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बाजार में घटी मिट्टी बने सामान की डिमांड, आर्थिक संकट की मार झेल रहे कुम्हार

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Published : May 10, 2022, 3:46 PM IST

मेहनत से मिट्टी को आकार देते हुए कुम्हारों को पिछले कुछ सालों से भारी नुकसान (Financial crisis on potters in Nuh) उठाना पड़ रहा है. वहीं दूसरी ओर चीन निर्मित वस्तुओं का आयात और बड़े पैमाने पर भारत के बाजारों में उनका व्यवसाय भी उनके आर्थिक पिछड़ेपन का एक प्रमुख कारण रहा है

Earthenware demand reduced
बाजार में घटी मिट्टी बने सामानों की डिमांड, आर्थिक संकट की मार झेल रहे कुम्हार

नूंह: बड़े पैमाने पर प्लास्टिक, फाइबर व अन्य मिश्रित धातुओं से निर्मित वस्तुओं का उत्पादन और घर-घर तक इनकी पहुंच से जहां एक ओर कुम्हार (प्रजापति) समुदाय के पुश्तैनी कारोबार को पिछले कुछ सालों से भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है. वहीं दूसरी ओर चीन निर्मित वस्तुओं का आयात और बड़े पैमाने पर भारत के बाजारों में उनका व्यवसाय भी उनके आर्थिक पिछड़ेपन का एक प्रमुख कारण रहा है.

अत्यधिक मेहनत और लागत के बाद कम बचत और बढ़ती महंगाई ने कुम्हारों को इस धंधे से दूर कर दिया. रही सही कसर चिकनी मिट्टी की कमी ने पूरी कर दी. जंहा पहले कुम्हारों को मिट्टी फ्री मिलती थी. वही अब एक ट्रैक्टर मिट्टी 2000 से 3000 रुपये में आती है. ऐसे ही अनेक कारण है जिन्होंने हाथ के दस्तकारों को सिसकने (Financial crisis on potters in Nuh) के लिए मजबूर किया है. मेवात जिले के बिछौर गांव के कुम्हार समाज के लोगों भी अपनी कहानी कुछ इसी तरह बयां करतें है.

बाजार में घटी मिट्टी बने सामानों की डिमांड, आर्थिक संकट की मार झेल रहे कुम्हार

कमल सिंह प्रजापति ने कहा कि करीब 5 दशक पहले बिछौर गांव में ही 20 से अधिक परिवार मिट्टी के बर्तन व अन्य वस्तुएं बनाने का कार्य करते थे. उस समय कुम्हारों को पंचायत की तरफ से दी गई जमीन से खूब चिकनी मिट्टी मिला करती थी. मिट्टी में पकड़ मजबूत थी. लोग शीतल पेय के लिए मिट्टी से निर्मित बर्तनों, घड़ा,मटका, सुराही का प्रयोग करते थे. मिट्टी से बने बच्चों के खिलौने जैसे गुल्लक,चाखी,चीलम, सहित दूध व खाना पकाने के लिए भी मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग किया जाता था लेकिन अत्यधिक मेहनत और लागत के बाद कम बचत व बढ़ती महंगाई ने कुम्हारों को इस धंधे से दूर कर दिया.

Earthenware demand reduced
कुम्हारों को पिछले कुछ सालों से भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है

उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार की प्रशंसा करते हुए कहा कि अपने हाथ की कला को बरकरार रखने के लिए उत्तर प्रदेश में कुम्हार समुदाय के लोगों को घर-घर में फ्री बिजली के चाक व औजार दिए गए हैं लेकिन हरियाणा में सरकार द्वारा किसी भी तरह की योजना से हमें लाभ नही मिल रहा है. इतना ही नहीं करीब 5 सालों से गांव में चिकनी मिट्टी नही है जिसकों लेकर केई बार आला अधिकारियों से मिले हैं लेकिन अभी तक बर्तन बनाने के लिए बाहर से महंगे दामों पर मिट्टी खरीदने को मजबूर हैं. उन्होंने कहा कि सरकार को कुम्हार समुदाय के लोगों पर भी ध्यान देना चाहिए जिससे कुम्हार समाज अपने पुश्तैनी पेशे से दूर न हो और आत्मनिर्भर भारत बनने में देश का सहयोग कर सकें.

Earthenware demand reduced
बिछौर गांव के मटकों की अपने आप में एक अलग ही पहचान है. जंहा पूरे जिले में लाल रंग से बने हुए मटके मिलते है.

