ETV Bharat / state

बरोदा में पसीना बहा चुके हैं बीजेपी के दिग्गज लेकिन आज तक नहीं मिली जीत, जानिए क्यों - बरोदा विधानसभा बीजेपी हार

सत्तासीन गठबंधन के उम्मीदवार योगेश्वर अगर यहां जीतते हैं तो बीजेपी-जेजेपी आने वाले वक्त में इसे अपने काम पर मुहर के रूप में दिखाएगी. इसके अलावा तीन नए कृषि कानूनों के समर्थन के रूप में भी सत्ताधारी पार्टी इसे पेश करेगी.

report on according to history how difficult and how important is the baroda seat for bjp
इतिहास बताता है कि बीजेपी के लिए बरोदा सीट कितनी है मुश्किल और कितनी है जरूरी
author img

By

Published : Oct 16, 2020, 7:09 PM IST

बरोदा: विधायक श्रीकृष्ण हुड्डा के निधन के बाद प्रदेश की बरोदा विधानसभा सीट पर 03 नवंबर को उपचुनाव होने वाला है. एक तरफ जहां बरोदा की जनता को एक बार फिर अपना प्रतिनिधी चुनने का मौका मिला है, वहीं दूसरी तरफ राजनैतिक पार्टियों को भी एक सीट की बढ़त हासिल करने का मौका हाथ लगा है, हालांकि इस सीट पर हार जीत से प्रदेश की राजनीति में कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला है, लेकिन सत्ताधारी पार्टी बीजेपी बरोदा में किसी भी तरफ जीत हासिल करना चाहती है, क्योंकि आज तक बीजेपी ने बरोदा सीट पर जीत का स्वाद नहीं चखा है, इस रिपोर्ट में हम आपको बताएंगे कि आखिर वो कौन सी वजह थी जिस वजह से आज तक बीजेपी हार का सामना करती रही और आज क्या खास बदलाव आने वाला है.

बता दें कि हरियाणा में बीजेपी ने 2014 में स्पष्ट बहुमत और 2019 में जननायक जनता पार्टी (जजपा) से गठबंधन करके सरकार बनाई. दोनों ही बार विधानसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के गढ़ बरोदा हलका में भाजपा की दाल नहीं गल पाई थी. बरोदा के चुनाव में एक बार भाजपा के दिग्गजों में पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष (वर्तमान में देश के गृहमंत्री) अमित शाह और दूसरी बार मुख्यमंत्री मनोहर लाल पार्टी के प्रत्याशियों के चुनाव प्रचार के लिए आए थे, लेकिन वे उनकी नैया पार नहीं लगा पाए थे.

report on according to history how difficult and how important is the baroda seat for bjp
बलजीत सिंह मलिक, बीजेपी के 2014 विधानसभा में बरोदा के उम्मीदवार

मोदी लहर में भी नहीं लगी नैया पार

चलिए हम साल 2014 से आपको बताते हैं. बीजेपी की बरोदा में क्या स्थिति रही है इस बात का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि मई, 2014 में लोकसभा चुनाव में केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद हरियाणा में भी पार्टी को काफी मजबूती मिली थी. अक्टूबर, 2014 में हरियाणा विधानसभा के चुनाव हुए थे. बीजेपी ने स्पष्ट बहुमत से प्रदेश में सरकार भी बनाई थी. इस चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के गढ़ बरोदा हलका में सेंधमारी के लिए भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह पार्टी के प्रत्याशी गठवाला खाप के दादा बलजीत सिंह मलिक के चुनाव प्रचार के लिए आए थे. शाह ने 5 अक्टूबर, 2014 को गांव बरोदा में मलिक के समर्थन में चुनावी सभा को संबोधित किया था. शाह भी मलिक की नैया को पार नहीं लगा पाए थे और उन्हें बुरी हार का सामना करना पड़ा था. मलिक को इस चुनाव में 8698 वोट मिले थे और तीसरे स्थान पर रहे थे.

