कुरुक्षेत्र: लाडवा अनाज मंडी में गेहूं का सीजन बीतने के बाद अब सलेहरी औषधि की आवक शुरू हो गई है. हरियाणा, पंजाब और राजस्थान की सीमा से सटे होने के कारण किसान अपनी सलेहरी की फसल को बेचने लाडवा मंडी में पहुंचते हैं.
सलेहरी फसल का इतिहास भी काफी पुराना है. सन 1960 में पंजाब के एक किसान सरदार प्रीतपाल सिंह इसे फ्रांस से लेकर भारत आए थे. ये एक ऐसा कृषि उत्पाद है जो 100% निर्यात होता है. इसकी खरीद हरियाणा और पंजाब की सिर्फ दो अनाज मंडियों में होती है. एक अमृतसर और एक लाडवा अनाज मंडी में सलेहरी खरीदी जाती है.
क्या है सलेहरी ?
सलेहरी एक प्रकार की औषधि है. इसे नवंबर महीने में मटर की फसल के साथ उगाया जाता है. जब मटर की फसल लगभग तैयार हो जाती है तो इसका पौधा भी बड़ा होने लगता है और जब मटर की फसल खत्म हो जाती है तो ये मौसम में गर्मी बढ़ते ही पकने लगती है. सबसे बड़ी बात ये है कि इसको कपास, बांस, मटर के साथ उसी खेत में उगाया जा सकता है और इसे एक बार लगाया जाता है अगली बार ये खेत में खुद ही उग जाती है.
ये देखने में बिल्कुल अजवाइन जैसी होती है. इसका उपयोग अधिकतर ठंडे क्षेत्रों में किया जाता है और इसके तेल का उपयोग दवाइयां बनाने में किया जाता है और बचे हुए भूसे से पशुओं के लिए दवाइयां बनाई जाती है. हरियाणा के 10% किसान की इस खेती को कर रहे हैं.
इस फसल को अधिकतर हरियाणा और पंजाब के किसान ही अपने खेतों में उगाते हैं और इसकी खरीद दो ही मंडियों में होती है. इस फसल को उगाने में लागत बहुत ही कम है और मुनाफा कहीं ज्यादा. पहले किसान इसके साथ उगाई गई फसल से मुनाफा कमाता है और फिर उसी खेत से सलेहरी की फसल से मुनाफा कमाता है.
लागत बिल्कुल कम और मुनाफा कही ज्यादा
सलेहरी की कीमत 6 हजार प्रति क्विंटल से लेकर 9 हजार रुपये प्रति क्विंटल तक है और ये 1 एकड़ में लगभग 4 से 7 क्विंटल तक पैदा हो जाती है. अगर मुनाफे की बात की जाए तो किसान 1 एकड़ से लगभग इस फसल से 63 हजार रुपये कमा सकता है. इस फसल का प्रयोग अधिकतर दवा बनाने के साथ-साथ खाद्य पदार्थ को लंबे समय तक सहेजकर रखने के लिए किया जाता है.
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