वही फूलचंद प्रजापति कहते हैं कि डॉक्टरों की मानें तो गर्मी में पसीना अधिक बह जाने के कारण समय-समय पर पर्याप्त पानी पीना बेहद जरूरी है. बर्फ या फ्रिज का अधिक ठंडा पानी आपको राहत तो देगा लेकिन आपकी सेहत के लिए ठीक नहीं होगी. अधिक ठंडा पानी न केवल आपका पाचन बिगाड़ सकता है बल्कि गले में खराश जुकाम या खांसी जैसी समस्याएं भी पैदा कर सकता है. मटके में रखे पानी में किसी भी प्रकार की केमिकल नहीं होते. पानी के मिनरल सीधे ही आपके शरीर में जाकर भोजन पाचन में मददगार होते हैं. इसके अलावा मटके का पानी शरीर में मेटाबॉलिज्म को बेहतर बनाता है.

Earthenware demand reduced
चीन निर्मित वस्तुओं का आयात के चलते देश में बने मिट्टी के सामानों की डिमांड कम हो चुकी है.

वहीं दूसरी ओर अगर आप पानी बोतल में स्टोर करके फ्रिज में रखते हैं तो कुछ समय बाद पानी में प्लास्टिक के हानिकारक तत्व घुल जाते हैं इस प्रकार के प्रदूषित पानी पीने से बचें फ्रिज की अपेक्षा मटके का पानी काफी हल्का होता है. मिट्टी में आयरन भरपूर मात्रा में मौजूद रहता है मटके के पानी में भीनी भीनी खुशबू भी आपको काफी राहत देती है. सरकार हाथ के दस्तकारों की तरफ भी ध्यान दे और मिट्टी के काम को बढ़ावा देने के लिए समाज को विभिन्न सरकारी योजनाओं से जोड़ा जाए.

Earthenware demand reduced
हरियाणा में सरकार द्वारा किसी भी तरह की योजना से हमें लाभ नही मिल रहा है

ग्रामीण महेंद्र जेमनी ने कहा की जंहा करीब 7 दशक पहले गांव बिछौर में 30 से 40 परिवार मिट्टी का कार्य करते थे. अब सिर्फ 2 परिवार ही मिट्टी के बर्तन बनाते है. साथ ही युवा पीढ़ी भी दिलचस्पी नहीं ले रही है. उन्होंने कहा कि जिले में पुन्हाना,फिरोजपुर झिरका,पिनगवां,नूंह,तावडू सहित अन्य स्थानों पर मटको की दुकानें सजी हुई है. इस मौसम में लोग अपने घरों में अलग-अलग साइज के मटके खरीद कर ले जाते हैं लेकिन पुन्हाना उपमंडल के बड़े बिछौर गांव के मटकों की अपने आप में एक अलग ही पहचान है. जंहा पूरे जिले में लाल रंग से बने हुए मटके मिलते है. वंही गांव में ग्रामीणों की मांग पर कंकर के मटके बनाएं जाते है. जिनमें न केवल ठंडा पानी रहता है बल्कि दिखने में भी सबसे अलग होते है. गांव में बनाए गए मटको की गर्मियों में आस-पास के दर्जनों गांवो में भारी डिमांड होती है.

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नूंह: बड़े पैमाने पर प्लास्टिक, फाइबर व अन्य मिश्रित धातुओं से निर्मित वस्तुओं का उत्पादन और घर-घर तक इनकी पहुंच से जहां एक ओर कुम्हार (प्रजापति) समुदाय के पुश्तैनी कारोबार को पिछले कुछ सालों से भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है. वहीं दूसरी ओर चीन निर्मित वस्तुओं का आयात और बड़े पैमाने पर भारत के बाजारों में उनका व्यवसाय भी उनके आर्थिक पिछड़ेपन का एक प्रमुख कारण रहा है.

अत्यधिक मेहनत और लागत के बाद कम बचत और बढ़ती महंगाई ने कुम्हारों को इस धंधे से दूर कर दिया. रही सही कसर चिकनी मिट्टी की कमी ने पूरी कर दी. जंहा पहले कुम्हारों को मिट्टी फ्री मिलती थी. वही अब एक ट्रैक्टर मिट्टी 2000 से 3000 रुपये में आती है. ऐसे ही अनेक कारण है जिन्होंने हाथ के दस्तकारों को सिसकने (Financial crisis on potters in Nuh) के लिए मजबूर किया है. मेवात जिले के बिछौर गांव के कुम्हार समाज के लोगों भी अपनी कहानी कुछ इसी तरह बयां करतें है.

बाजार में घटी मिट्टी बने सामानों की डिमांड, आर्थिक संकट की मार झेल रहे कुम्हार

कमल सिंह प्रजापति ने कहा कि करीब 5 दशक पहले बिछौर गांव में ही 20 से अधिक परिवार मिट्टी के बर्तन व अन्य वस्तुएं बनाने का कार्य करते थे. उस समय कुम्हारों को पंचायत की तरफ से दी गई जमीन से खूब चिकनी मिट्टी मिला करती थी. मिट्टी में पकड़ मजबूत थी. लोग शीतल पेय के लिए मिट्टी से निर्मित बर्तनों, घड़ा,मटका, सुराही का प्रयोग करते थे. मिट्टी से बने बच्चों के खिलौने जैसे गुल्लक,चाखी,चीलम, सहित दूध व खाना पकाने के लिए भी मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग किया जाता था लेकिन अत्यधिक मेहनत और लागत के बाद कम बचत व बढ़ती महंगाई ने कुम्हारों को इस धंधे से दूर कर दिया.

