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Navratri special - पानीपत के प्राचीन देवी मंदिर में होती है हर मुराद पूरी, जानिए कैसे देवी की करें आराधना

Navratri special - 15 अक्टूबर रविवार से 9 दिवसीय शारदीय नवरात्रि शुरू हो रही है. रविवार को घटस्थापना की जाएगी. 23 अक्टूबर तक ये पर्व चलेगा.घटस्थापना के अलावा अष्टमी, नवमी का विशेष महत्व है. इस बार माता रानी हाथी की सवारी कर आ रही हैं. नवरात्रि पर पानीपत के प्राचीन देवी मंदिर में भक्तों का हुजूम उमड़ता है. कहा जाता है कि यहां आने वाले तमाम भक्तों की हर मुराद पूरी होती है.

Panipat Devi Temple fulfills Every wish of Devotees
पानीपत के प्राचीन देवी मंदिर में होती है हर मुराद पूरी
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By ETV Bharat Haryana Team

Published : Oct 14, 2023, 4:03 PM IST

Updated : Oct 15, 2023, 8:42 AM IST

पानीपत : हरियाणा के ऐतिहासिक मंदिरों में से एक मंदिर है पानीपत का देवी मंदिर. इस मंदिर को पानीपत में युद्ध के दौरान मराठों ने बनवाया था. हरियाणा के ऐतिहासिक धरोहर में से ऐतिहासिक देवी मंदिर भी एक धरोहर है। इस मंदिर में दूर-दूर से श्रद्धालु मन्नत मांगने के लिए आते हैं और कहा जाता है कि भक्तों की यहां हर मुराद पूरी हो जाती है.

मंदिर का इतिहास : पानीपत के ऐतिहासिक प्राचीन मराठा देवी मंदिर का इतिहास बहुत ही पुराना है. कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 18वीं सदी में मराठा सरदार सदाशिव भाऊ ने करवाया था. कहते हैं कि मराठों में देवी मां के लिए अटूट श्रद्धा थी. मराठों ने ही मंदिर के बाहर बने तालाब का निर्माण भी करवाया था. इतिहासकार रमेश पुहाल की माने तो मंदिर पहले से ही कि बना हुआ था, पर मंदिर इतना विशाल नहीं था जितना आज के युग में है.

Panipat Devi Temple fulfills Every wish of Devotees
पानीपत में प्राचीन मराठा देवी मंदिर.

ये भी पढ़ें : Panipat Samosa: पानीपत का समोसे वाला सोशल मीडिया पर हो रहा वायरल, यूनिक नाम ने दिलाई पहचान

पानीपत आई थी मराठों की फौज : 1761 में मुगलों और मराठों की लड़ाई में सदाशिव भाऊ अपनी फौज के साथ दिल्ली फतह करने के बाद कुरुक्षेत्र की ओर जा रहे थे. तभी सदाशिव भाऊ की फौज को पता चला कि अहमद शाह अब्दाली ने फिर से आक्रमण कर दिया है और वो सोनीपत के गन्नौर के पास आ पहुंचा है तो वहां से मराठों की फौज वापस पानीपत आ गई. एक सुरक्षित जगह ढूंढते हुए फौज पानीपत के उस जगह पहुंची जहां आज ये देवी मंदिर है.

Panipat Devi Temple fulfills Every wish of Devotees
पानीपत में युद्ध के दौरान मराठों ने बनवाया था मंदिर.

मां तुलजा भवानी की पूजा : देवी मंदिर में उस समय पुजारी बाले राम पंडित हुआ करते थे. सदाशिव ने वहां बाले राम पंडित के साथ मिलकर पूरे देवी मंदिर का निरीक्षण किया और अपनी फौज को रुकने के लिए कहा. पेशवाओं की महिलाएं अपने साथ देवी तुलजा भवानी की मूर्ति ले कर आई थी जिसकी वे सुबह शाम पूजा किया करती थी. तालाब के साथ ही महिलाओं ने इस मूर्ति को स्थापित कर दिया और पूजा अर्चना करने लगीं. 1761 के युद्ध के बाद मराठे यहां से ग्वालियर चले गए. 10 साल बाद 1771 में मराठों ने यहां दोबारा पहुंचकर एक छोटे से मंदिर का निर्माण करवाया और देवी तुलजा की मूर्ति भी वहीं स्थापित कर दी।

ये भी पढ़ें : Dog Lover in Panipat Haryana: जानवरों के प्रति ऐसा प्रेम, कर दिया अपनी खुशियों का भी त्याग, जानिए कैसे एक हादसे ने रूबी को बना दिया डॉग लवर

नायाब हीरों से बनी हुई थी मूर्ति : लोगों का मानना है कि देवी तुलजा भवानी की मूर्ति जो पेशवा साथ लाए थे, उसके ऊपर हीरे जड़े हुए थे. लेकिन आज सिर्फ मूर्ति की आंखों में ही हीरे मौजूद हैं जिसकी चमक में भी दिव्यता नज़र आती है.

