नूंह: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से महज 70 किलोमीटर की दूरी पर बसा नूंह जिले का छापड़ा गांव अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है. देश-प्रदेश भले ही तेजी से तरक्की कर रहा हो, लेकिन ये गांव तरक्की के ऐतबार से हर क्षेत्र में पिछड़ा हुआ है. सबसे बड़ी बात तो ये है कि इस गांव में एक भी सरकारी कर्मचारी नहीं है.
छापड़ा गांव में पढ़े लिखे युवाओं की तो कमी नहीं है, लेकिन रोजगार ने इस गांव की चौखट पर दस्तक अभी तक नहीं दी. गांव में बिजली, पानी, सिंचाई, चिकित्सा, स्वच्छता का कहीं नामोनिशान तक नहीं मिलता.
आपको बता दें कि छापड़ा गांव की आबादी 3000 के करीब है. 700 के करीब इस गांव में मतदाता है. ये गांव गजरपुर ग्राम पंचायत में आता है. गांव में सिर्फ एक गली पक्की है. तालाब में गंदगी की भरमार है. पीने का पानी कभी-कभार आता है, जो पीने योग्य नहीं है.
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विकास की रफ्तार इस गांव में इतनी तेज है कि आजादी के 70 साल गुजर जाने के बाद भी इस गांव में सिर्फ पांचवीं तक का स्कूल है. जिसकी हालत बद से बदतर है. स्टाफ की भी कमी है. गांव की लड़कियां दूरदराज गांवों में जाने की वजह से पढ़ाई छोड़ने को मजबूर हैं.
सरकारों ने तो गांव पर कभी ध्यान नहीं दिया, लेकिन प्रणब मुखर्जी फाउंडेशन की मदद से गांव में पिछले दो-तीन सालों से बच्चों को पढ़ाने के लिए पाठशाला चलाई जा रही है. इसमें कोरोना काल में ऑनलाइन शिक्षा दी जा रही है. इसमें तकरीबन 60 छात्र- छात्राएं शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं.
छापड़ा गांव वैसे तो बिजली विभाग के जगमग गांव की सूची में है, लेकिन इस गांव में बिजली बहुत ही कम आती है. गांव में कहीं से भी विकास नजर नहीं आता. ग्राम पंचायत, सरपंच, पंचायत समिति, जिला पार्षद, विधायक, सांसद सबकी नजर से ये गांव विकास के ऐतबार से दूर ही रहा.