रोहतक: किसानों ने अब आंदोलन की सिल पर सियासत का बट्टा रख लिया है और हरियाणा रोहतक में खड़े होकर निशाना सीधे बंगाल पर लगाया है. महीनों से दिल्ली के दर पर दस्तक दे रहे किसानों को अभी तक देश के दिल की देहरी पर नहीं चढ़ने दिया गया है. किसानों का यही दर्द शायद उन्हें बंगाल ले जा रहा है, क्योंकि वहां का मौसम चुनावी है और पारा सियासी, जिसके जरिए किसान अपनी नैया पार लगाने की जुगत में हैं.
'क्यों ना जाएं बंगाल, जरूर जाएंगे'
दरअसल, कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों ने अब सरकार से आर-पार की लड़ाई का मन बना लिया है. रोहतक पहुंचे किसान नेता राकेश टिकैत ने अपने ही अंदाज में कहा कि वो बंगाल भी जाएंगे और किसानों के लिए लड़ाई लड़ेंगे. उन्होंने कहा कि बंगाल में भी किसानों को दिक्कत है. वहां भी फसलों के दाम नहीं मिल रहे हैं.
'राम से बीजेपी का कोई लेना देना नहीं'
राकेश टिकैत ने राम का नाम जपने वाली बीजेपी सरकार को आड़े हाथों लिया. उन्होंने ये कह दिया कि राम रघुवंशी थे और हम उनके वंशज हैं, भाजपा का रामचंद्र से कोई लेना देना नहीं है. जहां तक महात्मा गांधी और हनुमान को आंदोलन जीवी कहने का उनका बयान है वो उस पर कायम हैं और माफी उन्हें नहीं प्रधानमंत्री मोदी को मांगनी चाहिए.
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संयुक्त किसान मोर्चा ये फैसला कर चुका है कि अब वो हरियाणा, पंजाब, यूपी और राजस्थान तक महदूद नहीं रहेंगे. वो वहां भी अपनी हाजिरी देंगे जहां लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व की तैयारी है और जिसके आगे सियासी सूरमा नतमस्तक रहते हैं. इसकी हामी गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने भी भरी है.
'कृषि कानून लाने वाली पार्टी का विरोध करेंगे'
गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने कहा है कि वो बंगाल में भी किसान महापंचायत करेंगे. इस दौरान वो लोगों से अपील करेंगे कि उस पार्टी को वोट ना दें, जो हमारी रोजी-रोटी छीन रही है. हम किसी एक पार्टी का समर्थन नहीं कर रहे, बल्कि लोगों को ये कहेंगे कि उसका विरोध करें जो तीन काले कानून लेकर आ रही है.
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बंगाल में जल्द ही चुनाव होने हैं और बीजेपी वहां एड़ी चोटी का जोर लगा रही है. वो किसी तरीके से ममता को हटाकर सत्ता हासिल करना चाहती है. ऐसे में किसानों का बंगाल कूच क्या बीजेपी सरकार की मुश्किलें बढ़ा देगा. क्या ये किसानों की दबाव की रणनीति है क्योंकि सरकार फिलहाल बातचीत के टेबल तक आती भी नहीं दिख रही है.
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