सोनीपत: लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस पार्टी टिकट पर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के चुनाव मैदान में उतरने से अब यह प्रदेश की हॉट सीट बन गई है. उनका मुकाबला बीजेपी के मौजुदा सांसद रमेश कौशिक के बीच रहने की प्रबल संभावना है. इसके अलावा जेजेपा, आप के यूवा उम्मीदवार दिगविजय सिंह चौटाला और इनेलो से सुरेन्द्र छिक्कारा भी दोनो उम्मीदवारों को टक्कर देने के लिए पूरा जारे लगा रहे हैं.
रोहतक से 4 बार सांसद रहे हैं हुड्डा
रोहतक-सोनीपत हुड्डा परिवार की पुरानी सीट रही है. हरियाणा बनने से पहले ओल्ड रोहतक (रोहतक व सोनीपत) से भूपेंद्र हुड्डा के पिता एवं संविधान निर्मात्री सभा के सदस्य रहे चौ. रणबीर ङ्क्षसह 1957 में चुनाव लड़ चुके हैं. खास बात है कि वर्ष 2005 में मुख्यमंत्री बनने से पहले रोहतक से भूपेंद्र हुड्डा 4 बार सांसद रहचुके हैं. वे पहली बार 1996 में रोहतक से सांसद चुने गए थे. इसके बाद 1998, 1999 व 2004 में सांसद बने. रोहतक को हुड्डा की खानदानी सीट माना जाता रहा है, क्योंकि उनके बाद यहां से उनके बेटे दीपेंद्र हुड्डा लगातार 2 बार सांसद चुने जा चुके हैं.
सोनीपत में भी है हुड्डा का प्रभाव
वहीं, सोनीपत को ओल्ड रोहतक का हिस्सा मानते हुए हुड्डा के प्रभाव वाला क्षेत्र माना जाता है. हरियाणा का मुख्यमंत्री चुने जाने के बाद से सोनीपत में हुड्डा प्रभाव काफी बढ़ा है, जिसका उदाहरण 2009 के चुनाव में देखने को मिला और हुड्डा ने अपने समर्थक जितेंद्र मलिक को यहां से सांसद बनवाया. हालांकि, अगले ही चुनाव में पासा पलट गया और बीजेपी से रमेश कौशिक सांसदचुने गए.
मंझे हुए राजनीतिज्ञ माने जाते हैं रमेश कौशिक
हरियाणा में राजनीति के मौसम वैज्ञानिक के रूप में राव इंद्रजीत के बाद रमेश कौशिक का नाम आता है. कौशिक राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी माने जाते हैं. उनकी मजबूती का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि कांग्रेस को रमेश कौशिक के खिलाफ अपना सबसे मजबूत नेता मैदान में उतारना पड़ा. ऐसा माना जा रहा था कि भूपेंद्र हुड्डा के अलावा यदि कांग्रेस से कोई स्थानीय नेता मैदान में उतरता तो रमेश कौशिक के सामने नहीं ठहर पाता.
जींद उप-चुनाव में दूसरे स्थान पर रहे थे दिग्विजय
सोनीपत लोकसभा सीट से जे.जे.पी. ने इनसो के राष्ट्रीय अध्यक्ष दिग्विजय सिंह चौटाला को मैदान में उतारा है. खास बात यह है कि जींद उपचुनाव में दिग्विजय कांग्रेस के दिग्गज रणदीप सुरजेवाला को पछाड़ते हुए 38 हजार वोट लेकर दूसरे स्थान पर रहे थे, जबकि इस चुनाव में जीत बीजेपी प्रत्याशी कृष्ण मिढ्ढा को मिलीथी. दिग्विजय का यह प्रदर्शन काफी चॢचत रहा था क्योंकि पार्टी गठन के 40 दिन के भीतर दिग्विजय मैदान में उतर गए थे. उस समय तक पार्टी को सिंबल तक नहीं मिला था.
