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किस्सा हरियाणे का: जिन्नों ने एक रात में बनाई ये मजार, जहां पूरी होती है हर मुराद!

बू अली कलंदर शाह दरगाह के बारे में हमारी टीम ने बू अली कलंदर शाह की दरगाह के इतिहास के बारे में जानने की कोशिश की. ये दरगाह करीब साढे 700 साल पुरानी है. माना जाता है कि इस दरगाह को एक रात में ही जिन्नों ने बनाया है. पानीपत की इस दरगाह पर आज भी जिन्नातों के लगाए गए नायाब पत्थर यहां मौजूद हैं.

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Published : Jun 1, 2019, 8:03 AM IST

Updated : Jun 1, 2019, 11:34 AM IST

ऐपिसोड- पानीपत की दरगाह को जिन्नों ने एक रात में बनाई थी!

पानीपत: कई ऐतिहासिक युद्धों का गवाह रहे पानीपत में कुछ ऐसी अनोखे अफसानें हैं. जिन पर लोग सदियों से विश्वास करते आ रहे हैं. लोगों में बड़ी घनिष्ठ मान्यता है. पानीपत के बीचो-बीच बनी बू अली शाह की दरगाह जिसे हर धर्म के लोग आस्था की नजरों से देखते हैं. इस खास रिपोर्ट को देखिए-

ऐपिसोड-1: देखिए जिन्नों की बनाई दरगाह की पूरी कहानी, क्लिक कर देखिए वीडियो.

दरगाह में मौजूद हैं जिन्नातों के लगाए पत्थर
पानीपत की इस दरगाह पर आज भी जिन्नातों द्वारा लगाए गए नायाब पत्थर यहां मौजूद हैं. आपको बता दें कि यहां मौसम बताने वाले पत्थर और सोने की जांच करने वाले कसौटी पत्थर और जहर मोहरा नाम के पत्थर की आंख लगे हैं. जहर मोहरा पत्थर अगर कोई विषैला सांप या कोई भी विषैला जीव इंसान को काट ले तो यह पत्थर सारा जहर इंसान के जिस्म से निकाल लेते हैं.

'किसी महिला के जाग जाने पर पूरी इमारत नहीं बन पाई थी'
कहा जाता है कि जब जिन्न इस इमारत को रात में बना रहे थे और इमारत लगभग बनकर तैयार होने वाली थी तो सुबह उठकर शहर की किसी महिला ने हाथ से आटा पीसने वाली चक्की को चलाया. उस महिला की चक्की की आवाज सुनकर जिन्न अपना काम अधूरा छोड़ कर चले गए थे.

कौन थे बु अली शाह कलंदर ?
कलंदर शाह का जन्म पानीपत में ही हुआ था और उनके माता-पिता इराक के रहने वाले थे इनकी तालीम पानीपत से ही हो और करीब साढे 700 साल पहले दिल्ली के सुप्रीम कोर्ट में एक जज के तौर पर भी रहे. कलंदर शाह के पिता शेख फखरुद्दीन अपने समय के महान संत और विद्वान थे. इनकी मां हाफिजा जमाल भी धार्मिक प्रवृत्ति की थीं. कलंदर शाह के जन्मस्थान को लेकर अलग-अलग मान्यताएं हैं. कुछ लोगों का मानना है कि उनका जन्म तुर्की में हुआ, जबकि कई लोग अजरबैजान बताते हैं. ज्यादातर लोगों के मुताबिक, पानीपत ही उनकी जन्मस्थली है. कलंदर शाह दरगाह के मुफ्ती सैय्यद एजाज अहमद हाशमी बताते हैं कि शेख फखरुद्दीन और हाफिजा जमाल इराक से भारत आए थे.

यमुना नदी के किनारे स्थित पानीपत की धरती उन्हें बहुत पसंद आई और दोनों यहीं बस गए. कलंदर शाह की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा पानीपत में हुई. कुछ दिन बाद वे दिल्ली चले गए और कुतुबमीनार के पास रहने लगे.

दिल्‍ली से शोहरत की खुशबू फैली थी
उस समय दिल्ली के शासकों की अदालत कुतुबमीनार के पास लगती थी. कलंदर शाह उसकी मशविरा कमेटी में प्रमुख थे. इस्लामी कानून पर लिखी उनकी किताबें आज भी इंडोनेशिया, मलेशिया व अन्य मुस्लिम देशों में पढ़ाई जाती हैं. वे सूफी संत ख्वाजा कुतुबद्दीन बख्तियार काकी के शिष्य थे. उन्हें नूमान इब्न सबित और प्रसिद्ध विद्वान इमाम अबू हनीफा का वंशज माना जाता है. उन्होंने पारसी काव्य संग्रह भी लिखा, जिसका नाम दीवान ए हजरत शरफुद्दीन बू अली शाह कलंदर है.

