पानीपत: शोले फिल्म के अभिनेता जय और वीरू की जोड़ी दोस्ती के लिए मशहूर हुई. दोनों एक-दूसरे पर जान छिड़कते थे. ऐसी ही जोड़ी विराट नगर के जुड़वा भाई जय और वीरू की है. पांच साल की उम्र में एक-दूसरे के साथ मारपीट करते थे. दोनों एक-दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते थे. इससे उनके पिता बलविंद्र परेशान हो गए थे. दोनों का अड़ियल रवैया बदले और गुस्सा बॉक्सिंग रिंग में उतरे. इसलिए दोनों को शिवाजी स्टेडियम में बॉक्सिंग कोच सुनील पंवार के पास अभ्यास के लिए छोड़ दिया. कोच दोनों की तब तक फाइट करवाते जब तक वे थक कर निढाल न हो जाते. इससे उनका गुस्सा कम हुआ हो गया.
जय विरू जिला स्तरीय बॉक्सिंग प्रतियोगिता में चैंपियन: उम्र बढ़ने के साथ-साथ दोनों का व्यवहार बदला और मारपीट छोड़ खेल पर ध्यान केंद्रित किया. अब 13 वर्षीय दोनों भाई न सिर्फ एक-दूसरे का ख्याल रखते हैं, बल्कि बॉक्सिंग में भी एक के बाद एक पदक जीत रहे हैं. 30 सेकेंड बड़ा जय जिला स्तरीय बॉक्सिंग प्रतियोगिता में दो स्वर्ण पदक और राज्य स्तर पर रजत पदक जीत चुका है. वहीं, छोटा वीरू भी जिला चैंपियन है. दोनों भाइयों का शिवाजी स्टेडियम में शुरू हो रही राज्यस्तरीय बॉक्सिंग एकेडमी में चयन भी हो गया है.
घर की लड़ाई से ऐसे शुरू हुआ बॉक्सिंग रिंग तक का सफर: फोटोग्राफी का काम करने वाले बलविंद्र ने बताया कि, सबसे बड़ी बेटी रिया है, जो बीकॉम में पढ़ती है. उससे छोटा बेटा अवि बीमार रहता है. छोटे बेटे जय और वीरू बचपन में शरारती थे. दोनों घर में एक-दूसरे के साथ दिन भर मारपीट करते थे. परिवार का जीना मुहाल हो गया था. एक दिन वे शिवाजी स्टेडियम में गये जहां बच्चे बॉक्सिंग की ट्रेनिंग ले रहे थे. कोच सुनील पंवार ने उसे सलाह दी कि अपने बच्चों को भी अभ्यास के लिए भेज दें. इसके बाद बलविंद्र ने अपने दोनों बेटों को स्टेडियम में बॉक्सिंग अभ्यास के लिए भेज दिया.
बॉक्सिंग ने बदल दी जुड़वा भाइयों की जिंदगी: जब दोनों जुड़वा भाई बॉक्सिंग अभ्यास के लिए जाने लगे तो अचानक उनका आपसी गुस्सा भी खत्म हो गया. अब बेटे घर में भी शांत रहते हैं. बॉक्सिंग ने जुड़वा भाइयों की जिंदगी बदल दी है. ऐसे में घर में लड़ाई नहीं होने से परिवार के सदस्यों को भी राहत मिली है.
स्टेडियम में 120 खिलाड़ी करते हैं बॉक्सिंग का अभ्यास: स्टेडियम में 120 खिलाड़ी बॉक्सिंग का अभ्यास करते हैं. शुरू के दो साल तक जय और वीरू सबसे शरारती थे. हर रोज दोनों की पिटाई होती थी. धीरे-धीरे उम्र बढ़ी और खेल के प्रति लगाव हुआ तो दोनों ने शरारत कम कर दी. इतना ही नहीं जो तकनीक सिखाई जाती है, उस पर दोनों अमल करते हैं. मुकाबले में दोनों भाई एक-दूसरे का पक्ष लेते हैं.
'कोच का साथ ना होता तो बॉक्सिंग नहीं कर पाते': बॉक्सर जय का कहना है कि, 'वह और वीरू राजकीय मॉडल संस्कृति स्कूल के नौवीं कक्षा के छात्र हैं. दोनों भाई खेल के साथ-साथ पढ़ाई में भी एक-दूसरे की मदद करते हैं. उन्होंने कहा कि पिता के फोटोग्राफी के काम से घर का गुजारा मुश्किल से चलता है. वहीं, कोच सुनील पंवार ही उनकी खुराक, जूतों और खेल पोशाक का प्रबंध करते हैं. कोच का साथ ना होता तो वे दोनों भाई बॉक्सिंग नहीं कर पाते. अब दोनों भाइयों का लक्ष्य सब जूनियर नेशनल बॉक्सिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने का है.'
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