युवाओं में लोकप्रिय माने जाते हैं दिग्विजय
हरियाणा में छात्र संघ के चुनाव सबसे बड़ा मुद्दा रहा और छात्रों की इस मांग को लेकर दिग्विजय सिंह चौटाला ने प्रदेश भर में एक साल तक आंदोलन चलाया. वे इकलौते छात्र नेता थे जिन्होंने प्रदेश के हर कॉलेज और विश्वविद्यालय में जाकर छात्रों की आवाज को बुलंद किया. पिछले वर्ष वे प्रदेश के कालेज व विश्विद्यालयों में छात्र संघ के चुनावों की मांग को लेकर हिसार के गुरू जंभेश्वर विश्वविद्यालय में पांच दिनों तक आमरण अनशन पर बैठे.
हुड्डा-दिग्विजय के आमने-सामने, वोटर कंफ्यूज!
बड़े-बड़े दिग्गजो् को पटखनी देने वाला सोनीपत संसदीय क्षेत्र में जिले की 6 विधानसभा के साथ जींद की तीन विधानसभा भी शामिल हैं. सोनीपत के राई, गन्नौर, खरखोदा, सोनीपत, गोहाना, बरोदा तो जींद की जींद, सफीदों जुलाना विधानसभा क्षेत्र को मिलाकर ही सोनीपत लोकसभा संसदीय क्षेत्र बना है. जाटलैंड रोहतक के बाद सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा सोनीपत में ही है. दो बार को छोड़कर अब तक यहां जाट ही सांसद बने हैं, लेकिन जब चुनाव जातीय बने हैं तब यहां एक बार अरविन्द शर्मा और दूसरी बार रमेश कौशिक जीते हैं.
इस बार भी चुनाव पूरी तरह जातीय समीकरणों में उलझ गया है. कौशिक के सामने पहले हुड्डा और फिर दिग्विजय आने से जाट वोट बंटने को कौशिक को फायदा पहुंचने की चर्चाएं यहां जोरों पर हैं, हालांकि हुड्डा ग्रुप इसकी काट निकालने में जुटा है. वहीं दिग्विजय को लोग हुड्डा के लिए बड़ा खतरा मान रहे हैं. नौ की नौ विधानसभा क्षेत्र में सैंकड़ो लोगों से बात करने के बाद यह सामने आया है कि सोनीपत में इस बार चुनावजातीय समीकरणों में तो बंटेगा ही साथ में मोदी फैक्टर भी यहां काम कर रहा है. बुजुर्ग जहां जातिगत समीकरण की बात कर रहे हैं वहीं युवाओं के दिलों में मोदी बैठे दिखाई दे रहे है.
कौन-सा उम्मीदवार क्यों है खास ?
- भूपेंद्र सिंह हुड्डा: राज्य में दो बार मुख्यमंत्री रहे कांग्रेस के हैवीवेट कैंडीडेट 72 वर्षीय पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा मैदान में हैं. हुड्डा के जवाब में जजपा-आप गठबंधन ने भी दिग्विजय चौटाला को मुकाबले में उतारा है. दिग्विजय के परदादा देवीलाल भी इस सीट से दो बार चुनाव लाडे और 1980 में जीते भी थे.
- दिग्विजय सिंह चौटाला: दिग्विजय ने जींद उपचुनाव में हार के बावजूद अपने शानदार प्रदर्शन से काफी प्रभावित किया था. अब समीकरण बेहद दिलचस्प हो चले हैं, क्योंकि बीजेपी के ब्राह्मण कार्ड के जवाब में इनेलो के बाद कांग्रेस और जेजेपी ने भी जाट प्रत्याशियों पर भरोसा जताया.
- रमेश चंद्र कौशिक: पिछले लोकसभा चुनाव में जाटलैंड सोनीपत से रमेश कौशिक 70 हजार से ज्यादा मतों से जीते थे. सांसद बनने से पहले कौशिक बंसीलाल सरकार में मंत्री तो हुड्डा सरकार में संसदीय सचिव रहे हैं. हालात कैसे बदल जाते हैं इसका उदाहरण भी देखने तो मिलेगा, क्योंकि एक समय रमेश कौशिक हुड्ड सरकार में संसदीय सचिव थे और हुड्डा बेहद करीबी माने जाते थे, जबकि अब वही रमेश कौशिक सोनीपत लोकसभा सीट पर हुड्डा सामने होंगे.