2019 में भी नहीं चख पाई जीत का स्वाद

बीजेपी ने 2019 को 75 प्लस का नारा देकर विधानसभा चुनाव लड़ा था. इस चुनाव में भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री हुड्डा के गढ़ में फिर से सेंधमारी करने के लिए ओलंपिक पदक विजेता योगेश्वर दत्त को मैदान में उतारा. योगेश्वर राजनीति में नए थे लेकिन पहचान बड़ी थी. अक्टूबर, 2019 में मुख्यमंत्री मनोहर लाल प्रत्याशी दत्त के चुनाव प्रचार के लिए और बरोदा में उन्होंने जनसभा की. मुख्यमंत्री भी दत्त की नैया को पार नहीं लगा पाए. 2019 में पहलवान योगेश्वर दत्त हार गए थे. हालांकि उन्होंने पूर्व के बीजेपी प्रत्याशियों से कहीं ज्यादा 37726 वोट हासिल किए थे.

report on according to history how difficult and how important is the baroda seat for bjp
2019 चुनाव में कांग्रेस के पूर्व सीएम के साथ चुनाव प्रचार करते हुए स्व. विधायक श्रीकृष्ण हुड्डा.

बीजेपी के लिए बरोदा जीत के मायने ?

सत्तासीन गठबंधन के उम्मीदवार योगेश्वर अगर यहां जीतते हैं तो बीजेपी-जेजेपी आने वाले वक्त में इसे अपने काम पर मुहर के रूप में दिखाएगी. इसके अलावा तीन नए कृषि कानूनों के समर्थन के रूप में भी सत्ताधारी पार्टी इसे पेश करेगी. वहीं योगेश्वर दत्त एक ब्राह्मण हैं जिसे बीजेपी ने बरोदा से उतारा है, इस स्ट्रैटजी से बीजेपी गैर-जाट की राजनीति की छवि को भी पेश करना चाहती है.

क्या इस बार योगेश्वर दत्त लहराएंगे झंडा

गुरुवार की देर रात हरियाणा की बरोदा विधानसभा सीट के उपचुनाव का टिकट घोषित कर दिया. पार्टी ने एक बार फिर पहलवान योगेश्वर दत्त पर भरोसा जताया है. बीजेपी ने इस जाट बहुल इस सीट से ब्राह्मण को चुनाव मैदान में उतार कर फिर एक बड़ा संदेश भी दिया है.

report on according to history how difficult and how important is the baroda seat for bjp
ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए बीजेपी के उम्मीदवार पहलवान योगेश्वर दत्त.

क्या है जातिगत समीकरण?

  • कुल वोट- 1,78,250 वोट
  • जाट- 94000 मतदाता
  • ब्राह्मण- 21,000 मतदाता
  • एससी- 29,000 मतदाता
  • ओबीसी- 25,000 मतदाता

ये राजनीति की स्याह सच्चाई है!

वैसे तो हमारे देश की राजनीतिक पार्टियां मंचों से ये दावे करती हैं कि वो जातिगत या धार्मिक राजनीति नहीं करती, यही हमारे लोकतंत्र की नीति भी कहती है, लेकिन ये एक कड़वी सच्चाई है कि दुनिया की सबसे बड़ी जम्हूरी रियासत में हर टिकट जातिगत समीकरण देखकर दिया जाता है, पिछले चुनाव में कांग्रेस और जेजेपी ने जाट उम्मीदवार मैदान में उतारा तो यहां से बीजेपी ने ब्राह्मण उम्मीदवार को टिकट दिया, लेकिन फिर भी जीत हुई कांग्रेस उम्मीदवरा की, मतलब अगर आपकी जाति के वोटर किसी सीट पर कम हैं तो आप कितने भी बड़े नेता हो कोई मायने नहीं रखता. यही बरोदा पर भी लागू होता है! जातिगत समीकरण प्रबल होने की वजह से इस विधानसभा सीट पर जाट उम्मीदवार को मजबूत दावेदार बना देती है. यही वजह है कि एक वक्त में इस सीट पर देवीलाल का दबदबा रहा और उनके बाद अब भूपेंद्र सिंह हुड्डा का प्रभाव इस सीट पर सबसे ज्यादा है.

report on accordreport on according to history how difficult and how important is the baroda seat for bjping to history how difficult and how important is the baroda seat for bjp
बरोदा में बीजेपी की सीधी बात रैली.

