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अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव 2023: प. बंगाल के शिल्पकार ने जीरी के दाने से बना डाली देवी मां की तस्वीर, लोगों को भा रही कलाकृतियां

हरियाणा के कुरुक्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव 2023 में भारी संख्या पर्यटक उमड़ रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में प. बंगाल के शिल्पकार कृष्णा सिंह ने जीरी के एक-एक दाने को जोड़कर देवी मां की खूबसूरत तस्वीरें बनाई हैं. यह तस्वीर अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में आए हुए लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई है. (international geeta mahotsav 2023)

international geeta mahotsav 2023
.अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव 2023 में प. बंगाल के शिल्पकार की कलाकृतियां.
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By ETV Bharat Haryana Team

Published : Dec 10, 2023, 10:16 AM IST

Updated : Dec 11, 2023, 6:26 AM IST

अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव 2023 में प. बंगाल के शिल्पकार की कलाकृतियां.

कुरुक्षेत्र: अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव 2023 पर विभिन्न प्रकार की कला का प्रदर्शन करने के लिए शिल्पकार पहुंचे हुए हैं जो अपने हाथ से बने हुए शिल्प कला का प्रदर्शन कर रहे हैं. वहीं, प. बंगाल से पहुंचे हुए शिल्पकार की कला लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई है. क्योंकि उन्होंने जीरी (धान )के एक-एक दाने को जोड़कर देवी मां की तस्वीर बनाई है. इसे देखने के लिए अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव पर आए हुए पर्यटकों की भारी भीड़ लग रही है. साथ ही भारी संख्या में लोग इसकी खरीदारी कर रहे हैं.

जीरी के दाने से बनाई अनोखी मूर्ति: प. बंगाल के शिल्पकार कृष्णा सिंह ने कहा कि वह पिछले कई दशकों से मूर्ति बनाने का काम कर रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में पिछले 15 वर्षों से आकर अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि पहले वह लोहे, पत्थर, मिट्टी और लकड़ी की मूर्तियां बनाया करते थे, लेकिन वह बहुत ही पुराने हो चुके थे जिसके चलते उन्होंने सोचा कि अपने ग्राहकों के लिए कुछ नए तरीके की मूर्ति तैयार की जाए. ऐसे में उन्होंने जीरी के एक-एक दाने से देवी मां की मूर्ति बनाई ,है जिसको देखने के लिए लोगों की अच्छी भीड़ उमड़ रही है. हालांकि इस मूर्ति का रेट भी कुछ ज्यादा नहीं है. कृष्णा सिंह 500 से ₹700 तक की है बेच रहे हैं, लेकिन कहीं ना कहीं लोगों के लिए मार्केट में कुछ अलग लेकर आए हैं, जिसको लोग खूब पसंद कर रहे हैं.

6 घंटे में तैयार होती है जीरी के दाने से मूर्ति: उन्होंने कहा कि मिट्टी या अन्य चीज से मूर्ति बनाने में समय कम लगता है, लेकिन जीरी के दाने से मूर्ति बनाने में समय लगता है. दरअसल यह बारीकी का काम होता है. कृष्णा सिंह कहते हैं एक दिन में सिर्फ दो ही मूर्ति तैयार हो पाती हैं. करीब 6 से 7 घंटे में एक मूर्ति बनाई जाती है. इसलिए एक व्यक्ति दिन में दो ही मूर्ति बना पाता है. यह मूर्ति टेराकॉट पर जीरी के एक-एक दाने माता की मूर्ति को आकार दिया जाता है. मूर्ति में साज सजावट भी जीरी के दाने से की गई है.

परिवार के 10 से ज्यादा सदस्य टेराकॉट की शिल्प कला बनाने का करते हैं काम: शिल्पकार ने कहा कि वह यह काम कई दशकों से करते आ रहे हैं. इसमें उनके परिवार के सभी सदस्य उनका सहयोग करते हैं. शुरुआती समय में वह टेराकॉट से ही मूर्ति बनाया करते थे, लेकिन अभी उन्होंने और भी कई चीजों से मूर्ति बनाने की शुरुआत की है. उनके परिवार में 10 से ज्यादा सदस्य हैं जो सभी मूर्ति बनाने का काम कई वर्षों से करते आ रहे हैं. यह उनका पुस्तैनी काम है. इसके चलते उनके परिवार की रोजी-रोटी चल रही है. अहम पहलू यह है कि टेराकॉट से हरे रामा हरे कृष्णा, राधे राधे, चैतन्य महाप्रभु और कान्हा का खिलौना विशेष तौर पर तैयार किया जाता है. यह सभी खिलौने अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में वेस्ट बंगाल से तैयार करके लेकर आए हैं. जिसके चलते गीता जयंती में आए हुए पर्यटक उनके स्टॉल पर इन सभी मूर्तियों को देखने के लिए आ रहे हैं और खरीदारी कर रहे हैं.