- सतीश राज देशवाल: एक अन्य जाट उम्मीदवार सतीश राज देशवाल ने निर्दलीय के तौर भी नामांकन किया है.वहीं, लोसुपा-बसपा की तरफ से राजबाला एकमात्र महिला उम्मीदवार के रूप में मैदान संभाल चुकी हैं. दो बड़े चेहरों व एक वर्तमान सांसद के मैदान में होने से सोनीपत अब हॉट सीट बन चुकी है.
पॉलिटिकली स्ट्रॉन्ग रहा है सोनीपत!
राजनीतिक दृष्टिकोण से भी सोनीपत संसदीय सीट हमेशा से ही महत्वपूर्ण रही है. यहां से बीजेपी से केवल किशनसिंह सांगवान ही ऐसे सांसद रहे हैं जो कि लगातार तीन बार सांसद रह चुके हैं. 12वीं, 13वीं और 14वीं लोकसभा के लिए सोनीपत में किशन सिंह सांगवान को जीताकर भेजा था. पिछले चुनावों की बात करें तो 2014 में बीजेपी की टिकट पर रमेश कौशिक ने 3.77 लाख वोट हासिल किये थे, दूसरे नम्बर 2.69 लाख कांग्रेस के जगबीर मलिक रहे थे, तीसरे नम्बर पर इनेलो के पदम सिंह दहिया ने 2.64 हजार वोट हासिल किये थे.
इमरजेंसी के बाद पहली बार हुए थे चुनाव
इस सीट पर पहली बार इमरजेंसी के बाद 1977 में हुए चुनाव में सोनीपत से भारतीय लोकदल के उम्मीदवार मुख्तियार सिंह मलिक ने बाजी मारी थी, जबकि 1980 में हुए मध्यावधि चुनाव में देवीलाल जीत दर्ज की, लेकिन 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए चुनाव में सहानुभूति के तौर पर जनताने कांग्रेस का साथ दिया और धर्मपाल मलिक ने चौधरी देवीलाल को हरा दिया.
सांसद और विधायक एक ही पार्टी के होते हैं!
सोनीपत लोकसभा का ट्रेंड विधानसभा के साथ-साथ बदलता है. उदाहरण के तौर पर सोनीपत के लगभग सभी 6 विधानसभा में कांग्रेस का अच्छा-खासा प्रभाव है. जींद में अब बीजेपी और जुलाना में इनेलो के विधायक हैं. सफीदों में निर्दलीय जीते थे, लेकिन अब बीजेपी के साथ हैं. लोकसभा चुनावों में सीधा टक्कर की बात करें तो सोनीपत, राई, गन्नौर, गोहाना, बरोदा और खरखोदा में लोगों का मानना है कि सीधी टक्कर तो बीजेपी और कांग्रेस के बीच है. हुड्डा के आने से कांग्रेस हावी तो हुई है लेकिन मोदी अभी भी एक फैक्टर है.
दो बार कविता जैन रही हैं विधायक
सोनीपत विधानसभा में जहां लगातार दो बार से बीजेपी की टिकट पर चुनाव कविता जैन विधायक बनी हैं. इस बार लोकसभा में सोनीपत से बीजेपी उम्मीदवार को जितना उनके और उनके पति राजीव जैन के कंधों पर है. हालांकि सोनीपत शहर में पंजाबी वोटस अधिक हैं, इसलिए मुख्यमंत्री मनोहर लाल का फैक्टर भीसाथ-साथ चल रहा है. इसी तरह की चर्चाएं पूरे शहर में चल रही हैं, लेकिन युवाओं का मानना कुछ ओर है.