2009 से पहले जब ये सीट आरक्षित थी तब भी वही उम्मीदवार यहां से जीता जिसे उस वक्त के बड़े जाट नेता देवीलाल का आशीर्वाद मिला, और परिसीमन के बाद और सीट सामान्य होने पर वो उम्मीदवार जीता जिसे दूसरे बड़े जाट नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा का समर्थन मिला.

report on according to history how difficult and how important is the baroda seat for bjp
बरोदा उपचुनाव का पूरा कार्यक्रम

ये भी पढ़ेंः गोहाना: 'जलेब गैल चर्चा' अभियान के जरिए बीजेपी की होगी बरोदा पर नजर

बरोदा: विधायक श्रीकृष्ण हुड्डा के निधन के बाद प्रदेश की बरोदा विधानसभा सीट पर 03 नवंबर को उपचुनाव होने वाला है. एक तरफ जहां बरोदा की जनता को एक बार फिर अपना प्रतिनिधी चुनने का मौका मिला है, वहीं दूसरी तरफ राजनैतिक पार्टियों को भी एक सीट की बढ़त हासिल करने का मौका हाथ लगा है, हालांकि इस सीट पर हार जीत से प्रदेश की राजनीति में कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला है, लेकिन सत्ताधारी पार्टी बीजेपी बरोदा में किसी भी तरफ जीत हासिल करना चाहती है, क्योंकि आज तक बीजेपी ने बरोदा सीट पर जीत का स्वाद नहीं चखा है, इस रिपोर्ट में हम आपको बताएंगे कि आखिर वो कौन सी वजह थी जिस वजह से आज तक बीजेपी हार का सामना करती रही और आज क्या खास बदलाव आने वाला है.

बता दें कि हरियाणा में बीजेपी ने 2014 में स्पष्ट बहुमत और 2019 में जननायक जनता पार्टी (जजपा) से गठबंधन करके सरकार बनाई. दोनों ही बार विधानसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के गढ़ बरोदा हलका में भाजपा की दाल नहीं गल पाई थी. बरोदा के चुनाव में एक बार भाजपा के दिग्गजों में पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष (वर्तमान में देश के गृहमंत्री) अमित शाह और दूसरी बार मुख्यमंत्री मनोहर लाल पार्टी के प्रत्याशियों के चुनाव प्रचार के लिए आए थे, लेकिन वे उनकी नैया पार नहीं लगा पाए थे.

report on according to history how difficult and how important is the baroda seat for bjp
बलजीत सिंह मलिक, बीजेपी के 2014 विधानसभा में बरोदा के उम्मीदवार

मोदी लहर में भी नहीं लगी नैया पार

चलिए हम साल 2014 से आपको बताते हैं. बीजेपी की बरोदा में क्या स्थिति रही है इस बात का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि मई, 2014 में लोकसभा चुनाव में केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद हरियाणा में भी पार्टी को काफी मजबूती मिली थी. अक्टूबर, 2014 में हरियाणा विधानसभा के चुनाव हुए थे. बीजेपी ने स्पष्ट बहुमत से प्रदेश में सरकार भी बनाई थी. इस चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के गढ़ बरोदा हलका में सेंधमारी के लिए भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह पार्टी के प्रत्याशी गठवाला खाप के दादा बलजीत सिंह मलिक के चुनाव प्रचार के लिए आए थे. शाह ने 5 अक्टूबर, 2014 को गांव बरोदा में मलिक के समर्थन में चुनावी सभा को संबोधित किया था. शाह भी मलिक की नैया को पार नहीं लगा पाए थे और उन्हें बुरी हार का सामना करना पड़ा था. मलिक को इस चुनाव में 8698 वोट मिले थे और तीसरे स्थान पर रहे थे.

2019 में भी नहीं चख पाई जीत का स्वाद

बीजेपी ने 2019 को 75 प्लस का नारा देकर विधानसभा चुनाव लड़ा था. इस चुनाव में भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री हुड्डा के गढ़ में फिर से सेंधमारी करने के लिए ओलंपिक पदक विजेता योगेश्वर दत्त को मैदान में उतारा. योगेश्वर राजनीति में नए थे लेकिन पहचान बड़ी थी. अक्टूबर, 2019 में मुख्यमंत्री मनोहर लाल प्रत्याशी दत्त के चुनाव प्रचार के लिए और बरोदा में उन्होंने जनसभा की. मुख्यमंत्री भी दत्त की नैया को पार नहीं लगा पाए. 2019 में पहलवान योगेश्वर दत्त हार गए थे. हालांकि उन्होंने पूर्व के बीजेपी प्रत्याशियों से कहीं ज्यादा 37726 वोट हासिल किए थे.

report on according to history how difficult and how important is the baroda seat for bjp
2019 चुनाव में कांग्रेस के पूर्व सीएम के साथ चुनाव प्रचार करते हुए स्व. विधायक श्रीकृष्ण हुड्डा.