बाद में वह अली कलंदर अल्लहा की ईबादत करने लगे. इन्होंने करनाल जिले में यमुना नदी के अंदर खड़े होकर खुदा की इबादात की. यमुना नदी में खुदा की इबादत करते लगभग 26 साल बीत जाने के बाद शरीर का अधिकांश हिस्सा मछलियों ने खा लिया गया था. इनको अली की बू मिलने के बाद कुछ समय बाद ही इनका देहांत हो गया था. 1190 ई. में कलंदर शाह का जन्म हुआ और 122 साल की उम्र में 1312 ई. में उनका इंतकाल हो गया. आपको बता दें कि मरने से पूर्व भी उन्होंने कहा था कि इनको पानीपत में ही दफनाया जाए.

दरगाह के करीब ही घर था
पानीपत में दरगाह से कुछ दूरी पर ही कलंदर शाह के माता-पिता रहते थे, जो प्रसिद्ध देवी मंदिर के पास है. उस समय मकदूम साहब जलालुद्दीन औलिया बड़े रईस थे. पानीपत की ज्यादातर जमीन उन्हीं की थी. उन्होंने ही दरगाह के लिए जमीन दी. अलाउद्दीन खिलजी के उत्तराधिकारियों खिजिर खान, शादी खान और मोहब्बत खान ने अपने-अपने समय में इसे बनवाया था. मोहब्बत खान मुगल शासक जहांगीर की सेना का अध्यक्ष था. भारत, पाकिस्तान व अन्य क्षेत्रों में हजरत बू अली शाह कलंदर की 1200 के करीब दरगाह हैं. इनमें पानीपत की दरगाह मुख्य है.

मन्नत के लिए ताले लगाते हैं
करीब 700 साल पुरानी दरगाह की विशेष मान्यता है. यह अजमेर शरीफ व हजरत निजामुद्दीन की तरह सम्मानित है. यहां बड़ी संख्या में लोग मन्नत मांगने आते हैं और दरगाह के बगल में एक ताला लगा जाते हैं. आप ताला लगाने की जगह पर देख सकते हैं कि लोग एक संदेश की तरह एक कागज पर लिख कर अपनी मन्नतें भी मांगते हैं और मानते पूरे होने के बाद यह आते भी हैं. रिपोर्ट में देख सकते हैं कि किसी शख्श ने अपनी बेटी के एनआईटी के एग्जाम पास होने की मन्नत एक कागज पर लिखी है मन्नत पूरी होने पर गरीबों को खाना खिलाते और दान-पुण्य करते हैं. यहां रोज लोग आते हैं, लेकिन बृहस्पतिवार को अकीदतमंदों की भारी भीड़ उमड़ती है. सालाना उर्स मुबारक पर यहां खास जलसा होता है. उस मौके पर दुनियाभर से उनके अनुयायी आते हैं. इस मकबरे के मुख्य दरवाजे की दाहिनी तरफ प्रसिद्ध उर्दू शायर ख्वाजा अल्ताफ हुसैन हाली पानीपती की कब्र भी है.

ऊंच-नीच में भेद नहीं मानते थे!
मुस्लिम विद्वान कामिल रहमानी बताते हैं कि पानीपत स्थित कलंदर शाह की दहगाह का बड़ा महत्व है. इस स्तर की पूरी दुनिया में सिर्फ ढाई दरगाह हैं. पहली पानीपत में बू अली शाह की, दूसरी पाकिस्तान में और तीसरी इराक के बसरा में. चूंकि बसरा की दरगाह महिला सूफी की है, इसलिए उसे आधा का दर्जा है. इस्लाम में हजरत अली को मानने वाले हर व्यक्ति का सपना होता है कि वह इन दरगाहों पर जाकर इबादत करे. कलंदर शाह ऊंच-नीच में भेदभाव के खिलाफ थे.

कलंदर शाह की दरगाह के पास ही मुबारक अली का मजार है. आज भी कलंदर शाह से पहले मुबारक अली की दरगाह पर चादर चढ़ाई जाती है. कलंदर (सही शब्द कल्लंदर) का अर्थ होता है मस्त यानी जो मोह माया से ऊपर उठकर ईश्वर की इबादत में मस्त रहे. यानी वो व्यक्ति, जो दिव्य आनंद में इतनी गहराई तक डूब चुका है कि अपनी सांसारिक संपत्ति और यहां तक कि अपनी मौजूदगी के बारे में भी परवाह नहीं करता. हजरत मकदूम साहब सोसायटी के इरफान अली बताते हैं कि कलंदर शाह महान सूफी संत और धार्मिक शिक्षक थे. उन्होंने हर तरह के भेदभाव का विरोध किया. उनके अनुयायियों में सभी धर्मों के लोग हैं. दुनियाभर से पूरे साल यहां आने वालों का तांता लगा रहता है. इनमें सबसे ज्यादा संख्या दक्षिण अफ्रीका से आने वालों की है.