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पिछले कई दशकों से मूर्ति बनाने का काम कर रहे हैं प. बंगाल के शिल्पकार कृष्णा सिंह.

सोलो वुड से भी देवी मां की मूर्ति की जाती है तैयार: शिल्पकार ने बताया कि वह टेराकॉट के साथ-साथ सोलो वुड से भी देवी माता की तस्वीर तैयार करते हैं. सोलो वुड की लकड़ी काफी शुभ मानी जाती है. यही वजह है कि ज्यादातर घरों में इस लकड़ी से बनी हुई तस्वीर को लेकर जाते हैं और माता की पूजा अर्चना की जाती है.

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पर्यटकों भा रही हैं कलाकृतिया.

1992 में उनके पिता को मिल चुका है स्टेट अवार्ड: शिल्पकार ने बताया कि उनका यह पुश्तैनी काम है जो काफी पीढ़ियों से चला आ रहा है, जिसके चलते उनके परिवार में एक अनोखी कला है. उनके अच्छे काम की सरहाना करते हुए वेस्ट बंगाल सरकार की तरफ से उनके पिता गुरन सिंह को 1992 में स्टेट अवार्ड के खिताब से नवाजा जा चुका है. अवार्ड मिलने के बाद उनके पिता की पूरे राज्य में काफी प्रशंसा की गई जिसके चलते परिवार वालों का हौसला बड़ा और परिवार के सभी सदस्यों ने मिलकर इस काम को और भी अधिक बुलंदियों तक पहुंचाया और जुनून के साथ इस शिल्प कला से जुड़ गए.

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कुरुक्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में पश्चिम बंगाल के शिल्पकार.

समाज से लुप्त हो रही गांव की शिल्पकला को भी खिलौने के माध्यम से दिखाने का प्रयास: शिल्पकार ने कहा कि इस महोत्सव में टेराकॉट से बने कान्हा, हरे रामा हरे कृष्णा का समूह, राधे-राधे, गणेश जी और चैतन्या महाप्रभु के खिलौने तैयार करके लाए हैं. इसके अलावा समाज से लुप्त हो रही गांव की शिल्पकला को भी खिलौने के माध्यम से दिखाने का प्रयास किया गया है. उन्हें इस महोत्सव में आने का इंतजार रहता है, क्योंकि यहां के पर्यटक उनकी इस कला को काफी पसंद करते हैं.

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अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में एक से बढ़कर एक कलाकृतियां.

राज्य और राष्ट्रीय स्तर के सभी मेलों में लगाते हैं स्टॉल: शिल्पकार ने कहा वह पिछले कहीं दशकों से अपने राज्य वेस्ट बंगाल सहित पूरे भारत के सभी बड़े मेलों में जाते हैं और वहां पर अपने शिल्प कला का प्रदर्शन करते हैं. हालांकि वह अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में कोरोना के बाद इस वर्ष आए हैं, जिसके चलते इस पर्यटक के द्वारा उनको खरीदारी करने से काफी अच्छा महसूस हो रहा है. जिसके चलते वह काफी खुश नजर आ रहे हैं.

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कृष्णा सिंह के परिवार के कई सदस्य टेराकॉट की शिल्प कला बनाने का करते हैं काम.

खरीदारी करने वालों का कहना जिंदगी में पहली बार देखी जीरी के दाने से बनी हुई मूर्ति: अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में कुरुक्षेत्र घूमने आई अनुराधा ने कहा कि वह हर वर्ष इस अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में आती हैं, लेकिन उन्होंने पहली बार जीरी के दानों से बनी हुई माता की मूर्ति देखी है जो अपने आप में एक आकर्षण का केंद्र बनी हुई है. अनुराधा कहती हैं कि पहली नजर में ही देखकर यह काफी अच्छी लगी जिसके चलते उन्होंने इस मूर्ति को खरीदा है. वही एक अन्य पर्यटक भारती ने कहा कि यह काफी अच्छी मूर्तियां लेकर आए हुए हैं. देवी देवताओं की मूर्ति काफी अच्छी बनाई गई है, जिसके चलते उन्होंने भी उनके द्वारा बनाई हुई मूर्तियों को खरीदा है.

