पानीपत: पंजाब से अलग होने के बाद 1 नवंबर 1966 को हरियाणा राज्य का गठन हुआ था. उस वक्त हरियाणा की पहचान बंजर भूमि और कंकरीट जंगल के रूप में हुई, लेकिन बदलते वक्त के साथ-साथ हरियाणा ने विकास की दुनिया में नए आयाम स्थापित किए. आज हरियाणा गिनती विकासशील प्रदेशों में होती है. 56 साल का पूरा हो चुका हरियाणा आज 57वां जन्मदिवस (haryana day 2022) मना रहा है.
इस मौके पर हम आपको बताएंगे पानीपत जिले का इतिहास. वैसे तो आजादी के बाद से ही हरियाणा की बुनकर नगरी पानीपत का टेक्सटाइल उद्योग (panipat textile industries) लगातार फलफूल रहा है. 1 नवंबर 1966 को जब हरियाणा अस्तित्व में आया था. तब पानीपत करनाल जिले का ही हिस्सा था. 31 अक्टूबर 1989 तक पानीपत करनाल का ही हिस्सा था. 1 नवंबर 1989 को पानीपत करनाल जिले से अलग होकर अलग जिला बना.
तब से लेकर आजतक पानीपत ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. हरियाणा के खजाने को भरने में बुनकरों की नगरी पानीपत अपना बड़ा योगदान दे रहा है. हरियाणा बनने के बाद कभी पानीपत का रेवेन्यू प्रदेश में सबसे ऊपर होता था. रेवेन्यू के मामले में आज पानीपत गुरुग्राम, फरीदाबाद के बाद तीसरे नंबर पर अपनी जगह बनाए हुए है. पानीपत में कंबल उद्योग आजादी से पहले का है. आजादी से पहले पानीपत एक मुस्लिम बहुलय क्षेत्र था.
यहां मुस्लिम बिरादरी के बुनकर दरिया बनाने का काम करते थे. बंटवारे के बाद पाकिस्तान से लईया और जंग बिरादरी के लोग रोहतक में आए थे. उनका काम भी दरिया और कंबल बनाने के व्यवसाय (panipat handloom market) था. पाकिस्तान से आए ये लोग उस्ताद संत लाल की अगुवाई में गांधी जी से मिले और पानीपत में आकर बस गए. जिसके बाद उन्होंने रोजगार के लिए अपने घरों में खड्डियां लगाकर दरिया बनाना शुरू कर दिया.
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उसके बाद ये उद्योग लगातार बढ़ता चला गया. साल 1971 में 50 हजार रुपये के टेक्सटाइल और हैंडलूम प्रोडक्ट एक्सपोर्ट किए गए थे. पहले चीन के बनाए गए प्रोडक्ट्स का विदेशों पर कब्जा था. धीरे-धीरे पानीपत के बनने वाले माल की क्वालिटी में सुधार आता चला गया और नई नई तकनीक बढ़ती गई. जिससे की चीन की बादशाहत कम हो गई. पानीपत ने विदेश में भी इस व्यापार को विस्तार दिया. आज पानीपत से लगभग 25 हजार करोड़ रुपये टेक्सटाइल का प्रोडक्ट एक्सपोर्ट किया जाता है.