ETV Bharat / state

इस किले को भेदने में छूट जाते थे दुश्मनों के छक्के, जानिए 1300 ईसवीं में बने कोटला के किले की कहानी

author img

By

Published : Dec 1, 2019, 12:04 AM IST

नवाब नाहर खान ने दुश्मनों के छक्के छुड़ाने के लिए हजारों फुट ऊंचाई पर किले का निर्माण करवाया था. किले में एक गुफा है, जिसकी गहराई आज तक कोई नहीं माप पाया. वहीं इस किले के पास कई प्रकृतिक झरने भी हैं.

story of kotala fort of nuh in aravalli mountain range
जानिए 1300 ईसवीं में बने कोटला के किले की कहानी

नूंह: करीब 1200 सालों का इतिहास समेटे मेवों का क्षेत्र मेवात कई ऐतिहासिक कहानियों और किलों की गाथा गाता है. ऐसी ही ऐतिहासिक कहानियों की खोज में हमारी टीम पहुंची अरावली पर्वत के बीच कोटला गांव में. ऊंचाई पर बने कोटला किले का जायजा लेने के लिए हमारी टीम ने जान जोखिम में डाल कर उबड़-खाबड़ पहाड़ के रास्ते को पार करते हुए किले तक का सफर तय किया. करीब 1 घंटे की दुर्गम रास्ते पर चलने के बाद हम पहुंच गए पहाड़ की चोटी पर 1300 ईसवीं में बने नवाब नाहर खान के किले में.

जानिए 1300 ईसवीं में बने कोटला के किले की कहानी, देखिए वीडियो

किले मचानों से रखी जाती थी दुश्मन पर नजर!
नवाब नाहर खान ने दुश्मनों के छक्के छुड़ाने के लिए हजारों फुट ऊंचाई पर किले का निर्माण करवाया था. किले के चारों तरफ निगरानी के लिए मचाने बनवाई गई हैं. इस किले में सुरंग से लेकर घुड़साल और तालाब भी बनवाया गया था. कोटला गांव के चारों तरफ बड़ी, चौड़ी और ऊंची दीवार थी. किले पास ही सदियों से पानी के प्राकृतिक झरने बहते हैं.

युद्ध में हसन खान ने दिया था राणा सांघा का साथ
नाहर खान वंशज शहीद राजा हसन खान मेवाती थे, जिनके नाम पर आज मेडिकल कॉलेज का नामकरण सूबे की सरकार कर चुकी है. बताया जाता है कि हसन खान मेवाती ने राणा सांघा और बाबर के बीच जो युद्ध हुआ था, उसमें हसन खान मेवाती ने बाबर का नहीं बल्कि राणा सांघा का साथ दिया था. उस वीर शहीद को आज भी लोग मेवात में याद करते हुए सीना चौड़ा कर लेते हैं, देशभक्ति के साथ-साथ हिन्दू-मुस्लिम भाई-चारे को उस समय भी हसन खान मेवाती ने बढ़ाया था.

ये भी पढ़ेंः- किस्सा हरियाणे का: ये है शाह चोखा की दरगाह जहां बादशाह अकबर की मुराद हुई थी पूरी

'आज तक कोई माप ना पाया सुरंग की गहराई'

किले में एक गुफा है, जिसकी गहराई आज तक कोई नहीं माप पाया. लोग बताते हैं की गुफा फिरोजपुर झिरका में जाकर निकली थी, ऐसा भी तब हुआ जब गाय को ढूढ़ने के लिए लोग इस गुफा में उतरे थे. दिए के लिए सवा मन सरसों का तेल लेकर गए थे, लेकिन गाय नहीं मिली. तकरीबन 30 किलोमीटर दूर गाय ढूंढने वाले लोग फिरोजपुर झिरका में जाकर निकले.