कांग्रेस हर बार बदल देती है उम्मीदवार
सोनीपत लोकसभा सीट पर हर चुनाव में कांग्रेस ने एक नए उम्मीदवार को उतार देती है. यानी पुराने उम्मीदवार को दोबारा इस सीट से मौका नहीं मिलता है, 2014 में जगबीर मलिक को टिकट दिया गया था, इससे पहले 2009 में जितेंद्र मलिक को टिकट मिला था, जबकि 2004 में धर्मपाल मलिक को उम्मीदवार बनादिया गया, 1999 में चिरंजी लाल शर्मा को मैदान में उतारा, 1998 में बलबीर सिंह को कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बनाया.
सांसद का रिपोर्ट कार्ड
सोनीपत से बीजेपी के सांसद रमेश चंद्र कौशिक की संसद में मौजूदा कार्यकाल में उपस्थिति 100 फीसदी रही. उन्होंने 2014 से लेकर दिसंबर 2018 तक लोकसभा में 16 डिबेट में हिस्सा लिया. इस कार्यकाल दौरान उन्होंने एक प्राइवेट मेंबर बिल भी प्रस्तुत किया. वहीं बीजेपी सांसद ने लोकसभा में 5 वर्षों के दौरान कुल 161 सवाल पूछे.
ऐसा है सामाजिक ताना-बाना
सोनीपत लोकसभा सीट 1977 से पहले अस्तित्व में नहीं थी. इससे पहले यह क्षेत्र रोहतक लोकसभा सीट का ही हिस्सा थी. सोनीपत लोकसभा सीट जाटों के प्रभाव के अनुपात से हरियाणा में से दूसरे नंबर की सीट है, लेकिन यहां से दो बार गैर जाट ब्राहण उम्मीदवार भी बाजी मार चुके हैं. सोनीपत लोकसभा में कुल15.82 मतदाताओं में से सबसे ज्यादा 5.30 लाख जाट वोटर्स हैं और ब्राह्मण वोटर्स की संख्या 2 लाख है.
सोनीपत लोकसभा में अभी तक 11 बार चुनाव हुए हैं. जिसमें 9 बार जाट उम्मीदवार जीत हासिल की है जबकि दो बार गैट जाट उम्मीदवार को कामयाबी मिली है. पहली बार 1996 में अरविंद शर्मा सोनीपत से निर्दलीय चुनाव लड़े थे और जीत हासिल की थी जबकि दूसरी बार 2014 में गैर जाट उम्मीदवार रमेश चंद्र कौशिक जीते.
पहली बार मलिक और दहिया इग्नोर!
दिलचस्प बात यह भी है कि पहली बार सोनीपत से मुख्य राजनीतिक पार्टियों ने दहिया या मलिक उम्मीदवार मैदान में नहीं उतारा है. अब तक बीजेपी, कांग्रेस या इनेलो में से किसी एक पार्टी का उम्मीदवार दहिया या मलिक जरूर होता था. यह बात अलग है कि हर बार दहिया या मलिक गोत्र के उम्मीदवार सांसद नहीं बने, लेकिन यह कहा जा सकता है कि ज्यादातर बार इन्हीं गोत्रों का दबदबा रहा है. सोनीपत के पहले सांसद जहां मुखत्यार सिंह मलिक थे तो वहीं, अभय राम दहिया से लेकर पदम सिंह दहिया तक दहिया गोत्र का कोई उम्मीदवार भले ही सांसद नहीं बन पाया, लेकिन दूसरे या तीसरे स्थान पर जरूर रहे.
मुखत्यार सिंह मलिकके बाद धर्मपाल मलिक व जितेंद्र मलिक सांसद बने. सोनीपत में मलिकों व दहिया के कुल गांव 70 के करीब हैं. वर्तमान लोकसभा चुनावों में सोनीपत से बीजेपी के रमेश कौशिक के अलावा कांग्रेस भूपेंद्र हुड्डा, जजपा के दिग्विजय सिंह चौटाला, इनेलो के सुरेंद्र छिक्कारा व निर्दलीय सतीशराज देशवाल मैदान में हैं, जिनमें से कोई भी दहिया या मलिक नहीं है. हां, यह बात जरूर है कि भूपेंद्र हुड्डा की पत्नी आशा हुड्डा दहिया गोत्र से हैं और वे सोनीपत में खरखौदा के मटिंडू गांव से है.