बीजेपी के लिए बरोदा जीत के मायने ?

सत्तासीन गठबंधन के उम्मीदवार योगेश्वर अगर यहां जीतते हैं तो बीजेपी-जेजेपी आने वाले वक्त में इसे अपने काम पर मुहर के रूप में दिखाएगी. इसके अलावा तीन नए कृषि कानूनों के समर्थन के रूप में भी सत्ताधारी पार्टी इसे पेश करेगी. वहीं योगेश्वर दत्त एक ब्राह्मण हैं जिसे बीजेपी ने बरोदा से उतारा है, इस स्ट्रैटजी से बीजेपी गैर-जाट की राजनीति की छवि को भी पेश करना चाहती है.

क्या इस बार योगेश्वर दत्त लहराएंगे झंडा

गुरुवार की देर रात हरियाणा की बरोदा विधानसभा सीट के उपचुनाव का टिकट घोषित कर दिया. पार्टी ने एक बार फिर पहलवान योगेश्वर दत्त पर भरोसा जताया है. बीजेपी ने इस जाट बहुल इस सीट से ब्राह्मण को चुनाव मैदान में उतार कर फिर एक बड़ा संदेश भी दिया है.

report on according to history how difficult and how important is the baroda seat for bjp
ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए बीजेपी के उम्मीदवार पहलवान योगेश्वर दत्त.

क्या है जातिगत समीकरण?

  • कुल वोट- 1,78,250 वोट
  • जाट- 94000 मतदाता
  • ब्राह्मण- 21,000 मतदाता
  • एससी- 29,000 मतदाता
  • ओबीसी- 25,000 मतदाता

ये राजनीति की स्याह सच्चाई है!

वैसे तो हमारे देश की राजनीतिक पार्टियां मंचों से ये दावे करती हैं कि वो जातिगत या धार्मिक राजनीति नहीं करती, यही हमारे लोकतंत्र की नीति भी कहती है, लेकिन ये एक कड़वी सच्चाई है कि दुनिया की सबसे बड़ी जम्हूरी रियासत में हर टिकट जातिगत समीकरण देखकर दिया जाता है, पिछले चुनाव में कांग्रेस और जेजेपी ने जाट उम्मीदवार मैदान में उतारा तो यहां से बीजेपी ने ब्राह्मण उम्मीदवार को टिकट दिया, लेकिन फिर भी जीत हुई कांग्रेस उम्मीदवरा की, मतलब अगर आपकी जाति के वोटर किसी सीट पर कम हैं तो आप कितने भी बड़े नेता हो कोई मायने नहीं रखता. यही बरोदा पर भी लागू होता है! जातिगत समीकरण प्रबल होने की वजह से इस विधानसभा सीट पर जाट उम्मीदवार को मजबूत दावेदार बना देती है. यही वजह है कि एक वक्त में इस सीट पर देवीलाल का दबदबा रहा और उनके बाद अब भूपेंद्र सिंह हुड्डा का प्रभाव इस सीट पर सबसे ज्यादा है.

report on accordreport on according to history how difficult and how important is the baroda seat for bjping to history how difficult and how important is the baroda seat for bjp
बरोदा में बीजेपी की सीधी बात रैली.

2009 से पहले जब ये सीट आरक्षित थी तब भी वही उम्मीदवार यहां से जीता जिसे उस वक्त के बड़े जाट नेता देवीलाल का आशीर्वाद मिला, और परिसीमन के बाद और सीट सामान्य होने पर वो उम्मीदवार जीता जिसे दूसरे बड़े जाट नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा का समर्थन मिला.

report on according to history how difficult and how important is the baroda seat for bjp
बरोदा उपचुनाव का पूरा कार्यक्रम

ये भी पढ़ेंः गोहाना: 'जलेब गैल चर्चा' अभियान के जरिए बीजेपी की होगी बरोदा पर नजर

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.