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इन तीन नई तकनीकों को अपनाकर किसान कमा सकते हैं डबल मुनाफा, ऐसे ले सकते हैं लाभ

किसान बागवानी विभाग (Horticulture Department Nuh) नई-नई तकनीक के जरिए किसानों को खेती करने के लिए प्रेरित कर रहा है. किसान भी अब परंपरागत खेती को छोड़कर बागवानी की तरफ रुख कर रहे हैं.

Horticulture Department Nuh
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Published : Oct 30, 2021, 12:59 PM IST

नूंह: किसान बागवानी विभाग (Horticulture Department Nuh) नई-नई तकनीक के जरिए किसानों को खेती करने के लिए प्रेरित कर रहा है. मल्चिंग (Mulching Farming Techniques), स्टेकिंग (staking farming techniques) और ड्रिप तकनीक (drip irrigation technology) के बारे में विभाग किसानों को लगातार जागरुक भी कर रहा है. किसान बागवानी विभाग के इस प्रयास का असर भी अब दिखने लगा है. किसान अब परंपरागत खेती को छोड़कर बागवानी की तरफ रुख कर रहे हैं.

क्या है मल्चिंग तकनीक? मिट्टी ऊपर की सतह को ढककर रखने को मल्चिंग कहा जाता है. इस तकनीक में मिट्टी की सतह पर जैविक खाद का की लेयर बिछा दी जाती है. जिससे कि वाष्पित प्रक्रिया धीमी हो जाती है. इससे मिट्टी का तापमान बरकरार रहता है. जिससे खरपतवार और जंगली घास के विकास में रुकावट पैदा होती है. इस प्रक्रिया को मल्चिंग कहते हैं. इससे किसानों की लागत कम लगती है जबकि मुनाफा ज्यादा होता है. जिला बागवानी अधिकारी डॉक्टर दीन मोहम्मद ने बताया कि मल्चिंग प्रणाली पर 6400 प्रति एकड़ सब्सिडी सरकार द्वारा दी जाती है. अगर सब्जी की बात करें तो 80000 प्रति एकड़ सरकार सब्सिडी देती है.

इन तीन नई तकनीकों को अपनाकर किसान कमा सकते हैं डबल मुनाफा,

क्या है बांस स्टेकिंग तकनीक? स्टेकिंग तकनीक से खेती करने के लिए खेतों में बने हुए मेड़ के आसपास लगभग 10 फीट की दूरी पर 10-10 फीट के ऊंचे बांस के डंडे खड़े कर दिए जाते हैं. उसके बाद इन डंडों पर दो फीट की ऊंचाई पर लोहे का तार बांध दिया जाता है. लोहे का तार बांधने के बाद सब्जियों के पौधों को सुतली की सहायता से तार के साथ बांध दिया जाता है. जमीन से दूरी होने की वजह से इस तकनीक में सब्जियों में कीड़े लगने की संभावना ना के बराबर रहती है.

बांस स्टेकिंग प्रणाली पर प्रति एकड़ 31250 का अनुदान राज्य सरकार द्वारा किसानों को दिया जाता है. जिला बागवानी अधिकारी डॉक्टर दीन मोहम्मद ने बताया कि मेरी फसल मेरा ब्योरा पर किसान रजिस्ट्रेशन कर सकते हैं. इसके बाद राशि सीधे किसानों के खाते में आ जाती है.

क्या है ड्रिप सिंचाई या तकनीक? ये सिंचाई की एक उन्नत तकनीक है जो पानी की बचत करती है. इस विधि में पानी बूंद-बूंद करके पौधे या पेड़ की जड़ में सीधा पहुंचाया जाता है. जिससे पौधे की जड़ें पानी को धीरे-धीरे सोखते रहते हैं. इस विधि में पानी के साथ उर्वरकों को भी सीधा पौध की जड़ में पहुंचाया जाता है. जिसे फ्रटीगेसन कहते हैं. डॉक्टर दीन मोहम्मद ने बताया कि बागवानी को बढ़ाने के लिए मुख्यमंत्री बागवानी बीमा योजना की शुरुआत की गई है. जिसके लिए किसान पोर्टल पर आवेदन कर सकते हैं.

ये भी पढ़ें- घटते भूजल से परेशान किसान ने लगाया बेर का बाग, अब एक एकड़ से कमा रहा 80 हजार रुपये

उन्होंने बताया कि ढाई प्रतिशत प्रीमियम के हिसाब से प्रति एकड़ 750 सब्सिडी फसलों पर तथा बाग की फसलों पर ₹1000 प्रति एकड़ के हिसाब से प्रीमियम के लिए आवेदन किया जाता है. उन्होंने बताया कि अगर सब्जी फसलें पूरी तरह खराब हो जाती हैं तो 30000 तक सरकार मुआवजा देती है और बाकी फसल अगर खराब हो जाती है तो ₹40000 प्रति एकड़ के हिसाब से मुआवजा मिलता है. जिला बागवानी अधिकारी ने कहा जिले के किसान ज्यादा से ज्यादा बागवानी विभाग की स्कीमों का लाभ उठाकर अपनी आमदनी को 2 गुना बढ़ा सकते हैं.