पानीपत: कई ऐतिहासिक युद्धों का गवाह रहे पानीपत में कुछ ऐसी अनोखे अफसानें हैं. जिन पर लोग सदियों से विश्वास करते आ रहे हैं. लोगों में बड़ी घनिष्ठ मान्यता है. पानीपत के बीचो-बीच बनी बू अली शाह की दरगाह जिसे हर धर्म के लोग आस्था की नजरों से देखते हैं. इस खास रिपोर्ट को देखिए-

ऐपिसोड-1: देखिए जिन्नों की बनाई दरगाह की पूरी कहानी, क्लिक कर देखिए वीडियो.

दरगाह में मौजूद हैं जिन्नातों के लगाए पत्थर
पानीपत की इस दरगाह पर आज भी जिन्नातों द्वारा लगाए गए नायाब पत्थर यहां मौजूद हैं. आपको बता दें कि यहां मौसम बताने वाले पत्थर और सोने की जांच करने वाले कसौटी पत्थर और जहर मोहरा नाम के पत्थर की आंख लगे हैं. जहर मोहरा पत्थर अगर कोई विषैला सांप या कोई भी विषैला जीव इंसान को काट ले तो यह पत्थर सारा जहर इंसान के जिस्म से निकाल लेते हैं.

'किसी महिला के जाग जाने पर पूरी इमारत नहीं बन पाई थी'
कहा जाता है कि जब जिन्न इस इमारत को रात में बना रहे थे और इमारत लगभग बनकर तैयार होने वाली थी तो सुबह उठकर शहर की किसी महिला ने हाथ से आटा पीसने वाली चक्की को चलाया. उस महिला की चक्की की आवाज सुनकर जिन्न अपना काम अधूरा छोड़ कर चले गए थे.

कौन थे बु अली शाह कलंदर ?
कलंदर शाह का जन्म पानीपत में ही हुआ था और उनके माता-पिता इराक के रहने वाले थे इनकी तालीम पानीपत से ही हो और करीब साढे 700 साल पहले दिल्ली के सुप्रीम कोर्ट में एक जज के तौर पर भी रहे. कलंदर शाह के पिता शेख फखरुद्दीन अपने समय के महान संत और विद्वान थे. इनकी मां हाफिजा जमाल भी धार्मिक प्रवृत्ति की थीं. कलंदर शाह के जन्मस्थान को लेकर अलग-अलग मान्यताएं हैं. कुछ लोगों का मानना है कि उनका जन्म तुर्की में हुआ, जबकि कई लोग अजरबैजान बताते हैं. ज्यादातर लोगों के मुताबिक, पानीपत ही उनकी जन्मस्थली है. कलंदर शाह दरगाह के मुफ्ती सैय्यद एजाज अहमद हाशमी बताते हैं कि शेख फखरुद्दीन और हाफिजा जमाल इराक से भारत आए थे.

यमुना नदी के किनारे स्थित पानीपत की धरती उन्हें बहुत पसंद आई और दोनों यहीं बस गए. कलंदर शाह की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा पानीपत में हुई. कुछ दिन बाद वे दिल्ली चले गए और कुतुबमीनार के पास रहने लगे.

दिल्‍ली से शोहरत की खुशबू फैली थी
उस समय दिल्ली के शासकों की अदालत कुतुबमीनार के पास लगती थी. कलंदर शाह उसकी मशविरा कमेटी में प्रमुख थे. इस्लामी कानून पर लिखी उनकी किताबें आज भी इंडोनेशिया, मलेशिया व अन्य मुस्लिम देशों में पढ़ाई जाती हैं. वे सूफी संत ख्वाजा कुतुबद्दीन बख्तियार काकी के शिष्य थे. उन्हें नूमान इब्न सबित और प्रसिद्ध विद्वान इमाम अबू हनीफा का वंशज माना जाता है. उन्होंने पारसी काव्य संग्रह भी लिखा, जिसका नाम दीवान ए हजरत शरफुद्दीन बू अली शाह कलंदर है.

