सिरसा: हरियाणा के सिरसा जिले के गांव जोधकां में पैदा हुई सविता पूनिया का आज जन्मदिन हैं. वो आज तीस साल की हो गई हैं. सविता पूनिया हरियाणा की उन महान महिलाओं में से एक हैं जिन्होंने अपने हुनर के बदौलत ये साबित किया कि लोगों की सोच कितनी भी गिरी क्यों ना हो, अगर सपने ऊंचे हैं तो हमें उड़ान भरने से कोई नहीं रोक सकता है.
150 इंटरनेशनल मैचों में अपने जबरदस्त प्रदर्शन की बदौलत इनका नाम दुनिया की टॉप महिला हॉकी गोलकीपर्स की लिस्ट में शुमार है. इन्हें एशिया कप-2017 में शानदार प्रदर्शन के लिए फोर्ब्स इंडिया ने 30 अंडर-30 यंग अचीवर्स भी चुना था.
दादा ने देखा था सपना, सविता ने किया पूरा
सविता के गोलकीपर बनने की कहानी बड़ी दिलचस्प है. एक बार सविता के दादाजी रंजीत पूनिया पहली बार दिल्ली आए. यहां उन्हें एक रिश्तेदार के संग हॉकी मैच देखने का मौका मिला. मैच देखकर उन्हें बहुत मजा आया. पहले उन्होंने इतना रोमांचकारी खेल कभी नहीं देखा था. मन में सोचने लगे, काश! मेरा भी कोई बच्चा हॉकी खिलाड़ी होता.
सविता के दादाजी ने तय किया कि उनकी पोती हॉकी खेलेगी. पापा ने भी दादाजी की बात मान ली. हॉकी की ट्रेनिंग गांव में रहकर संभव नहीं थी, इसलिए सिरसा के महाराजा अग्रसेन बालिका स्कूल में उनका दाखिला कराया गया. दरअसल इस स्कूल में खेल की बेहतरीन सुविधाएं थीं, इसलिए दादाजी को लगा कि यहां पढ़ने से पोती को खेल में जाने का मौका मिलेगा.
स्कूल में थी बेस्ट गोलकीपर
सविता अपने क्लास में सबसे लंबी थी. लंबाई थी तीन फीट आठ इंच. साथ ही उनके अंदर गजब की एकाग्रता भी थी, जो विपक्षी टीम के मूवमेंट को समझने के लिए बहुत जरूरी है. कोच सुंदर सिंह को लगा कि इस लड़की को गोलकीपर बनाया जा सकता है. गोलकीपिंग की ट्रेनिंग शुरू हुई. सविता का प्रदर्शन वाकई बढ़िया रहा. आज ये दिन है कि सविता दुनिया की सबसे बेहतरीन महिला हॉकी गोलकीपर्स में से एक हैं.
पिता चाहते थे बेटी सविता डॉक्टर बने
सविता पूनिया के पिता महेंद्र पूनिया एक फार्मासिस्ट थे. फार्मासिस्ट होने के नाते पिता बेटी को इसी प्रोफेशन में ले जाकर डॉक्टर बनाना चाहते थे. सविता की हॉकी खेलने की प्रतिभा को उस समय के प्राइमरी स्कूल के हेड टीचर दीपचंद कंबोज ने महेंद्र पूनिया को सलाह दी कि वह सविता को खेल की तरफ आगे बढ़ाएं, लेकिन महेंद्र पूनिया ने अपनी बेटी सविता पूनिया को पढ़ाई में ध्यान देने की बात कही, ताकि वह मेडिकल की पढ़ाई के लिए तैयार हो सके.
हॉकी स्टिक से दिया समाज की पुरानी सोच को जवाब!
सविता दिल जान लगाकर खेल रही थी. वो कुछ बड़ा करना चाहती थी, तो दूसरी तरफ गांववालों का पुराना नजरिया था. कुछ लोग उनके पापा को सलाह देने लगे थे कि सविता की शादी कर दी जाए. मेडल जीतने से पेट नहीं भरता, लेकिन सविता के पिता ने उनका मनोबल नहीं गिरने दिया. सविता का सपना है कि वो ओलंपिक में अपने देश के लिए मेडल जीतें.
देश ही नहीं दुनिया की बेहतरीन गोलकीपर हैं सविता पूनिया
तमाम परेशानियों के बावजूद सविता ने खेलना नहीं छोड़ा, धीरे-धीरे बेटी के हौसले बढ़ते चले गए और खेलों में सविता की उपलब्धियों को देखते हुए महेंद्र पूनिया ने भी खेलने की इजाजत दे दी. फिर सविता ने जो किया उससे उनका पूरा परिवार गर्व करता है. सविता अब न सिर्फ भारतीय हॉकी टीम का अहम हिस्सा हैं, बल्कि एशिया कप राष्ट्रीय प्रतियोगिता में पांच से कई बेस्ट गोलकीपर चुनी जा चुकी हैं.
ये पढ़ें- पूर्व महिला हॉकी कप्तान बोलीं, सरकार सुविधाएं देती तो 4 नहीं 10 लड़कियां ओलंपिक जातीं