रोहतक: दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण के चलते किसानों द्वारा जलाए जाने वाली धान की पराली को ज्यादातर जिम्मेदार बताया जा रहा था. जिसके चलते माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने पराली के निपटान के लिए किसानों को धान की उपज पर प्रति क्विंटल 100 रुपये देने का आदेश जारी किया है. जिसके बाद से किसान राहत तो महसूस कर रहे हैं. लेकिन ये पराली निपटान का स्थाई समाधान नहीं मानते.
'पराली का खरीदा जाना स्थाई समाधान नहीं'
किसानों का कहना है कि 100 रुपये प्रति क्विंटल पराली खरीदे जाने से किसानों को कुछ राहत तो मिलेगी, लेकिन ये पराली निपटान करने के लिए स्थाई समाधान नहीं है. उन्होंने कहा कि अगर सरकार इसके निपटान के लिए पराली से तैयार होने वाले प्रोडक्टस की फैक्ट्री लगाए तो ही पराली की खपत हो सकती है.
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'पराली से तैयार होने वाले उत्पादों की लगे फैक्ट्री'
किसानों का कहना है अगर सरकार फैक्ट्री लगाती है, तो इससे किसानों को रोजगार भी मिलेगा और किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी. साथ ही पराली का मूल से निपटारा भी हो पाएगा. इस दौरान किसानों ने आरोप लगाया कि 10 साल कांग्रेस के शासनकाल में भी किसानों से वादे किए गए और अब 5 साल बीजेपी शासन में भी इस तरह की फैक्ट्री लगाने के वादे किए गए, लेकिन किसी भी सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया.
नहीं जलाएंगे पराली- किसान
किसानों का कहना है कि वो अब पराली नहीं जलाएंगे, क्योंकि अब उन्हें लगने लगा है कि पराली जलाने से जो प्रदूषण फैलता है उससे किसान और किसान के बच्चे भी प्रभावित होते हैं इसलिए वो जैसे तैसे करके इसका निपटान जरूर करेंगे. साथ ही उन्होंने सरकार से मांग की है कि वो पराली के निपटान का स्थाई समाधान जरूर करे.