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पराली को खाद बनाकर हरियाणा के किसान ने बढ़ाई खेतों की उर्वरक क्षमता, बोले- DRS तकनीक का करें इस्तेमाल - पानीपत में पराली की समस्या

पराली से होने वाले प्रदूषण और घटते भूजल स्तर को देखते हुए बडौली गांव के किसान (Panipat farmer suresh) ने कुछ ऐसा किया कि वो आज दूसरे किसानों के लिए मिसाल बना हुआ है.

Panipat farmer suresh
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Published : May 30, 2022, 4:54 PM IST

पानीपत: पराली से होने वाले प्रदूषण और घटते भूजल स्तर को देखते हुए बडौली गांव के किसान (Panipat farmer suresh) ने कुछ ऐसा किया कि वो आज दूसरे किसानों के लिए मिसाल बना हुआ है. पानीपत के किसान सुरेश सिरदर्द बनी पराली का इस्तेमाल खेत की उर्वरक शक्ति बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करते हैं. पराली की वजह से सुरेश प्रति एकड़ में 25 क्विंटल गेहूं या धान की फसल उगा लेता है.

किसान सुरेश का कहना है कि वो सुपर सीडर मशीन की मदद से पराली को बिना जलाए ही खेतों में मिला देते हैं. जिससे पराली डी कंपोस्ट हो जाती है. इससे खेत की उर्वरक क्षमता बढ़ाती है. जिससे कि फसल की पैदावार पर सकारात्मक असर पड़ता है. किसान का मानना है कि सुपर सीडर मशीन से पराली जलाने की समस्या भी दूर हो जाती है और प्रदूषण भी नहीं फैलता. सबसे अच्छी बात ये है कि इससे फसल की पैदावार में भी बढ़ोतरी होती है. किसान सुरेश पानी की कमी को लेकर भी सजग है.

पराली को खाद बनाकर हरियाणा के किसान ने बढ़ाई खेतों की उर्वरक क्षमता

पानी की बढ़ती समस्या को देखते हुए सुरेश खेतों में पानी पाइप लाइन विधि से देता है. धान की फसल में सबसे जायदा जरूरत पानी की होती है, तो सुरेश पानी की बचत के लिए धान की बिजाई DSR विधि (Direct Seeding Of Rice) से करता है. किसान का कहना है की धान की पारंपरिक रोपाई करने से पानी की खपत जायदा होती है और पैदावार भी कम होती है.

क्या है डीएसआर टेक्निक? इस तकनीक में धान की नर्सरी तैयार करने की बजाय बीजों की खेत में सीधे बुवाई कर दी जाती है. ऐसा माना जाता है कि इस तकनीक को अपनाने से खेत की ज्यादा जुताई नहीं करना पड़ती. जिससे मिट्टी में पर्याप्त पोषक तत्व बने रहते हैं. पिछले साल पंजाब में 15 फीसदी किसानों ने डीएसआर तकनीक से धान की खेती की थी. हरियाणा में 4-5 फीसदी धान की खेती इसी पद्धति से हुई थी.

बडोली गांव पानीपत के रहने वाले किसान सुरेश इस समय उन्नत किसान के रूप में उभरे हैं. सुरेश का कहना है कि इस समय लोगों के खेतों की पैदावार 18 से 20 क्विंटल प्रति एकड़ है. वहीं उसके खेतों की पैदावार 25 से 26 क्विंटल प्रति एकड़ है. सुरेश का कहना है कि इस बार मार्च महीने में गर्मी एकदम बढ़ने के कारण लोगों के खेतों की पैदावार कम हुई है. लेकिन उसके खेतों की पैदावार वैसे की वैसे ही है. सुरेश ने दावा किया कि इस बार भी उन्हें प्रति एकड़ से 25 क्विंटल गेंहू की पैदावार मिली है. उन्होंने बताया कि पैदावार का कारण सिर्फ फसल के अवशेषों से ही खाद बनाकर लिया जा सकता है.

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पानीपत: पराली से होने वाले प्रदूषण और घटते भूजल स्तर को देखते हुए बडौली गांव के किसान (Panipat farmer suresh) ने कुछ ऐसा किया कि वो आज दूसरे किसानों के लिए मिसाल बना हुआ है. पानीपत के किसान सुरेश सिरदर्द बनी पराली का इस्तेमाल खेत की उर्वरक शक्ति बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करते हैं. पराली की वजह से सुरेश प्रति एकड़ में 25 क्विंटल गेहूं या धान की फसल उगा लेता है.

किसान सुरेश का कहना है कि वो सुपर सीडर मशीन की मदद से पराली को बिना जलाए ही खेतों में मिला देते हैं. जिससे पराली डी कंपोस्ट हो जाती है. इससे खेत की उर्वरक क्षमता बढ़ाती है. जिससे कि फसल की पैदावार पर सकारात्मक असर पड़ता है. किसान का मानना है कि सुपर सीडर मशीन से पराली जलाने की समस्या भी दूर हो जाती है और प्रदूषण भी नहीं फैलता. सबसे अच्छी बात ये है कि इससे फसल की पैदावार में भी बढ़ोतरी होती है. किसान सुरेश पानी की कमी को लेकर भी सजग है.

पराली को खाद बनाकर हरियाणा के किसान ने बढ़ाई खेतों की उर्वरक क्षमता

पानी की बढ़ती समस्या को देखते हुए सुरेश खेतों में पानी पाइप लाइन विधि से देता है. धान की फसल में सबसे जायदा जरूरत पानी की होती है, तो सुरेश पानी की बचत के लिए धान की बिजाई DSR विधि (Direct Seeding Of Rice) से करता है. किसान का कहना है की धान की पारंपरिक रोपाई करने से पानी की खपत जायदा होती है और पैदावार भी कम होती है.

क्या है डीएसआर टेक्निक? इस तकनीक में धान की नर्सरी तैयार करने की बजाय बीजों की खेत में सीधे बुवाई कर दी जाती है. ऐसा माना जाता है कि इस तकनीक को अपनाने से खेत की ज्यादा जुताई नहीं करना पड़ती. जिससे मिट्टी में पर्याप्त पोषक तत्व बने रहते हैं. पिछले साल पंजाब में 15 फीसदी किसानों ने डीएसआर तकनीक से धान की खेती की थी. हरियाणा में 4-5 फीसदी धान की खेती इसी पद्धति से हुई थी.

बडोली गांव पानीपत के रहने वाले किसान सुरेश इस समय उन्नत किसान के रूप में उभरे हैं. सुरेश का कहना है कि इस समय लोगों के खेतों की पैदावार 18 से 20 क्विंटल प्रति एकड़ है. वहीं उसके खेतों की पैदावार 25 से 26 क्विंटल प्रति एकड़ है. सुरेश का कहना है कि इस बार मार्च महीने में गर्मी एकदम बढ़ने के कारण लोगों के खेतों की पैदावार कम हुई है. लेकिन उसके खेतों की पैदावार वैसे की वैसे ही है. सुरेश ने दावा किया कि इस बार भी उन्हें प्रति एकड़ से 25 क्विंटल गेंहू की पैदावार मिली है. उन्होंने बताया कि पैदावार का कारण सिर्फ फसल के अवशेषों से ही खाद बनाकर लिया जा सकता है.

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