रेवाड़ीः देश के किसी भी बड़े संवैधानिक संस्थान और सरकार की कोशिशों को ब्यूरोक्रेसी कैसे पलीता लगाती है. इसका एक जीता जागता उदाहरण हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए हुए मतदान के दौरान देखने को मिला.
रेवाड़ी जिले के बावल हल्के के गांव मामड़िया आसमपुर की ग्राम पंचायत में एक वोटर को वोट डालने के लिए 3 घंटे की भागदौड़ करनी पड़ी और गांव की सरपंच और उच्च अधिकारियों की हस्तक्षेप के बाद वोटर को वोट डालने दिया गया. लिस्ट में नाम नहीं होने के कारण उसे एक बूथ से दूसरे बूथ और एक गांव से दूसरे गांव दौड़ाया गया. लेकिन वोटर ने भी हिम्मत नहीं हारी और भागदौड़ करता रहा. आखिर में सरपंच और बीएलओ की ओर से लिखित में दिये गए लेटर और उच्च अधिकारियों से मोबाइल फोन पर बातचीत के बाद उसने मत का प्रयोग किया.
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बावल हल्के के गांव मामड़िया आसमपुर और कढू भवानीपुरा की ग्राम पंचायत एक है और पिछले कई सालों से मामड़िया आसमपुर में ही मतदान केन्द्र बनाया जाता था. कढू के ग्रामीणों की पुरजोर मांग के बाद इस बार कढू में भी एक बूथ स्थापित किया गया. जिसके बाद गांव कढू निवासी गंगाबिशन का कढू की वोटर लिस्ट में नाम नहीं था. गांव के बीएलओ से पूछताछ में पता चला कि उसका नाम मामड़िया की वोटर लिस्ट में है और वह कढू में नहीं मामड़िया में ही वोट डाल सकता है.
गंगाबिशन का कहना है कि दो किलोमीटर का सफर करके जब वह मामड़िया आसमपुर पहुंचा तो वहां भी उसका नाम नहीं था. इसके बाद बूथ के अधिकारी और बीएलओ उसे एक-दूसरे बूथ पर दौड़ाते रहे. जिसके बाद मामड़िया के बूथ अधिकारियों ने कहा कि वह कढू के बूथ बीएलओ और सरपंच से यह लिखवाकर लाएं कि वह कढू में वोट नहीं डाल सकता तो वे कुछ कर सकते हैं. जिसके बाद उसने कढू की बीएलओ संतोष और सरपंच से इससे संबंधित एक लेटर लिखवाकर मामड़िया के बूथ पर जमा कराया. उसके बाद वहां के अधिकारियों ने उच्च अधिकारियों से बात की तब कहीं जाकर 3 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद उसे वोट डालने दिया गया.
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गंगाबिशन का कहना है कि वोट और बूथ को लेकर उसे गुमराह किया गया. उसके घर पर न तो बीएलओ ने पर्ची पहुंचाई और न ही उसे सही राह दिखाई गई. मामड़िया की बीएलओ ज्योति ने उसकी पर्ची को उसके घर न पहुंचाकर वापस जमा करा दी और मामड़िया की वोटर लिस्ट से नाम यह कहकर शिफ्ट करा दिया गया कि यह युवक कढू का है. मामड़िया की वोटर लिस्ट में अधिकारियों ने उसके नाम पर डबल अंकित कर दिया. जिसके चलते वो न तो कढू में वोट डाल सकता था और न ही मामड़िया में. लेकिन कड़ी मशक्कत और वोट डालने की जिद के चलते आखिरकार गंगाबिशन ने अपने मताधिकार इस्तेमाल कर ही लिया.
चुनाव आयोग से लेकर सरकार तक मतदान प्रतिशत को बढ़ाने के लिए कई तरह के कार्यक्रम चला रहे हैं. लेकिन अधिकारियों की लापरवाही जागरूक मतदाताओं पर भी भारी पड़ रही है.
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