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समाज से लुप्त हो रही गांव की शिल्पकला को भी खिलौने के माध्यम से दिखाने का प्रयास.

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अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव 2023 में प. बंगाल के शिल्पकार की कलाकृतियां.

कुरुक्षेत्र: अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव 2023 पर विभिन्न प्रकार की कला का प्रदर्शन करने के लिए शिल्पकार पहुंचे हुए हैं जो अपने हाथ से बने हुए शिल्प कला का प्रदर्शन कर रहे हैं. वहीं, प. बंगाल से पहुंचे हुए शिल्पकार की कला लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई है. क्योंकि उन्होंने जीरी (धान )के एक-एक दाने को जोड़कर देवी मां की तस्वीर बनाई है. इसे देखने के लिए अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव पर आए हुए पर्यटकों की भारी भीड़ लग रही है. साथ ही भारी संख्या में लोग इसकी खरीदारी कर रहे हैं.

जीरी के दाने से बनाई अनोखी मूर्ति: प. बंगाल के शिल्पकार कृष्णा सिंह ने कहा कि वह पिछले कई दशकों से मूर्ति बनाने का काम कर रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में पिछले 15 वर्षों से आकर अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि पहले वह लोहे, पत्थर, मिट्टी और लकड़ी की मूर्तियां बनाया करते थे, लेकिन वह बहुत ही पुराने हो चुके थे जिसके चलते उन्होंने सोचा कि अपने ग्राहकों के लिए कुछ नए तरीके की मूर्ति तैयार की जाए. ऐसे में उन्होंने जीरी के एक-एक दाने से देवी मां की मूर्ति बनाई ,है जिसको देखने के लिए लोगों की अच्छी भीड़ उमड़ रही है. हालांकि इस मूर्ति का रेट भी कुछ ज्यादा नहीं है. कृष्णा सिंह 500 से ₹700 तक की है बेच रहे हैं, लेकिन कहीं ना कहीं लोगों के लिए मार्केट में कुछ अलग लेकर आए हैं, जिसको लोग खूब पसंद कर रहे हैं.

6 घंटे में तैयार होती है जीरी के दाने से मूर्ति: उन्होंने कहा कि मिट्टी या अन्य चीज से मूर्ति बनाने में समय कम लगता है, लेकिन जीरी के दाने से मूर्ति बनाने में समय लगता है. दरअसल यह बारीकी का काम होता है. कृष्णा सिंह कहते हैं एक दिन में सिर्फ दो ही मूर्ति तैयार हो पाती हैं. करीब 6 से 7 घंटे में एक मूर्ति बनाई जाती है. इसलिए एक व्यक्ति दिन में दो ही मूर्ति बना पाता है. यह मूर्ति टेराकॉट पर जीरी के एक-एक दाने माता की मूर्ति को आकार दिया जाता है. मूर्ति में साज सजावट भी जीरी के दाने से की गई है.

परिवार के 10 से ज्यादा सदस्य टेराकॉट की शिल्प कला बनाने का करते हैं काम: शिल्पकार ने कहा कि वह यह काम कई दशकों से करते आ रहे हैं. इसमें उनके परिवार के सभी सदस्य उनका सहयोग करते हैं. शुरुआती समय में वह टेराकॉट से ही मूर्ति बनाया करते थे, लेकिन अभी उन्होंने और भी कई चीजों से मूर्ति बनाने की शुरुआत की है. उनके परिवार में 10 से ज्यादा सदस्य हैं जो सभी मूर्ति बनाने का काम कई वर्षों से करते आ रहे हैं. यह उनका पुस्तैनी काम है. इसके चलते उनके परिवार की रोजी-रोटी चल रही है. अहम पहलू यह है कि टेराकॉट से हरे रामा हरे कृष्णा, राधे राधे, चैतन्य महाप्रभु और कान्हा का खिलौना विशेष तौर पर तैयार किया जाता है. यह सभी खिलौने अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में वेस्ट बंगाल से तैयार करके लेकर आए हैं. जिसके चलते गीता जयंती में आए हुए पर्यटक उनके स्टॉल पर इन सभी मूर्तियों को देखने के लिए आ रहे हैं और खरीदारी कर रहे हैं.

