करनाल: मन में कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो तो कोई भी राह मुश्किल नहीं. कभी दो वक्त की रोटी के लिए भी संघर्ष है कर रही लाजवंती कुटीर उद्योग चलाकर अब ना केवल अपनी आजीविका कमा रही है, बल्कि दूसरी जरूरतमंद महिलाओं को कर्ज देकर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होने का हौसला भी दे रही हैं.
करनाल में करीब 400 ग्रुपों के माध्यम से 6000 से अधिक महिलाएं अपने सपनों को साकार करने की ओर बढ़ रही हैं. अब इन्होंने अन्य महिलाओं को अपने साथ जोड़ने का बीड़ा उठाया है. इसके लिए गांव में जागरुकता अभियान चलाया जा रहा है.
स्वयं सहायता समूह से जुड़ कर खुद को बनाया सक्षम
स्वयं सहायता समूह में महिलाएं छोटे उद्योगों जिन्हें कुटीर उद्योग कहा जाता है. उनकी ट्रेनिंग लेकर अपने सपनों को उड़ान दे रही हैं. जूट बैग बनाने से लेकर अचार, मुरब्बे, डेकोरेशन सामग्री और मिट्टी का सामान सहित बागवानी के माध्यम से ना केवल खुद को सशक्त बना रहे हैं बल्कि अपने परिवार का भविष्य भी उज्ज्वल बना रहे हैं.
इस कार्य में नाबार्ड इनकी भरपूर सहायता कर रहा है और 50 हजार से लेकर लाखों रुपये तक बैंक से लोन आसानी से मिल जाता है. व्यवसाय से अर्जित लाभ को ये अपने ग्रुप की मेंबर्स को 1फीसदी ब्याज पर लोन देती हैं. इससे उनका बिजनेस शुरू करने में मदद करती हैं.
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लाजवंती ने बताई उनकी सफलता की कहानी
लाजवंती करनाल के चड़ाव गांव की रहने वाली है. ईटीवी भारत के साथ साक्षात्कार में उन्होंने बताया कि कुछ साल पहले तक उसके पास खाने तक की समस्या थी. पति का रोजगार ना होने से सारी जिम्मेदारी उसके कंधों पर आ गई. तब एक दिन नाबार्ड की ओर से राजबाला मैडम ने उन्हें स्वयं सहायता समूह के बारे में बताया और उसे अपना काम करने की सलाह दी.
सरकार का सहारा मिलते ही राजवंती ने घर में ही अचार, मुरब्बा, मिट्टी के बर्तन बनाने का काम शुरू कर दिया और इसे मेलों में बेचना शुरू कर दिया. सहायता मिलने लगी तो फिर उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा और आज पूरी तरह सक्षम है. बेटे अच्छी शिक्षा पा रहे हैं और परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई है.
'महिलाओं को हौसला देने और राह दिखाने की जरूरत'
नाबार्ड की राजबाला ने कहा कि आज महिलाएं घर से बाहर निकल रही हैं और उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करने में सरकार उनकी पूरी-पूरी मदद कर रही है. महिलाएं सब कुछ कर सकती हैं केवल जरूरत है उन्हें हौसला देने और राह दिखाने की.