इसके अलावा 1300 ईसवीं में ही फिरोजशाह तुगलक के वंशज ने बड़े विशालकाय पत्थरों से मस्जिद का निर्माण भी करवाया. इस मस्जिद के निर्माण में गारे-मसाले का कम ही इस्तेमाल हुआ. हैरत इस बात की है कि मेवात की इन ऐतिहासिक इमारतों की पुरात्तव विभाग से लेकर केंद्र और सूबे सरकार ने कभी ध्यान नहीं दिया. किला बदहाल होता जा रहा है. आज इस किले को जीर्णोद्धार की जरुरत है. ताकि इतिहास को जिंदा रखने वाली इमारतों को आने वाली पीढ़ियां नजदीकी से देख सकें.

ये भी पढ़ें- किस्सा हरियाणे का: यहां रखे हैं गुरु गोबिंद सिंह जी के 300 साल पुराने जूते

नूंह: करीब 1200 सालों का इतिहास समेटे मेवों का क्षेत्र मेवात कई ऐतिहासिक कहानियों और किलों की गाथा गाता है. ऐसी ही ऐतिहासिक कहानियों की खोज में हमारी टीम पहुंची अरावली पर्वत के बीच कोटला गांव में. ऊंचाई पर बने कोटला किले का जायजा लेने के लिए हमारी टीम ने जान जोखिम में डाल कर उबड़-खाबड़ पहाड़ के रास्ते को पार करते हुए किले तक का सफर तय किया. करीब 1 घंटे की दुर्गम रास्ते पर चलने के बाद हम पहुंच गए पहाड़ की चोटी पर 1300 ईसवीं में बने नवाब नाहर खान के किले में.

जानिए 1300 ईसवीं में बने कोटला के किले की कहानी, देखिए वीडियो

किले मचानों से रखी जाती थी दुश्मन पर नजर!
नवाब नाहर खान ने दुश्मनों के छक्के छुड़ाने के लिए हजारों फुट ऊंचाई पर किले का निर्माण करवाया था. किले के चारों तरफ निगरानी के लिए मचाने बनवाई गई हैं. इस किले में सुरंग से लेकर घुड़साल और तालाब भी बनवाया गया था. कोटला गांव के चारों तरफ बड़ी, चौड़ी और ऊंची दीवार थी. किले पास ही सदियों से पानी के प्राकृतिक झरने बहते हैं.

युद्ध में हसन खान ने दिया था राणा सांघा का साथ
नाहर खान वंशज शहीद राजा हसन खान मेवाती थे, जिनके नाम पर आज मेडिकल कॉलेज का नामकरण सूबे की सरकार कर चुकी है. बताया जाता है कि हसन खान मेवाती ने राणा सांघा और बाबर के बीच जो युद्ध हुआ था, उसमें हसन खान मेवाती ने बाबर का नहीं बल्कि राणा सांघा का साथ दिया था. उस वीर शहीद को आज भी लोग मेवात में याद करते हुए सीना चौड़ा कर लेते हैं, देशभक्ति के साथ-साथ हिन्दू-मुस्लिम भाई-चारे को उस समय भी हसन खान मेवाती ने बढ़ाया था.

ये भी पढ़ेंः- किस्सा हरियाणे का: ये है शाह चोखा की दरगाह जहां बादशाह अकबर की मुराद हुई थी पूरी

'आज तक कोई माप ना पाया सुरंग की गहराई'

किले में एक गुफा है, जिसकी गहराई आज तक कोई नहीं माप पाया. लोग बताते हैं की गुफा फिरोजपुर झिरका में जाकर निकली थी, ऐसा भी तब हुआ जब गाय को ढूढ़ने के लिए लोग इस गुफा में उतरे थे. दिए के लिए सवा मन सरसों का तेल लेकर गए थे, लेकिन गाय नहीं मिली. तकरीबन 30 किलोमीटर दूर गाय ढूंढने वाले लोग फिरोजपुर झिरका में जाकर निकले.

इसके अलावा 1300 ईसवीं में ही फिरोजशाह तुगलक के वंशज ने बड़े विशालकाय पत्थरों से मस्जिद का निर्माण भी करवाया. इस मस्जिद के निर्माण में गारे-मसाले का कम ही इस्तेमाल हुआ. हैरत इस बात की है कि मेवात की इन ऐतिहासिक इमारतों की पुरात्तव विभाग से लेकर केंद्र और सूबे सरकार ने कभी ध्यान नहीं दिया. किला बदहाल होता जा रहा है. आज इस किले को जीर्णोद्धार की जरुरत है. ताकि इतिहास को जिंदा रखने वाली इमारतों को आने वाली पीढ़ियां नजदीकी से देख सकें.

