नूंह: टिड्डी दल ने नूंह जिले के पुन्हाना और फिरोजपुर झिरका खंड के किसानों की मुश्किल बढ़ा दी है. टिड्डी दल ने किसान के पशु चारे ज्वार/ बाजरा की खेती पर सीधा हमला बोला है. कोरोना वायरस के साथ-साथ बरसात में लगातार हो रही देरी से किसान पहले ही चिंतित और परेशान था. अब रही सही कसर टिड्डी दल ने पूरी कर दी है.
सरकार व कृषि विभाग ने टिड्डी दल को रोकने के बड़े-बड़े दावे किए थे, लेकिन उसके बावजूद भी टिड्डी दल ने जिले के दर्जनों गांव में अपना डेरा डाल लिया है. हालांकि कृषि विभाग टिड्डी दल को मारने व भगाने में जुटा हुआ है, लेकिन किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें टिड्डी दल को देखकर साफ देखी जा सकती है. नूंह जिले के किसान बड़ी तादाद में आई टिड्डियों से बेहद परेशान.
दरअसल, एक तो नूंह जिले में पहले ही लगातार बरसात में हो रही देरी व जमीनी तथा खेत में नहरी पानी नहीं होने से किसान परेशान था. बरसात में ज्वार/ बाजरे की खेती होने के आसार जग रहे थे, लेकिन बरसात शुरू होने से पहले ही छोटी-छोटी ज्वार /बाजरे की फसलों पर टिड्डी दल ने हमला बोल दिया. कपास की खेती पर भी टिड्डी दल का असर साफ देखा जा सकता है. नूंह में अब आसमान से फसलों तक जहां भी नजर डाल रहे हैं तो चारों तरफ टिड्डी दल ही नजर आता है.
हरियाणा में बना हुआ है टिड्डी दल का खतरा
अब देखना ये है कि टिड्डी दल कब तक जिले में डेरा डाले रहता है और किसानों की फसलों को टिड्डी दल से कितना नुकसान होता है. सरकार व कृषि विभाग टिड्डी दल के हमले से कैसे निपटती है, इस पर भी इलाके के किसानों की नजर लगी हुई है. किसानों का कहना है कि अभी तो टिड्डी दल जिले के पुन्हाना इलाके में आया है, अगर ये कुछ दिन में नहीं मारा गया या नहीं भगाया गया तो इसके गंभीर परिणाम किसानों को भुगतने पड़ सकते हैं.
गौरतलब है कि टिड्डी दल पिछले वर्ष ही देश में आ गए थे. पिछले वर्ष पश्चिमी भारत में मानसून सामान्य से कई सप्ताह पहले शुरू हुआ और नवंबर तक सक्रिय रहा. मानसून लंबा होने के कारण टिड्डियों के लिए न केवल प्रचुर मात्रा में भोजन देने वाली वनस्पतियां बहुतायत में पैदा हुई वहीं प्रजनन की अनुकूल स्थिति मिल गई. वहीं प्रदेश में खतरा अभी बरकरार है. हरियाणा में टिड्डियों का इतना बड़ा हमला वर्ष 1993 के बाद पहली बार हुआ है तब दक्षिण हरियाणा में कपास व बाजरे की फसल को नुकसान पहुंचा था.
टिड्डी दल के खाने की क्षमता 10 हाथी से भी ज्यादा है
टिड्डी चेतावनी संगठन की मानें तो ऐतिहासिक रूप से रेगिस्तानी टिड्डी हमेशा से ही मानव कल्याण की दृष्टि से बड़ा खतरा रही है. प्राचीन ग्रंथों बाइबल और पवित्र कुरान में रेगिस्तानी टिड्डी को मनुष्यों के लिए अभिशाप के रूप में माना गया है. टिड्डी द्वारा की गई क्षति और नुकसान का दायरा इतना बड़ा है जो कल्पना से भी परे है, क्योंकि इनकी बहुत अधिक खाने की क्षमता के कारण भुखमरी तक की स्थिति उत्पन्न हो जाती है.
औसत रूप से एक छोटे टिड्डी का झुंड एक दिन में इतना खाना खा जाता है, जितना दस हाथी, 25 ऊंट या 2500 व्यक्ति खा सकते हैं. टिड्डियां पत्ते, फूल, फल, बीज, तने और उगते हुए पौधों को खाकर नुकसान पहुंचाती हैं और जब ये टिड्डी दल पेड़ों पर बैठता है तो इनके भार से पेड़ तक टूट जाते हैं.
अलग-अलग प्रकार की होती है टिड्डी
एक्सपर्ट रिपोर्ट के अनुसार एक दल 740 वर्ग किलोमीटर तक बड़ा हो सकता है. इनसे दुनिया के करीब 60 देश प्रभावित हैं. भारतीय टिड्डी चेतावनी संगठन के अनुसार टिड्डी कई प्रकार की होती है. रेगिस्तानी टिड्डी, बॉम्बे टिड्डी, प्रवासी टिड्डी, इटेलियन टिड्डी, मोरक्को टिड्डी, लाल टिड्डी, भूरी टिड्डी, दक्षिणी अमेरिकन टिड्डी, ऑस्ट्रेलियन टिड्डी एवं वृक्ष टिड्डी प्रमुख प्रजातियां शामिल हैं.
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