ETV Bharat / state

जानिए कहां है द्रौपदी कूप? क्या है इसका पौराणिक महत्व ? - International Gita Mahotsav

International Gita Mahotsav: अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव 2023 का आयोजन कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड के द्वारा किया जा रहा है. कुरुक्षेत्र में कई ऐसे क्षेत्र हैं जिनका सम्बन्ध महाभारत काल से है. कुरूक्षेत्र के ब्रह्म सरोवर के बीचों बीच द्रौपदी कूप बना हुआ है जिसका बहुत ज्यादा महत्व है.

know-where-is-draupadi-well-what-is-its-mythological-significance
जानिए कहां है द्रौपदी कूप? क्या है इसका पौराणिक महत्व ?
author img

By ETV Bharat Haryana Team

Published : Dec 9, 2023, 1:19 PM IST

Updated : Dec 9, 2023, 5:29 PM IST

जानिए कहां है द्रौपदी कूप? क्या है इसका पौराणिक महत्व ?

कुरुक्षेत्र: कुरुक्षेत्र के द्रौपदी कूप का पौराणिक महत्व है. जानकारों के मुताबिक जो भी महिला द्रौपदी कूप पर धागा बांधती है उनकी सभी मनोकामना पूरी होती है. भगवान श्री कृष्ण ने जिस तरह द्रौपदी की लाज बचायी थी उसी प्रकार महिलाएं अपनी सुरक्षा और लाज के लिए मां द्रौपदी से आर्शीवाद मांगती है.

द्रौपदी कूप का क्यों महत्व है?: महाभारत युद्ध से पहले जब पांडव जुए में कौरव से हार गये थे तब दुर्योधन ने द्रौपदी को निर्वस्त्र करने की कोशिश की थी. उस समय भगवान कृष्ण ने द्रौपदी की लाज बचायी थी. तब द्रौपदी ने कसम खायी थी कि जब तक वह दुर्योधन के खून से अपने केश नहीं धोएगी तब तक वह न केश धोएगी और न ही बांधेगी. पंडित दुर्गा दत्त के अनुसार जब महाभारत युद्ध के दौरान दुर्योधन की मौत हो गयी तब द्रौपदी ने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार दुर्योधन के खून से केश धोया और ब्रह्म सरोवर के बीचो बीच कूप में स्नान किया. इसके बाद से ही इस कूप को द्रौपदी कूप के नाम से पुकारा जाने लगा. जानकार बताते हैं कि महाभारत युद्ध के पहले पांडवों ने युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए यहां तपस्या की थी.

गुप्त दान से मिलता है बहुत लाभ: पंडित अमरदीप बताते हैं कि ऐसी मान्यता है कि द्रौपदी कूप पर जो लोग गुप्त दान करते हैं उन्हें बहुत ज्याद फल मिलता है. एकादशी के दिन यहां बड़ी संख्या में महिलाएं आती है. इस दिन जो भी मनोकामना मांगी जाती है वह पूरी होती है. महिलाएं गुप्त दान सिंगार भी चढ़ाती है. श्रद्धालु द्रौपदी कूप के साथ साथ बर्बरीक भगवान की भी पूजा अर्चना करते हैं.

द्रौपदी कूप का पानी है लाभकारी: द्रौपदी कूप की खास बात यह है कि इस कूप में जो पानी मौजूद है वह अपने आप में बहुत ही ज्यादा पवित्र है. यह कूप काफी गहरा बताया जाता है जिसके चलते यहां पर ऊपर जालियां लगा दी गई है. पंडित दुर्गा दत्त ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि जब भी ग्रहण लगता है उस दौरान कूप के अंदर का पानी दूध की तरह सफेद हो जाता है. यहां पर पानी लेने के लिए एक नल भी लगाया गया है जिससे श्रद्धालु पानी ले सकते हैं.

पंडितों के अनुसार कुरुक्षेत्र से लगते 5 जिलों में 48 कोस की भूमि मौजूद है. इस 48 कोस की भूमि में 350 से ज्यादा तीर्थ स्थल है जहां पर देश-विदेश से लोग दर्शन करने के लिए आते हैं लेकिन ऐसी मान्यता है कि उनकी यात्रा तभी संपन्न मानी जाती है जब वह 48 कोस की भूमि के तीर्थ की यात्रा करने के बाद द्रौपदी कूप में आकर पूजा अर्चना करें.