ये भी पढ़ें- किस्सा हरियाणे का: यहां रखे हैं गुरु गोबिंद सिंह जी के 300 साल पुराने जूते

Intro:संवाददाता नूंह मेवात।

स्टोरी ;- अरावली पर्वत की चोटी पर  करीब 1300 ईसवीं में  बना कोटला किला  बदहाल।

जिले के कोटला गांव में अरावली पर्वत की चोटी पर  करीब 1300 ईसवीं में नवाब नाहर खान ने दुश्मनों के छक्के छुड़ाने के लिए हजारों फुट ऊंचाई पर किले का निर्माण कराया। किले के चारों तरफ निगरानी के लिए मचाने बनवाई गई। सुरंग से लेकर घुड़साल और तालाब भी बनवाया गया था। घोड़ों को तिजारा राजस्थान की तरफ से किले तक पहुँचाया जाता था। कोटला गांव के चारों तरफ बड़ी चौड़ी और ऊँची दीवार थी। दुश्मनों से हिफाजत के लिए शाम ढलते ही दो दरवाजे थे, जिन्हें बंद कर दिया जाता था । किले के ठीक समीप से सदियों से पानी झरने बहते हैं। झरने के पानी से महिलाएं कपडे धोती हैं ,साथ ही पशुओं को भी लोग पानी पिलाते हैं। कई सौ फुट ऊंचाई से झरने का पानी गिरता है ,जो कुदरत का बेजोड़ नमूना है। इस मुकाम और ऊंचाई पर बने कोटला किले का जायजा लेने के लिए हमारी टीम ने जान जोखिम में डाल कर उबड़ -खाबड़ पहाड़ के रास्ते को पार करते हुए किले तक का सफर तय किया। बताया जाता है की कोटला की राजधानी को तहस -नहस करने के लिए राजाओं हमले , शायद उसी का नतीजा है की अरावली की चोटी पर इस किले का निर्माण नवाब नाहर खान ने किया। नाहर खान वंशज शहीद राजा हसन खान मेवाती थे ,जिनके नाम पर आज मेडिकल कालेज का नामकरण सूबे की सरकार कर चुकी है। हसन खान मेवाती ने राणा सांघा और बाबर के बीच जो युद्ध हुआ था ,उसमें हसन खान मेवाती ने बाबर का नहीं बल्कि राणा सांघा का साथ दिया था। उस वीर शहीद को आज भी लोग मेवात में याद करते हुए सीना चौड़ा कर लेते हैं। वतनपरस्ती के साथ -साथ हिन्दू -मुस्लिम भाई चारे को उस समय भी हसन खान मेवाती ने बढ़ाया था। इसके अलावा 1300 ईसवीं में ही फिरोजशाह तुगलक के वंशज ने बड़े विशालकाय पत्थरों से मस्जिद का निर्माण कराया। इस मस्जिद के निर्माण में गारे -मसाले का कम ही इस्तेमाल हुआ। हैरत इस बात की है की मेवात की इन ऐतिहासिक इमारतों की पुरात्तव विभाग लेकर केंद्र व सूबे सरकार ने कभी ध्यान नहीं दिया। किले का बदहाल होता जा रहा है। किले में एक गुफा है ,जिसकी गहराई आज तक कोई नहीं माप पाया। लोग बताते हैं की गुफा फिरोजपुर झिरका में जाकर निकली थी ,ऐसा भी तब हुआ जब गाय को ढूढ़ने के लिए लोग इस गुफा में उतरे थे। दिए के लिए सवा मन सरसों का तेल लेकर गए थे ,लेकिन गाय नहीं मिली। तक़रीबन 30 किलोमीटर दूर गाय ढूँढने वाले लोग फिरोजपुर झिरका में जाकर निकले। आज इस किले को जीर्णोद्धार की जरुरत है। ताकि इतिहास को जीवित रखने वाली इमारतों को आने वाली पीढ़ियां नजदीक से देख सकें।

