नूंह: मुसलमानों का पवित्र ईद-उल-अजहा का पर्व 1 अगस्त को मनाया जाएगा. बकरा ईद के इस पवित्र मौके पर मुसलमान बढ़-चढ़कर बकरा इत्यादि पशुओं की कुर्बानी करते हैं. बकरा ईद के आने का बकरा पालने वाले पशुपालक बड़ी बेसब्री से इंतजार करते हैं. बकरा बेचकर व्यापारी अच्छी खासी आमदनी कर लेते हैं, लेकिन इस बार उनके चेहरे लटके हुए हैं.
नूंह से बकरा ईद पर बकरे बेचने के लिए व्यापारी दिल्ली, मुंबई और कोलकाता जैसे बड़े शहरों में जाते थे. अकेले इस जिले से 100 से 150 गाड़ियां दूसरे राज्यों तक बकरे लेकर जाती थी. इस बार भी यहां के व्यापारियों ने शुरू में बड़े शहरों की ओर रुख किया, लेकिन पुलिस ने उन्हें बॉर्डर पार करने की इजाजत नहीं दी. जिसका नतीजा ये हुआ कि इन्हें अपना माल सस्ते में बेचना पड़ा. इतना सस्ता कि जो बकरा पहले 30 से 40 हजार में बिकता था वो अब 15 से 20 हजार तक में बेचना पड़ा है.
ईद-उल-अजहा पर कोरोना संकट
कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो ईद से एक महीना पहले ही बकरा खरीदते हैं और ईद पर बेचते हैं. इस एक महीने में एक बकरे के रखरखाव और खुराक पर लगभग 5 हजार का खर्च होता है जो इस बार पूरा डूब गया है. उधर खरीदारों को बकरे सस्ते तो मिल रहे हैं लेकिन ज्यादातर लोगों का काम बंद है तो ये सस्ते बकरे भी उन्हें महंगे लग रहे हैं और मंडी ना लगने से परेशानी हो रही है सो अलग.
नूंह जिले में बहुत से लोग बकरा पालन काम करते हैं और राजस्थान से कई नस्ल के बकरे खरीदकर लाते हैं. साल भर उन्हें पालते हैं. उनको महंगा खाना खिलाते हैं और तब बकरा ईद की कुर्बानी के लिए उनको तैयार करते हैं, लेकिन इस बार खरीदार नहीं होने से उनके चेहरे मुरझाए हुए हैं.
पहले जैसी नहीं होगी बकरा ईद!
कोरोना काल में कुर्बानी करने वाले, बकरों का व्यापार करने वाले और वाहन चालक तक परेशान हैं. बकरों के रिवाड़े अब खाली हो चुके हैं. बकरा व्यापारी उन्हें गाड़ियों में भरकर बेचने के लिए दूरदराज शहरों में ले गए, लेकिन खबर यही है कि बकरे या तो उन शहरों तक पहुंच ही नहीं रहे या फिर खरीदार नहीं मिल रहे. कुल मिलाकर बकरा ईद इस बार फीकी रहने वाली है.
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