की वजह से छिन गए हैं. उनके सामने भूखे मरने की नौबत आ गई है. कपड़े तो हमारे पास पहले भी बहुत हैं. अक्सर शॉपिंग नए कपड़ों की जाती है, लेकिन हर बार की तरह इस बार नए कपड़े बनने की जरूरत नहीं है.

ये भी पढे़ं:-लॉकडाउन 4: गुरुग्राम में खुली दुकानें, बाजारों में दिखी रौनक

गरीबों को या उनके बच्चों को ऐसा सामान दें, जिससे उन लोगों को खुशी मिले. वे किसी प्रकार से भी दुखी ना हों. इस बार अन्य बीते ईद के त्यौहार से ज्यादा गरीबों का खयाल रखने की जरूरत है.

खासतौर से उन लोगों की, जो रोज कमाते और रोज खाते थे. ऐसे लोग काफी परेशान हैं. ईद की नमाज से पहले ऐसे लोगों की पहचान कर लें और शॉपिंग में फिजूलखर्ची के बजाय, उस धनराशि से ऐसे गरीब लोगों की मदद करें.

नूंह: ईद उल फितर के त्यौहार के अवसर नूंह जिले में इन दिनों सोशल मीडिया पर 'ईद पर नो शॉपिंग' का प्रचार काफी चल रहा है. लोग इस प्रचार की काफी सराहना कर रहे हैं. इस तरह का प्रचार युवा चला रहे हैं. युवाओं का मानना है कि शॉपिंग करने से कुछ हासिल नहीं होता है. शॉपिंग की फिजूलखर्जी में पैसे खर्च करने की बजाय लॉकडाउन मजदूर, गरीबों, यतीम और बेसहारा लोगों की मदद की जाए.

ईद पर नो शॉपिंग कैंपेन का मकसद

लॉकडाउन की वजह से बड़ी संख्या में लोगों के रोजगार चले गए हैं. लोगों के खाने तक के लाले पड़ गए हैं. ऐसे में इन युवाओं के इस कैंपेन का मकसद है कि शॉपिंग में फिजूलखर्ची ना कर, लोगों की मदद की जाए.

देश के आगे आई इस संकट की घड़ी में सभी को एक साथ खड़े होकर सरकार और लोगों की हर संभव मदद करनी चाहिए. इस दौरान मीडिया से बात करते हुए बड़ा मदरसा नूंह के संचालक मुफ्ती जाहिद हुसैन ने कहा कि…

इस्लाम धर्म यही सिखाता है कि गरीबों, बेसहारा लोगों की मदद करें. चाहे वो इंसान किसी धर्म या बिरादरी से संबंध रखता हो. कोरोना महामारी से लोग इस बार परेशान हैं. बहुत से लोगों के रोजगार बीमारी की वजह से छिन गए हैं. उनके सामने भूखे मरने की नौबत आ गई है. कपड़े तो हमारे पास पहले भी बहुत हैं. अक्सर शॉपिंग नए कपड़ों की जाती है, लेकिन हर बार की तरह इस बार नए कपड़े बनने की जरूरत नहीं है.

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गरीबों को या उनके बच्चों को ऐसा सामान दें, जिससे उन लोगों को खुशी मिले. वे किसी प्रकार से भी दुखी ना हों. इस बार अन्य बीते ईद के त्यौहार से ज्यादा गरीबों का खयाल रखने की जरूरत है.

खासतौर से उन लोगों की, जो रोज कमाते और रोज खाते थे. ऐसे लोग काफी परेशान हैं. ईद की नमाज से पहले ऐसे लोगों की पहचान कर लें और शॉपिंग में फिजूलखर्ची के बजाय, उस धनराशि से ऐसे गरीब लोगों की मदद करें.

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