हर मुराद होगी पूरी : हर साल आने वाले नवरात्रि में यहां विशाल मेला लगता है. देश के दूर-दूर से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं और कहा जाता है कि जो कोई यहां सच्ची श्रद्धा के साथ मनोकामना मांगता है, वो जरूर पूरी होती है.

पानीपत : हरियाणा के ऐतिहासिक मंदिरों में से एक मंदिर है पानीपत का देवी मंदिर. इस मंदिर को पानीपत में युद्ध के दौरान मराठों ने बनवाया था. हरियाणा के ऐतिहासिक धरोहर में से ऐतिहासिक देवी मंदिर भी एक धरोहर है। इस मंदिर में दूर-दूर से श्रद्धालु मन्नत मांगने के लिए आते हैं और कहा जाता है कि भक्तों की यहां हर मुराद पूरी हो जाती है.

मंदिर का इतिहास : पानीपत के ऐतिहासिक प्राचीन मराठा देवी मंदिर का इतिहास बहुत ही पुराना है. कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 18वीं सदी में मराठा सरदार सदाशिव भाऊ ने करवाया था. कहते हैं कि मराठों में देवी मां के लिए अटूट श्रद्धा थी. मराठों ने ही मंदिर के बाहर बने तालाब का निर्माण भी करवाया था. इतिहासकार रमेश पुहाल की माने तो मंदिर पहले से ही कि बना हुआ था, पर मंदिर इतना विशाल नहीं था जितना आज के युग में है.

Panipat Devi Temple fulfills Every wish of Devotees
पानीपत में प्राचीन मराठा देवी मंदिर.

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पानीपत आई थी मराठों की फौज : 1761 में मुगलों और मराठों की लड़ाई में सदाशिव भाऊ अपनी फौज के साथ दिल्ली फतह करने के बाद कुरुक्षेत्र की ओर जा रहे थे. तभी सदाशिव भाऊ की फौज को पता चला कि अहमद शाह अब्दाली ने फिर से आक्रमण कर दिया है और वो सोनीपत के गन्नौर के पास आ पहुंचा है तो वहां से मराठों की फौज वापस पानीपत आ गई. एक सुरक्षित जगह ढूंढते हुए फौज पानीपत के उस जगह पहुंची जहां आज ये देवी मंदिर है.

Panipat Devi Temple fulfills Every wish of Devotees
पानीपत में युद्ध के दौरान मराठों ने बनवाया था मंदिर.

मां तुलजा भवानी की पूजा : देवी मंदिर में उस समय पुजारी बाले राम पंडित हुआ करते थे. सदाशिव ने वहां बाले राम पंडित के साथ मिलकर पूरे देवी मंदिर का निरीक्षण किया और अपनी फौज को रुकने के लिए कहा. पेशवाओं की महिलाएं अपने साथ देवी तुलजा भवानी की मूर्ति ले कर आई थी जिसकी वे सुबह शाम पूजा किया करती थी. तालाब के साथ ही महिलाओं ने इस मूर्ति को स्थापित कर दिया और पूजा अर्चना करने लगीं. 1761 के युद्ध के बाद मराठे यहां से ग्वालियर चले गए. 10 साल बाद 1771 में मराठों ने यहां दोबारा पहुंचकर एक छोटे से मंदिर का निर्माण करवाया और देवी तुलजा की मूर्ति भी वहीं स्थापित कर दी।

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नायाब हीरों से बनी हुई थी मूर्ति : लोगों का मानना है कि देवी तुलजा भवानी की मूर्ति जो पेशवा साथ लाए थे, उसके ऊपर हीरे जड़े हुए थे. लेकिन आज सिर्फ मूर्ति की आंखों में ही हीरे मौजूद हैं जिसकी चमक में भी दिव्यता नज़र आती है.

हर मुराद होगी पूरी : हर साल आने वाले नवरात्रि में यहां विशाल मेला लगता है. देश के दूर-दूर से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं और कहा जाता है कि जो कोई यहां सच्ची श्रद्धा के साथ मनोकामना मांगता है, वो जरूर पूरी होती है.

Last Updated : Oct 15, 2023, 8:42 AM IST
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