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पिछले कई दशकों से मूर्ति बनाने का काम कर रहे हैं प. बंगाल के शिल्पकार कृष्णा सिंह.

सोलो वुड से भी देवी मां की मूर्ति की जाती है तैयार: शिल्पकार ने बताया कि वह टेराकॉट के साथ-साथ सोलो वुड से भी देवी माता की तस्वीर तैयार करते हैं. सोलो वुड की लकड़ी काफी शुभ मानी जाती है. यही वजह है कि ज्यादातर घरों में इस लकड़ी से बनी हुई तस्वीर को लेकर जाते हैं और माता की पूजा अर्चना की जाती है.

international geeta mahotsav 2023
पर्यटकों भा रही हैं कलाकृतिया.

1992 में उनके पिता को मिल चुका है स्टेट अवार्ड: शिल्पकार ने बताया कि उनका यह पुश्तैनी काम है जो काफी पीढ़ियों से चला आ रहा है, जिसके चलते उनके परिवार में एक अनोखी कला है. उनके अच्छे काम की सरहाना करते हुए वेस्ट बंगाल सरकार की तरफ से उनके पिता गुरन सिंह को 1992 में स्टेट अवार्ड के खिताब से नवाजा जा चुका है. अवार्ड मिलने के बाद उनके पिता की पूरे राज्य में काफी प्रशंसा की गई जिसके चलते परिवार वालों का हौसला बड़ा और परिवार के सभी सदस्यों ने मिलकर इस काम को और भी अधिक बुलंदियों तक पहुंचाया और जुनून के साथ इस शिल्प कला से जुड़ गए.

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कुरुक्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में पश्चिम बंगाल के शिल्पकार.

समाज से लुप्त हो रही गांव की शिल्पकला को भी खिलौने के माध्यम से दिखाने का प्रयास: शिल्पकार ने कहा कि इस महोत्सव में टेराकॉट से बने कान्हा, हरे रामा हरे कृष्णा का समूह, राधे-राधे, गणेश जी और चैतन्या महाप्रभु के खिलौने तैयार करके लाए हैं. इसके अलावा समाज से लुप्त हो रही गांव की शिल्पकला को भी खिलौने के माध्यम से दिखाने का प्रयास किया गया है. उन्हें इस महोत्सव में आने का इंतजार रहता है, क्योंकि यहां के पर्यटक उनकी इस कला को काफी पसंद करते हैं.

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अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में एक से बढ़कर एक कलाकृतियां.

राज्य और राष्ट्रीय स्तर के सभी मेलों में लगाते हैं स्टॉल: शिल्पकार ने कहा वह पिछले कहीं दशकों से अपने राज्य वेस्ट बंगाल सहित पूरे भारत के सभी बड़े मेलों में जाते हैं और वहां पर अपने शिल्प कला का प्रदर्शन करते हैं. हालांकि वह अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में कोरोना के बाद इस वर्ष आए हैं, जिसके चलते इस पर्यटक के द्वारा उनको खरीदारी करने से काफी अच्छा महसूस हो रहा है. जिसके चलते वह काफी खुश नजर आ रहे हैं.

international geeta mahotsav 2023
कृष्णा सिंह के परिवार के कई सदस्य टेराकॉट की शिल्प कला बनाने का करते हैं काम.

खरीदारी करने वालों का कहना जिंदगी में पहली बार देखी जीरी के दाने से बनी हुई मूर्ति: अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में कुरुक्षेत्र घूमने आई अनुराधा ने कहा कि वह हर वर्ष इस अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में आती हैं, लेकिन उन्होंने पहली बार जीरी के दानों से बनी हुई माता की मूर्ति देखी है जो अपने आप में एक आकर्षण का केंद्र बनी हुई है. अनुराधा कहती हैं कि पहली नजर में ही देखकर यह काफी अच्छी लगी जिसके चलते उन्होंने इस मूर्ति को खरीदा है. वही एक अन्य पर्यटक भारती ने कहा कि यह काफी अच्छी मूर्तियां लेकर आए हुए हैं. देवी देवताओं की मूर्ति काफी अच्छी बनाई गई है, जिसके चलते उन्होंने भी उनके द्वारा बनाई हुई मूर्तियों को खरीदा है.

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समाज से लुप्त हो रही गांव की शिल्पकला को भी खिलौने के माध्यम से दिखाने का प्रयास.

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Last Updated : Dec 11, 2023, 6:26 AM IST
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