बाइट ;- जाकिर कोटला ग्रमीण।
बाइट ;-  शौकीन कोटला ग्रामीण।

संवाददाता कासिम खान नूंह मेवात। Body:संवाददाता नूंह मेवात।

स्टोरी ;- अरावली पर्वत की चोटी पर  करीब 1300 ईसवीं में  बना कोटला किला  बदहाल।

जिले के कोटला गांव में अरावली पर्वत की चोटी पर  करीब 1300 ईसवीं में नवाब नाहर खान ने दुश्मनों के छक्के छुड़ाने के लिए हजारों फुट ऊंचाई पर किले का निर्माण कराया। किले के चारों तरफ निगरानी के लिए मचाने बनवाई गई। सुरंग से लेकर घुड़साल और तालाब भी बनवाया गया था। घोड़ों को तिजारा राजस्थान की तरफ से किले तक पहुँचाया जाता था। कोटला गांव के चारों तरफ बड़ी चौड़ी और ऊँची दीवार थी। दुश्मनों से हिफाजत के लिए शाम ढलते ही दो दरवाजे थे, जिन्हें बंद कर दिया जाता था । किले के ठीक समीप से सदियों से पानी झरने बहते हैं। झरने के पानी से महिलाएं कपडे धोती हैं ,साथ ही पशुओं को भी लोग पानी पिलाते हैं। कई सौ फुट ऊंचाई से झरने का पानी गिरता है ,जो कुदरत का बेजोड़ नमूना है। इस मुकाम और ऊंचाई पर बने कोटला किले का जायजा लेने के लिए हमारी टीम ने जान जोखिम में डाल कर उबड़ -खाबड़ पहाड़ के रास्ते को पार करते हुए किले तक का सफर तय किया। बताया जाता है की कोटला की राजधानी को तहस -नहस करने के लिए राजाओं हमले , शायद उसी का नतीजा है की अरावली की चोटी पर इस किले का निर्माण नवाब नाहर खान ने किया। नाहर खान वंशज शहीद राजा हसन खान मेवाती थे ,जिनके नाम पर आज मेडिकल कालेज का नामकरण सूबे की सरकार कर चुकी है। हसन खान मेवाती ने राणा सांघा और बाबर के बीच जो युद्ध हुआ था ,उसमें हसन खान मेवाती ने बाबर का नहीं बल्कि राणा सांघा का साथ दिया था। उस वीर शहीद को आज भी लोग मेवात में याद करते हुए सीना चौड़ा कर लेते हैं। वतनपरस्ती के साथ -साथ हिन्दू -मुस्लिम भाई चारे को उस समय भी हसन खान मेवाती ने बढ़ाया था। इसके अलावा 1300 ईसवीं में ही फिरोजशाह तुगलक के वंशज ने बड़े विशालकाय पत्थरों से मस्जिद का निर्माण कराया। इस मस्जिद के निर्माण में गारे -मसाले का कम ही इस्तेमाल हुआ। हैरत इस बात की है की मेवात की इन ऐतिहासिक इमारतों की पुरात्तव विभाग लेकर केंद्र व सूबे सरकार ने कभी ध्यान नहीं दिया। किले का बदहाल होता जा रहा है। किले में एक गुफा है ,जिसकी गहराई आज तक कोई नहीं माप पाया। लोग बताते हैं की गुफा फिरोजपुर झिरका में जाकर निकली थी ,ऐसा भी तब हुआ जब गाय को ढूढ़ने के लिए लोग इस गुफा में उतरे थे। दिए के लिए सवा मन सरसों का तेल लेकर गए थे ,लेकिन गाय नहीं मिली। तक़रीबन 30 किलोमीटर दूर गाय ढूँढने वाले लोग फिरोजपुर झिरका में जाकर निकले। आज इस किले को जीर्णोद्धार की जरुरत है। ताकि इतिहास को जीवित रखने वाली इमारतों को आने वाली पीढ़ियां नजदीक से देख सकें।