बाद में वह अली कलंदर अल्लहा की ईबादत करने लगे. इन्होंने करनाल जिले में यमुना नदी के अंदर खड़े होकर खुदा की इबादात की. यमुना नदी में खुदा की इबादत करते लगभग 26 साल बीत जाने के बाद शरीर का अधिकांश हिस्सा मछलियों ने खा लिया गया था. इनको अली की बू मिलने के बाद कुछ समय बाद ही इनका देहांत हो गया था. 1190 ई. में कलंदर शाह का जन्म हुआ और 122 साल की उम्र में 1312 ई. में उनका इंतकाल हो गया. आपको बता दें कि मरने से पूर्व भी उन्होंने कहा था कि इनको पानीपत में ही दफनाया जाए.

दरगाह के करीब ही घर था
पानीपत में दरगाह से कुछ दूरी पर ही कलंदर शाह के माता-पिता रहते थे, जो प्रसिद्ध देवी मंदिर के पास है. उस समय मकदूम साहब जलालुद्दीन औलिया बड़े रईस थे. पानीपत की ज्यादातर जमीन उन्हीं की थी. उन्होंने ही दरगाह के लिए जमीन दी. अलाउद्दीन खिलजी के उत्तराधिकारियों खिजिर खान, शादी खान और मोहब्बत खान ने अपने-अपने समय में इसे बनवाया था. मोहब्बत खान मुगल शासक जहांगीर की सेना का अध्यक्ष था. भारत, पाकिस्तान व अन्य क्षेत्रों में हजरत बू अली शाह कलंदर की 1200 के करीब दरगाह हैं. इनमें पानीपत की दरगाह मुख्य है.

मन्नत के लिए ताले लगाते हैं
करीब 700 साल पुरानी दरगाह की विशेष मान्यता है. यह अजमेर शरीफ व हजरत निजामुद्दीन की तरह सम्मानित है. यहां बड़ी संख्या में लोग मन्नत मांगने आते हैं और दरगाह के बगल में एक ताला लगा जाते हैं. आप ताला लगाने की जगह पर देख सकते हैं कि लोग एक संदेश की तरह एक कागज पर लिख कर अपनी मन्नतें भी मांगते हैं और मानते पूरे होने के बाद यह आते भी हैं. रिपोर्ट में देख सकते हैं कि किसी शख्श ने अपनी बेटी के एनआईटी के एग्जाम पास होने की मन्नत एक कागज पर लिखी है मन्नत पूरी होने पर गरीबों को खाना खिलाते और दान-पुण्य करते हैं. यहां रोज लोग आते हैं, लेकिन बृहस्पतिवार को अकीदतमंदों की भारी भीड़ उमड़ती है. सालाना उर्स मुबारक पर यहां खास जलसा होता है. उस मौके पर दुनियाभर से उनके अनुयायी आते हैं. इस मकबरे के मुख्य दरवाजे की दाहिनी तरफ प्रसिद्ध उर्दू शायर ख्वाजा अल्ताफ हुसैन हाली पानीपती की कब्र भी है.

ऊंच-नीच में भेद नहीं मानते थे!
मुस्लिम विद्वान कामिल रहमानी बताते हैं कि पानीपत स्थित कलंदर शाह की दहगाह का बड़ा महत्व है. इस स्तर की पूरी दुनिया में सिर्फ ढाई दरगाह हैं. पहली पानीपत में बू अली शाह की, दूसरी पाकिस्तान में और तीसरी इराक के बसरा में. चूंकि बसरा की दरगाह महिला सूफी की है, इसलिए उसे आधा का दर्जा है. इस्लाम में हजरत अली को मानने वाले हर व्यक्ति का सपना होता है कि वह इन दरगाहों पर जाकर इबादत करे. कलंदर शाह ऊंच-नीच में भेदभाव के खिलाफ थे.

कलंदर शाह की दरगाह के पास ही मुबारक अली का मजार है. आज भी कलंदर शाह से पहले मुबारक अली की दरगाह पर चादर चढ़ाई जाती है. कलंदर (सही शब्द कल्लंदर) का अर्थ होता है मस्त यानी जो मोह माया से ऊपर उठकर ईश्वर की इबादत में मस्त रहे. यानी वो व्यक्ति, जो दिव्य आनंद में इतनी गहराई तक डूब चुका है कि अपनी सांसारिक संपत्ति और यहां तक कि अपनी मौजूदगी के बारे में भी परवाह नहीं करता. हजरत मकदूम साहब सोसायटी के इरफान अली बताते हैं कि कलंदर शाह महान सूफी संत और धार्मिक शिक्षक थे. उन्होंने हर तरह के भेदभाव का विरोध किया. उनके अनुयायियों में सभी धर्मों के लोग हैं. दुनियाभर से पूरे साल यहां आने वालों का तांता लगा रहता है. इनमें सबसे ज्यादा संख्या दक्षिण अफ्रीका से आने वालों की है.

Dear

PFA of Day Plan 31st May 2019

Regard
Last Updated : Jun 1, 2019, 11:34 AM IST
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