ये भी पढ़ें: भिवानी में अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्वस की धूम, खंड स्तरीय प्रतियोगिता में बाल कलाकारों ने बिखेरे संस्कृति के रंग

ये भी पढ़ें: अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव का शंखनाद: कुरुक्षेत्र में सरस व शिल्प मेले का शुभारंभ, शिल्पकारों और कलाकारों ने बिखेरे संस्कृति के रंग

जानिए कहां है द्रौपदी कूप? क्या है इसका पौराणिक महत्व ?

कुरुक्षेत्र: कुरुक्षेत्र के द्रौपदी कूप का पौराणिक महत्व है. जानकारों के मुताबिक जो भी महिला द्रौपदी कूप पर धागा बांधती है उनकी सभी मनोकामना पूरी होती है. भगवान श्री कृष्ण ने जिस तरह द्रौपदी की लाज बचायी थी उसी प्रकार महिलाएं अपनी सुरक्षा और लाज के लिए मां द्रौपदी से आर्शीवाद मांगती है.

द्रौपदी कूप का क्यों महत्व है?: महाभारत युद्ध से पहले जब पांडव जुए में कौरव से हार गये थे तब दुर्योधन ने द्रौपदी को निर्वस्त्र करने की कोशिश की थी. उस समय भगवान कृष्ण ने द्रौपदी की लाज बचायी थी. तब द्रौपदी ने कसम खायी थी कि जब तक वह दुर्योधन के खून से अपने केश नहीं धोएगी तब तक वह न केश धोएगी और न ही बांधेगी. पंडित दुर्गा दत्त के अनुसार जब महाभारत युद्ध के दौरान दुर्योधन की मौत हो गयी तब द्रौपदी ने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार दुर्योधन के खून से केश धोया और ब्रह्म सरोवर के बीचो बीच कूप में स्नान किया. इसके बाद से ही इस कूप को द्रौपदी कूप के नाम से पुकारा जाने लगा. जानकार बताते हैं कि महाभारत युद्ध के पहले पांडवों ने युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए यहां तपस्या की थी.

गुप्त दान से मिलता है बहुत लाभ: पंडित अमरदीप बताते हैं कि ऐसी मान्यता है कि द्रौपदी कूप पर जो लोग गुप्त दान करते हैं उन्हें बहुत ज्याद फल मिलता है. एकादशी के दिन यहां बड़ी संख्या में महिलाएं आती है. इस दिन जो भी मनोकामना मांगी जाती है वह पूरी होती है. महिलाएं गुप्त दान सिंगार भी चढ़ाती है. श्रद्धालु द्रौपदी कूप के साथ साथ बर्बरीक भगवान की भी पूजा अर्चना करते हैं.

द्रौपदी कूप का पानी है लाभकारी: द्रौपदी कूप की खास बात यह है कि इस कूप में जो पानी मौजूद है वह अपने आप में बहुत ही ज्यादा पवित्र है. यह कूप काफी गहरा बताया जाता है जिसके चलते यहां पर ऊपर जालियां लगा दी गई है. पंडित दुर्गा दत्त ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि जब भी ग्रहण लगता है उस दौरान कूप के अंदर का पानी दूध की तरह सफेद हो जाता है. यहां पर पानी लेने के लिए एक नल भी लगाया गया है जिससे श्रद्धालु पानी ले सकते हैं.

पंडितों के अनुसार कुरुक्षेत्र से लगते 5 जिलों में 48 कोस की भूमि मौजूद है. इस 48 कोस की भूमि में 350 से ज्यादा तीर्थ स्थल है जहां पर देश-विदेश से लोग दर्शन करने के लिए आते हैं लेकिन ऐसी मान्यता है कि उनकी यात्रा तभी संपन्न मानी जाती है जब वह 48 कोस की भूमि के तीर्थ की यात्रा करने के बाद द्रौपदी कूप में आकर पूजा अर्चना करें.

ये भी पढ़ें: भिवानी में अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्वस की धूम, खंड स्तरीय प्रतियोगिता में बाल कलाकारों ने बिखेरे संस्कृति के रंग

ये भी पढ़ें: अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव का शंखनाद: कुरुक्षेत्र में सरस व शिल्प मेले का शुभारंभ, शिल्पकारों और कलाकारों ने बिखेरे संस्कृति के रंग

Last Updated : Dec 9, 2023, 5:29 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.