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कुम्हारों को पिछले कुछ सालों से भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है

उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार की प्रशंसा करते हुए कहा कि अपने हाथ की कला को बरकरार रखने के लिए उत्तर प्रदेश में कुम्हार समुदाय के लोगों को घर-घर में फ्री बिजली के चाक व औजार दिए गए हैं लेकिन हरियाणा में सरकार द्वारा किसी भी तरह की योजना से हमें लाभ नही मिल रहा है. इतना ही नहीं करीब 5 सालों से गांव में चिकनी मिट्टी नही है जिसकों लेकर केई बार आला अधिकारियों से मिले हैं लेकिन अभी तक बर्तन बनाने के लिए बाहर से महंगे दामों पर मिट्टी खरीदने को मजबूर हैं. उन्होंने कहा कि सरकार को कुम्हार समुदाय के लोगों पर भी ध्यान देना चाहिए जिससे कुम्हार समाज अपने पुश्तैनी पेशे से दूर न हो और आत्मनिर्भर भारत बनने में देश का सहयोग कर सकें.

Earthenware demand reduced
बिछौर गांव के मटकों की अपने आप में एक अलग ही पहचान है. जंहा पूरे जिले में लाल रंग से बने हुए मटके मिलते है.

वही फूलचंद प्रजापति कहते हैं कि डॉक्टरों की मानें तो गर्मी में पसीना अधिक बह जाने के कारण समय-समय पर पर्याप्त पानी पीना बेहद जरूरी है. बर्फ या फ्रिज का अधिक ठंडा पानी आपको राहत तो देगा लेकिन आपकी सेहत के लिए ठीक नहीं होगी. अधिक ठंडा पानी न केवल आपका पाचन बिगाड़ सकता है बल्कि गले में खराश जुकाम या खांसी जैसी समस्याएं भी पैदा कर सकता है. मटके में रखे पानी में किसी भी प्रकार की केमिकल नहीं होते. पानी के मिनरल सीधे ही आपके शरीर में जाकर भोजन पाचन में मददगार होते हैं. इसके अलावा मटके का पानी शरीर में मेटाबॉलिज्म को बेहतर बनाता है.

Earthenware demand reduced
चीन निर्मित वस्तुओं का आयात के चलते देश में बने मिट्टी के सामानों की डिमांड कम हो चुकी है.

वहीं दूसरी ओर अगर आप पानी बोतल में स्टोर करके फ्रिज में रखते हैं तो कुछ समय बाद पानी में प्लास्टिक के हानिकारक तत्व घुल जाते हैं इस प्रकार के प्रदूषित पानी पीने से बचें फ्रिज की अपेक्षा मटके का पानी काफी हल्का होता है. मिट्टी में आयरन भरपूर मात्रा में मौजूद रहता है मटके के पानी में भीनी भीनी खुशबू भी आपको काफी राहत देती है. सरकार हाथ के दस्तकारों की तरफ भी ध्यान दे और मिट्टी के काम को बढ़ावा देने के लिए समाज को विभिन्न सरकारी योजनाओं से जोड़ा जाए.

Earthenware demand reduced
हरियाणा में सरकार द्वारा किसी भी तरह की योजना से हमें लाभ नही मिल रहा है

ग्रामीण महेंद्र जेमनी ने कहा की जंहा करीब 7 दशक पहले गांव बिछौर में 30 से 40 परिवार मिट्टी का कार्य करते थे. अब सिर्फ 2 परिवार ही मिट्टी के बर्तन बनाते है. साथ ही युवा पीढ़ी भी दिलचस्पी नहीं ले रही है. उन्होंने कहा कि जिले में पुन्हाना,फिरोजपुर झिरका,पिनगवां,नूंह,तावडू सहित अन्य स्थानों पर मटको की दुकानें सजी हुई है. इस मौसम में लोग अपने घरों में अलग-अलग साइज के मटके खरीद कर ले जाते हैं लेकिन पुन्हाना उपमंडल के बड़े बिछौर गांव के मटकों की अपने आप में एक अलग ही पहचान है. जंहा पूरे जिले में लाल रंग से बने हुए मटके मिलते है. वंही गांव में ग्रामीणों की मांग पर कंकर के मटके बनाएं जाते है. जिनमें न केवल ठंडा पानी रहता है बल्कि दिखने में भी सबसे अलग होते है. गांव में बनाए गए मटको की गर्मियों में आस-पास के दर्जनों गांवो में भारी डिमांड होती है.

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