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Panipat Hanuman Swaroop: महा अष्टमी के दिन नगर भ्रमण पर निकले हनुमान स्वरूप, जानें क्या है पाकिस्तान से आई ये परंपरा

Panipat Hanuman Swaroop: 24 अक्टूबर को विजयदशमी का त्योहार मनाया जाएगा. इसके लिए हरियाणा के जिला पानीपत में महा अष्टमी के दिन से 4 दिन 'जय हो वीर' के धार्मिक नारों की गूंज रहेगी. शहर के हर कोने में ढोल-DJ के साथ हनुमान स्वरूप के साथ सभाएं साथ चलती दिखाई देंगी. पानीपत जिले में आज के दिन हनुमान स्वरूप नगर भ्रमण पर निकल पड़े हैं. जो कि पानीपत में रावण दहन तक नगर में भ्रमण करेंगे. रिपोर्ट में विस्तार से जानें पूरी जानकारी

Panipat Hanuman Swaroop
पानीपत हनुमान स्वरूप
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By ETV Bharat Haryana Team

Published : Oct 22, 2023, 7:39 PM IST

Updated : Oct 22, 2023, 10:11 PM IST

महा अष्टमी के दिन नगर भ्रमण पर निकले हनुमान स्वरूप

पानीपत: महाअष्टमी, जिसे अष्टमी और दुर्गा अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है. नवरात्रि के सबसे महत्वपूर्ण दिनों में से एक होता है. इस दिन महागौरी की पूजा होती है. पानीपत जिले में आज के दिन हनुमान स्वरूप नगर भ्रमण पर निकल पड़े हैं. यह परंपरा आजादी के बाद बंटवारे के समय से ही पानीपत में चलती आ रही है. हनुमान स्वरूप आज से दशहरे का दिन रावण दहन तक चार दिन तक नगर भ्रमण करेंगे.

ये भी पढ़ें: Dussehra 2023: जानिए कब है दशहरा और पूजा विधि, विजयदशमी के दिन इस पक्षी के दर्शन मात्र से संवर जाती है किस्मत!

'25 साल पुरानी है परंपरा': हनुमान स्वरूप धारण करने वाले भक्त अनिल कपूर ने बताया कि उनकी संस्था पिछले 25 सालों से हनुमान स्वरूप धारण करती आई है. जिन परिवारों ने मन्नत मांगी होती है चार दिन तक उन परिवारों के घरों में हनुमान स्वरूप को लेकर जाया जाता है. बच्चे हो बड़े या फिर बुर्जुग हों इन दोनों शहरों से निकलने वाली हजारों हनुमान स्वरूप यात्राओं के साथ देखने को मिलेंगे.

'नियम नहीं आसान': संस्था के प्रधान अनिल ने बताया कि स्वरूप धारण करने के नियम बहुत कड़े हैं. सब कामकाज छोड़कर 40 दिन पहले व्रत पर बैठना पड़ता है. व्रत करने वाला पूजा पाठ वाले स्थान को छोड़कर कहीं दूर नहीं जा सकता. एक समय भोजन कर वह अपने नियम का पालन करता है. महाअष्टमी के दिन वह इस स्वरूप को धारण कर ढोल नगाड़ों के साथ नृत्य करते हुए रामलीला स्थल पर राम दर्शनों के लिए और घर-घर भ्रमण करते हैं.

कैसे शुरू हुई परंपरा?: मान्यता है कि आजादी से पहले पाकिस्तान में सरहिंद के पास मुस्लिम समाज के कहने पर अंग्रेज अधिकारियों ने दशहरा पर्व का अवकाश बंद कर दिया था. जिस पर हिंदू समाज इकट्ठा होकर अंग्रेज अधिकारियों से मिले. उस समय अंग्रेज अधिकारी ने कहा कि हनुमान ने 400 योजन समुद्र लांघा था. यदि तुम सरहिंद के दरिया को पार करके दिखा दो तो दशहरे का अवकाश मिलेगा.