कुल वोटर | 15,82,667 |
जाट | 5,30,000 |
ब्राह्मण | 2,00,000 |
पंजाबी | 1,15,000 |
वैश्य | 85,000 |
वाल्मीकि | 65,000 |
सैनी | 65,000 |
सोनीपत संसदीय सीट में जाट समाज के मतदाताओं की संख्या 5 लाख 30 हजार है. दूसरे नम्बर पर ब्राह्मण समाज है. विशेषतौर दहिया, मलिक और यमुना किनारे के हिस्से में अंतिल जिले के बड़े गौत्र हैं. वहीं जींद के विधानसभा क्षेत्र में मलिक और दहिया ही बड़ा गौत्र है.
झींंवर | 36,000 |
कुम्हार | 31,000 |
अन्य पिछड़ी जाति | 29,000 |
खाती | 27,000 |
राजपूत | 25,000 |
नाई | 25,000 |
बैरागी | 23,000 |
लुहार | 22,000 |
सिख/जट सिख | 16,000 |
मुस्लिम | 14,000 |
त्यागी | 12,000 |
दर्जी | 9000 |
अहीर | 88,000 |
रोड | 9000 |
अन्य जनरल | 6000 |
अन्य अनुसूचित जाति | 10,000 |
सुनार | 5000 |
पढ़ें सोनीपत का राजनीति इतिहास
1977 में सोनीपत लोकसभा क्षेत्र के अस्तित्व में आने के बाद से अब तक बीजेपी के किशन सिंह सांगवान ही ऐसे सांसद रहे हैं जिन्होंने हैट्रिक बनाई है. उनके अलावा कोई भी प्रत्याशी लगातार दो बार सांसद नहीं बन पाया. हालांकि, कांग्रेस के धर्मपाल मलिक दो बार सांसद चुने गए लेकिन लगातार नहीं. खास बात यह हैकि 1980 में सोनीपत के सांसद बने ताऊ देवीलाल भी सफलता को जारी नहीं रख पाए और यहां से उन्हें अगले ही चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा. उससे भी दिलचस्प बात यह है कि सोनीपत के पहले ही लोकसभा चुनाव में यहां के पहले सांसद चुने गए भारतीय लोकदल पार्टी के प्रत्याशी मुखत्यार सिंह के मत प्रतिशतका रिकार्ड भी 40 साल के इतिहास में कोई नहीं तोड़ पाया. मुखत्यार सिंह ने करीब 81 प्रतिशत मत हासिल करते हुए विरोधियों को औंधे मुंह गिराया था. उनके बाद किशन सिंह सांगवान ही हैं, जिन्होंने करीब 70 प्रतिशत मत अपने दूसरे चुनाव में हासिल किए थे.
आंकड़ों में सोनीपत लोकसभा क्षेत्र का इतिहास बेहद दिलचस्प रहा है. हवा के विपरित मिजाज के सोनीपत को किशन सिंह सांगवान ऐसे मन भाए कि उन्हें लगातार 3 बार सांसद बना दिया. यह बेहद गौर करने लायक है कि जिस दौरान किशन सिंह सांगवान सोनीपत से सांसद रहे, उस दौरान राज्य में किसी और लोकसभासे बीजेपी का कोई भी सांसद नहीं रहा. या यूं कह सकते हैं किसी दौर में हरियाणा में बीजेपी की लुटिया डूबने से बचाने वाले एकमात्र किशन सिंह सांगवान ही थे.