बाइट ;- जाकिर कोटला ग्रमीण।
बाइट ;-  शौकीन कोटला ग्रामीण।

संवाददाता कासिम खान नूंह मेवात। Conclusion:संवाददाता नूंह मेवात।

स्टोरी ;- अरावली पर्वत की चोटी पर  करीब 1300 ईसवीं में  बना कोटला किला  बदहाल।

जिले के कोटला गांव में अरावली पर्वत की चोटी पर  करीब 1300 ईसवीं में नवाब नाहर खान ने दुश्मनों के छक्के छुड़ाने के लिए हजारों फुट ऊंचाई पर किले का निर्माण कराया। किले के चारों तरफ निगरानी के लिए मचाने बनवाई गई। सुरंग से लेकर घुड़साल और तालाब भी बनवाया गया था। घोड़ों को तिजारा राजस्थान की तरफ से किले तक पहुँचाया जाता था। कोटला गांव के चारों तरफ बड़ी चौड़ी और ऊँची दीवार थी। दुश्मनों से हिफाजत के लिए शाम ढलते ही दो दरवाजे थे, जिन्हें बंद कर दिया जाता था । किले के ठीक समीप से सदियों से पानी झरने बहते हैं। झरने के पानी से महिलाएं कपडे धोती हैं ,साथ ही पशुओं को भी लोग पानी पिलाते हैं। कई सौ फुट ऊंचाई से झरने का पानी गिरता है ,जो कुदरत का बेजोड़ नमूना है। इस मुकाम और ऊंचाई पर बने कोटला किले का जायजा लेने के लिए हमारी टीम ने जान जोखिम में डाल कर उबड़ -खाबड़ पहाड़ के रास्ते को पार करते हुए किले तक का सफर तय किया। बताया जाता है की कोटला की राजधानी को तहस -नहस करने के लिए राजाओं हमले , शायद उसी का नतीजा है की अरावली की चोटी पर इस किले का निर्माण नवाब नाहर खान ने किया। नाहर खान वंशज शहीद राजा हसन खान मेवाती थे ,जिनके नाम पर आज मेडिकल कालेज का नामकरण सूबे की सरकार कर चुकी है। हसन खान मेवाती ने राणा सांघा और बाबर के बीच जो युद्ध हुआ था ,उसमें हसन खान मेवाती ने बाबर का नहीं बल्कि राणा सांघा का साथ दिया था। उस वीर शहीद को आज भी लोग मेवात में याद करते हुए सीना चौड़ा कर लेते हैं। वतनपरस्ती के साथ -साथ हिन्दू -मुस्लिम भाई चारे को उस समय भी हसन खान मेवाती ने बढ़ाया था। इसके अलावा 1300 ईसवीं में ही फिरोजशाह तुगलक के वंशज ने बड़े विशालकाय पत्थरों से मस्जिद का निर्माण कराया। इस मस्जिद के निर्माण में गारे -मसाले का कम ही इस्तेमाल हुआ। हैरत इस बात की है की मेवात की इन ऐतिहासिक इमारतों की पुरात्तव विभाग लेकर केंद्र व सूबे सरकार ने कभी ध्यान नहीं दिया। किले का बदहाल होता जा रहा है। किले में एक गुफा है ,जिसकी गहराई आज तक कोई नहीं माप पाया। लोग बताते हैं की गुफा फिरोजपुर झिरका में जाकर निकली थी ,ऐसा भी तब हुआ जब गाय को ढूढ़ने के लिए लोग इस गुफा में उतरे थे। दिए के लिए सवा मन सरसों का तेल लेकर गए थे ,लेकिन गाय नहीं मिली। तक़रीबन 30 किलोमीटर दूर गाय ढूँढने वाले लोग फिरोजपुर झिरका में जाकर निकले। आज इस किले को जीर्णोद्धार की जरुरत है। ताकि इतिहास को जीवित रखने वाली इमारतों को आने वाली पीढ़ियां नजदीक से देख सकें।

बाइट ;- जाकिर कोटला ग्रमीण।
बाइट ;-  शौकीन कोटला ग्रामीण।

संवाददाता कासिम खान नूंह मेवात।
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.