कुरुक्षेत्र: धर्मनगरी में जल्द ही अंतरराष्ट्रीय गीता जयंति महोत्सव मनाया जाने वाला है. प्रशासन इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए कमरकस कर तैयारियों में लगा हुआ है, लेकिन धर्मनगरी की पहचान और पौराणिक मान्यताओं को समेटे हुए सन्निहित सरोवर की लगातार अनदेखी की जा रही है. हजारों सालों की मान्यताओं के समेटे इस सरोवर की हालत देख कर किसी को दया आ जाए.
कुरुक्षेत्र केवल महाभारत के कारण ही प्रसिद्ध नहीं है, बल्कि कई ऐतिहासिक घटनाओं के कारण भी दुनियाभर जाना जाता है. महाराज कुरु के नाम से बसे इस शहर में समय से पर कई प्रकार की सभ्यताओं और संस्कृतियों का जन्म हुआ है. सरस्वती नदी को सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा की पुत्री कहा जाता है.
यहां आदिकाल में 9 नदियां और 7 वन थे. अतीत में ब्रह्म सरोवर का नाम ब्रह्मा वेदी के नाम पर रका गया था. राजा कुरु के नाम से कुरुक्षेत्र का नाम रखा गया. कुरुक्षेत्र का अतीत अत्यंत दिव्य रहा है. सन्निहित सरोवर को लेकर एक और मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इस सरोवर में गोपियों संग स्नान किया था.
हजारों सालों से है सन्निहित सरोवर की मान्यता
बताया जाता है कि वेद, पुराणों में सन्निहित सरोवर की विशेष मान्यता है. इसी सरोवर के पास ऋषियों ने वेदों की रचना की और ब्रह्मा ने विशाल यज्ञ किया. यहीं पर महर्षि दधीचि ने इंद्र को अस्ति दान किया था. आज विशाल ब्रह्मसरोवर जहां डुबकी लगाने के लिए हजारों मील से श्रद्धालु पहुंचते हैं वो इसी सन्निहित सरोवर का एक हिस्सा है.
मान्यता है कि यहां सूर्यग्रहण के अवसर पर स्नान किया जाए तो अश्वमेघ यज्ञ के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है. यह कुंड 1800 फिट लंबा और 14 फीट चौड़ा है. शास्त्रों के अनुसार सूर्य ग्रहण के समय सभी देवी देवता यहां मौजूद रहते हैं. ऐसी मान्यता है कि सूर्यग्रहण के मौके पर ब्रह्मसरोवर और सन्निहित सरोवर में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है.
बदहाली पर आंसू बहा रहा है ये सरोवर!
अब यह प्राचीन और ऐतिहासिक सरोवर अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है. कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड जो कि ऐतिहासिक चीजों के विकास और उनकी देखभाल के दावे करता है वो सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह जाते हैं. सरोवर की गंदगी और गंदे पानी की वजह से श्रद्धालु स्नान करने से भी कतराते हैं. आस्था की वजह से श्रद्धालु यहां आते जरूर हैं, लेकिन बिना स्नान किए ही लौट जाते हैं. कुछ ही दिनों बाद गीता जयंती का आगाज होगा पर यहां सन्निहित सरोवर का की सुध लेने वाला कोई नहीं है.
क्यों महत्वपूर्ण है गीता जयंति
23 नवंबर से गीता महोत्सव मनाया जाने वाला है. इस महोत्सव में शिल्प मेले का भी आयोजन किया जाएगा जिसमें देश के कई कोनों से आए शिल्पकार अपने-अपने शिल्पों की प्रदर्शनी लगाएंगे. इसके साथ ही इसमें सरस मेले का भी आयोजन किया जाएगा. इस मेलों का आयोजन ब्रह्मसरोवर के किनारे किया जा रहा है. ये महोत्सव हरियाणा सरकार की तरफ से हर साल मनाया जाता है. इस मेले के लिए करोड़ो रुपये खर्च किए जाते हैं. वहीं इस मेले में लाखो श्रद्धालु आते हैं. इस मेले के लिए हजारों विदेशी प्रर्यटक भी आते हैं.
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