11 बार उम्मीदवार बनीं महिलाएं, 1 बार ही बची जमानत
सोनीपत में 1977 में पहली बार ही मुकाबले में महिला प्रत्याशी मैदान में उतरी थी और दूसरे नम्बर पर रही थी, हालांकि, उनकी जमानत नहीं बच पाई थी. भारतीय लोकदल पार्टी के मुखत्यार ङ्क्षसह की टक्कर में कांग्रेस की सुभाषिनी मैदान में उतरीं लेकिन उन्हें मात्र 15 प्रतिशत ही मतों से संतोष करना पड़ा. इसके बादमहिलाएं मैदान में यदा कदा ही दिखाई दी. 1977 के बाद सीधे 1991 के लोकसभा चुनाव में दो महिला चुनाव लडऩे के लिए मैदान में आई, लेकिन दोनों को ही फजीहत का सामना करना पड़ा.
1991 में चुनाव लडऩे वाली महेंद्र कौर और पुष्पा को 2.70 व 0.49 प्रतिशत मत ही मिले. 1996 के लोकसभा चुनाव में एक बारफिर से एक महिला ने किस्मत आजमानी चाही, लेकिन नतीजा वही रहा. बिमला कौर को 1.23 प्रतिशत मतों से ही संतोष करना पड़ा. 1998 में निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर केलावती मैदान आई, लेकिन मत मिले केवल 0.04 प्रतिशत. हां, 2004 के लोकसभा चुनाव में कृष्णा मलिक ने बेहतरीन प्रदर्शन और 26.98 प्रतिशतमत लेकर जमानत बचाने में कामयाब रही.
लोकसभा चुनाव | जीत | हार | जीतने वाले का मत |
---|---|---|---|
1977 | मुखत्यार सिंह (बी.एल.डी.) | सुभाषिनी (कांग्रेस) | 80 प्रतिशत |
1980 | देवीलाल (जे.एन.पी.(एस.) | रणधीर सिंह (कांग्रेस) | 54.89 प्रतिशत |
1984 | धर्मपाल मलिक (कांग्रेस) | देवीलाल (लोकदल) | 48.54 प्रतिशत |
1989 | कपिल देव शास्त्री(जद) | धर्मपाल मलिक (कांग्रेस) | 50.95 प्रतिशत |
1991 | धर्मपाल मलिक (बीजपी) | कपिल देव शास्त्री(जपा) | 42.08 प्रतिशत |
1996 | अरविंद शर्मा (निर्दलीय) | रिजक राम (एसएपी) | 33.07 प्रतिशत |
1998 | किशन सिंह सांगवान(एचएलडीआर) | अभय राम दहिया (एचवीपी) | 41.94 प्रतिशत |
1999 | किशन सिंह सांगवान (बीजेपी) | चिरंजी लाल (कांग्रेस) | 69.83 प्रतिशत |
2004 | किशन सिंह सांगवान (बीजेपी) | धर्मपाल मलिक (कांग्रेस) | 31.67 प्रतिशत |
2009 | जितेंद्र मलिक (कांग्रेस) | कृष्ण सिंह सांगवान (बीजेपी) | 47.57 प्रतिशत |
2014 | रमेश कौशिक(बीजेपी) | जगबीर मलिक (कांग्रेस) | 35.03 प्रतिशत |
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सोनीपत का इतिहास महाभारत से काल जुड़ा हुआ है. सोनीपत का नाम पहले सोनप्रस्थ (स्वर्णप्रस्थ) था, महाभारत के दौरान ये उन गांवों में से एक था जो पांडवों ने अपना राज्य हस्तिनापुर बनाने के लिए मांगे थे. साल 1972 में सोनीपत जिला बनाए सोनीपत पहले रोहतक जिले की तहसील हुआ करती थी, यहां की 83 प्रतिशत हिस्से में खेती होती है, सोनीपत देश के साइकिल निर्माण के लिए जाना जाता है, इतिहास के तौर पर सोनीपत में अब्दुल नसीरुद्दीन की मस्जिद, ख़्वाजा खिज्र का मक़बरा और पुराना किला खास आकर्षण काकेंद्र है.