नूंह: किसान बागवानी विभाग (Horticulture Department Nuh) नई-नई तकनीक के जरिए किसानों को खेती करने के लिए प्रेरित कर रहा है. मल्चिंग (Mulching Farming Techniques), स्टेकिंग (staking farming techniques) और ड्रिप तकनीक (drip irrigation technology) के बारे में विभाग किसानों को लगातार जागरुक भी कर रहा है. किसान बागवानी विभाग के इस प्रयास का असर भी अब दिखने लगा है. किसान अब परंपरागत खेती को छोड़कर बागवानी की तरफ रुख कर रहे हैं.

क्या है मल्चिंग तकनीक? मिट्टी ऊपर की सतह को ढककर रखने को मल्चिंग कहा जाता है. इस तकनीक में मिट्टी की सतह पर जैविक खाद का की लेयर बिछा दी जाती है. जिससे कि वाष्पित प्रक्रिया धीमी हो जाती है. इससे मिट्टी का तापमान बरकरार रहता है. जिससे खरपतवार और जंगली घास के विकास में रुकावट पैदा होती है. इस प्रक्रिया को मल्चिंग कहते हैं. इससे किसानों की लागत कम लगती है जबकि मुनाफा ज्यादा होता है. जिला बागवानी अधिकारी डॉक्टर दीन मोहम्मद ने बताया कि मल्चिंग प्रणाली पर 6400 प्रति एकड़ सब्सिडी सरकार द्वारा दी जाती है. अगर सब्जी की बात करें तो 80000 प्रति एकड़ सरकार सब्सिडी देती है.

इन तीन नई तकनीकों को अपनाकर किसान कमा सकते हैं डबल मुनाफा,

क्या है बांस स्टेकिंग तकनीक? स्टेकिंग तकनीक से खेती करने के लिए खेतों में बने हुए मेड़ के आसपास लगभग 10 फीट की दूरी पर 10-10 फीट के ऊंचे बांस के डंडे खड़े कर दिए जाते हैं. उसके बाद इन डंडों पर दो फीट की ऊंचाई पर लोहे का तार बांध दिया जाता है. लोहे का तार बांधने के बाद सब्जियों के पौधों को सुतली की सहायता से तार के साथ बांध दिया जाता है. जमीन से दूरी होने की वजह से इस तकनीक में सब्जियों में कीड़े लगने की संभावना ना के बराबर रहती है.

बांस स्टेकिंग प्रणाली पर प्रति एकड़ 31250 का अनुदान राज्य सरकार द्वारा किसानों को दिया जाता है. जिला बागवानी अधिकारी डॉक्टर दीन मोहम्मद ने बताया कि मेरी फसल मेरा ब्योरा पर किसान रजिस्ट्रेशन कर सकते हैं. इसके बाद राशि सीधे किसानों के खाते में आ जाती है.

क्या है ड्रिप सिंचाई या तकनीक? ये सिंचाई की एक उन्नत तकनीक है जो पानी की बचत करती है. इस विधि में पानी बूंद-बूंद करके पौधे या पेड़ की जड़ में सीधा पहुंचाया जाता है. जिससे पौधे की जड़ें पानी को धीरे-धीरे सोखते रहते हैं. इस विधि में पानी के साथ उर्वरकों को भी सीधा पौध की जड़ में पहुंचाया जाता है. जिसे फ्रटीगेसन कहते हैं. डॉक्टर दीन मोहम्मद ने बताया कि बागवानी को बढ़ाने के लिए मुख्यमंत्री बागवानी बीमा योजना की शुरुआत की गई है. जिसके लिए किसान पोर्टल पर आवेदन कर सकते हैं.

ये भी पढ़ें- घटते भूजल से परेशान किसान ने लगाया बेर का बाग, अब एक एकड़ से कमा रहा 80 हजार रुपये

उन्होंने बताया कि ढाई प्रतिशत प्रीमियम के हिसाब से प्रति एकड़ 750 सब्सिडी फसलों पर तथा बाग की फसलों पर ₹1000 प्रति एकड़ के हिसाब से प्रीमियम के लिए आवेदन किया जाता है. उन्होंने बताया कि अगर सब्जी फसलें पूरी तरह खराब हो जाती हैं तो 30000 तक सरकार मुआवजा देती है और बाकी फसल अगर खराब हो जाती है तो ₹40000 प्रति एकड़ के हिसाब से मुआवजा मिलता है. जिला बागवानी अधिकारी ने कहा जिले के किसान ज्यादा से ज्यादा बागवानी विभाग की स्कीमों का लाभ उठाकर अपनी आमदनी को 2 गुना बढ़ा सकते हैं.

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