उस समय एक सिद्ध पुरुष ने इस चैलेंज को स्वीकार कर लिया. उन्होंने इसके लिए एक व्यक्ति को तैयार किया. उसे बलिदान के लिए कहा गया. उस व्यक्ति को सिंदूर लगाया गया. चालीस दिन के व्रत कराए गए. सरहंद दरिया को उस व्यक्ति ने उड़कर पार किया. दूसरे किनारे पर जाने के बाद जब वह वापस लौटा तो उसके लिए शैय्या तैयार थी. शैय्या पर पहुंचने के बाद उसने प्राण त्याग दिए. इसके बाद अंग्रेज अधिकारी ने दशहरा की छुट्टी देना शुरू कर दिया. उसी समय से हनुमान स्वरूप बनने की परंपरा शुरू हुई.

Disclaimer: ईटीवी भारत किसी भी मान्यता की पुष्टि नहीं करता है.

ये भी पढ़ें: Shardiya navratri 2023: नवरात्रि की महाअष्टमी, जानें कब करें कंजक पूजन महत्व और व्रत का शुभ मुहूर्त

महा अष्टमी के दिन नगर भ्रमण पर निकले हनुमान स्वरूप

पानीपत: महाअष्टमी, जिसे अष्टमी और दुर्गा अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है. नवरात्रि के सबसे महत्वपूर्ण दिनों में से एक होता है. इस दिन महागौरी की पूजा होती है. पानीपत जिले में आज के दिन हनुमान स्वरूप नगर भ्रमण पर निकल पड़े हैं. यह परंपरा आजादी के बाद बंटवारे के समय से ही पानीपत में चलती आ रही है. हनुमान स्वरूप आज से दशहरे का दिन रावण दहन तक चार दिन तक नगर भ्रमण करेंगे.

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'25 साल पुरानी है परंपरा': हनुमान स्वरूप धारण करने वाले भक्त अनिल कपूर ने बताया कि उनकी संस्था पिछले 25 सालों से हनुमान स्वरूप धारण करती आई है. जिन परिवारों ने मन्नत मांगी होती है चार दिन तक उन परिवारों के घरों में हनुमान स्वरूप को लेकर जाया जाता है. बच्चे हो बड़े या फिर बुर्जुग हों इन दोनों शहरों से निकलने वाली हजारों हनुमान स्वरूप यात्राओं के साथ देखने को मिलेंगे.

'नियम नहीं आसान': संस्था के प्रधान अनिल ने बताया कि स्वरूप धारण करने के नियम बहुत कड़े हैं. सब कामकाज छोड़कर 40 दिन पहले व्रत पर बैठना पड़ता है. व्रत करने वाला पूजा पाठ वाले स्थान को छोड़कर कहीं दूर नहीं जा सकता. एक समय भोजन कर वह अपने नियम का पालन करता है. महाअष्टमी के दिन वह इस स्वरूप को धारण कर ढोल नगाड़ों के साथ नृत्य करते हुए रामलीला स्थल पर राम दर्शनों के लिए और घर-घर भ्रमण करते हैं.

कैसे शुरू हुई परंपरा?: मान्यता है कि आजादी से पहले पाकिस्तान में सरहिंद के पास मुस्लिम समाज के कहने पर अंग्रेज अधिकारियों ने दशहरा पर्व का अवकाश बंद कर दिया था. जिस पर हिंदू समाज इकट्ठा होकर अंग्रेज अधिकारियों से मिले. उस समय अंग्रेज अधिकारी ने कहा कि हनुमान ने 400 योजन समुद्र लांघा था. यदि तुम सरहिंद के दरिया को पार करके दिखा दो तो दशहरे का अवकाश मिलेगा.

उस समय एक सिद्ध पुरुष ने इस चैलेंज को स्वीकार कर लिया. उन्होंने इसके लिए एक व्यक्ति को तैयार किया. उसे बलिदान के लिए कहा गया. उस व्यक्ति को सिंदूर लगाया गया. चालीस दिन के व्रत कराए गए. सरहंद दरिया को उस व्यक्ति ने उड़कर पार किया. दूसरे किनारे पर जाने के बाद जब वह वापस लौटा तो उसके लिए शैय्या तैयार थी. शैय्या पर पहुंचने के बाद उसने प्राण त्याग दिए. इसके बाद अंग्रेज अधिकारी ने दशहरा की छुट्टी देना शुरू कर दिया. उसी समय से हनुमान स्वरूप बनने की परंपरा शुरू हुई.

Disclaimer: ईटीवी भारत किसी भी मान्यता की पुष्टि नहीं करता है.

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Last Updated : Oct 22, 2023, 10:11 PM IST
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