चंडीगढ़: हरियाणा सरकार द्वारा प्रदेश में जल संरक्षण और किसानों की आय बढ़ाने के मकसद से उन्हें परम्परागत फसल चक्र से बाहर निकलकर फसल विविधिकरण अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. ऐसे में मशरूम एक ऐसा व्यवसाय है जो कम पैसे से शुरू किया जा सकता है और सफल होने पर इसके उत्पादन को किसी भी स्तर तक बढ़ाया जा सकता है.
महाराणा प्रताप बागवानी विश्वविद्यालय (करनाल) के प्रवक्ता ने बताया कि मुरथल स्थित विश्वविद्यालय का क्षेत्रीय खुम्ब अनुसंधान केन्द्र पहले हरियाणा एग्रो इंडस्ट्रीज कॉरपोरेशन लिमिटेड के अंतर्गत कार्य कर रहा था. अब इसे विश्वविद्यालय में स्थानांतरित कर दिया गया है. इस सेंटर को अंतरराष्ट्रीय स्तर का बनाने के प्रयास किए जाएंगे.
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प्रवक्ता ने बताया कि मशरूम खाने में स्वादिष्ट होने के साथ-साथ सेहत के लिए भी बहुत फायदेमंद है और पोषण से भरपूर है. आज आवश्यकता इस बात की है कि टेबल फूड के रूप में प्रतिदिन घर-घर मशरूम का उपयोग किया जाए. इससे कई तरह के व्यंजन बनाए जा सकते हैं और इसका परीक्षण भी किया जा सकता है.
उन्होंने बताया कि हमारे देश में अभी मशरूम का उपयोग मात्र 100 ग्राम प्रति व्यक्ति ही है, जबकि नीदरलैंड और चीन जैसे देशों में इसका उपयोग बहुत ज्यादा है. मुरथल केन्द्र में मशरूम की और नई प्रजातियां भी आ चुकी हैं. किसानों को चाहिए कि वो इन आधुनिक प्रजातियों की भी जानकारी प्राप्त करें.
मार्केट में इनका रेट भी अधिक है. खुम्ब उत्पादन के आर्थिक विश्लेषण और विपणन के बारे में जानकारी प्राप्त करने की भी बहुत आवश्यकता है. सरकारी हस्तक्षेप से इसके विपणन में सुधार लाया जा सकता है. साथ ही, इसकी प्रोसेसिंग की भी जानकारी हासिल करना जरूरी है.
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प्रवक्ता ने बताया कि पराली को जलाने की बजाय इसका उपयोग मशरूम के लिए कम्पोस्ट बनाने में किया जा सकता है. इससे वातावरण दूषित नहीं होगा, मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ेगी, मिट्टी में सूक्ष्म जीवी नष्ट नहीं होंगे. एक सामाजिक अभियान के रूप में ग्रामीण क्षेत्र से जुड़े सभी वर्गों को इसमें योगदान देना होगा.