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कौन जीतेगा करनाल? पढ़िए पूरा सियासी गणित

करनाल लोकसभा सीट के तहत आने वाले करनाल और पानीपत देश के इतिहास में अहम स्थान रखते हैं. पानीपत की धरती पर हुए तीन युद्ध भारतीय इतिहास में अमिट हैं. करनाल लोकसभा क्षेत्र में कुल 9 विधानसभा सीटें हैं. करनाल और पानीपत जिले के मतदाता करनाल लोकसभा सीट के तहत ही आते हैं. पूरे हरियाणा में करनाल ही एकमात्र ऐसा लोकसभा क्षेत्र है जहां 18 से 25 वर्ष के युवा मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक है, जो कि कुल मतदाताओं का 24 प्रतिशत है. ऐसे में युवा मतदाता मोदी के प्रति कितना झुकाव प्रदर्शित करते हैं वहीं बीजेपी के विजय रथ को आगे बढ़ाने में मददगार साबित होगा.

कौन जीतेगा करनाल? हर गणित यहां पढ़िए
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Published : Apr 26, 2019, 4:31 PM IST

Updated : Apr 26, 2019, 5:07 PM IST

करनाल: करनाल लोकसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशियों सहित कुल 21 प्रत्याशी 17वीं लोकसभा के लिए मैदान में उतरें है .बड़ी पार्टियों से बीजेपी के उम्मीदवार संजय भाटिया, कांग्रेस के कद्दावर नेता और पूर्व विधानसभा स्पीकर कुलदीप शर्मा, जेजेपी आप के गठबंधन में कृष्ण अग्रवाल, आईएनएलडी के धर्मबीर पाढा और बीएसपी-एलएसपी गठबंधन से पंकज चौधरी अपनी-अपनी जीत का दावा करते हुए चुनावी प्रचार प्रसार में जुट गए है. इन सबके भाग्य का फैसला करनाल लोकसभा से कुल 18 लाख 98 हजार 816 मतदाताओं के हाथ में है.

कांग्रेस का कुलदीप शर्मा पर बड़ा भरोसा!
कांग्रेस ने भी मजबूत प्रत्याशी को उतारा है. करनाल लोकसभा से 2004 में निर्दलीय चुनाव लड़ चुके कुलदीप शर्मा इस बार कांग्रेस के प्रत्याशी बन गए हैं. कुलदीप शर्मा इस सीट पर खड़े सभी उम्मीदवारों से सबसे अनुभवी राजनीतिक है. 4 बार पिता चिरंजीलाल करनाल लोकसभा के सांसद रहे. 2004 में कुलदीप शर्मा खुद निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में करनाल लोकसभा से चुनाव लड़ चुके हैं जहां उन्हें सिर्फ 27223 वोट मिले थे . पिछले दो बार से गनौर के विधायक हैं. करनाल लोकसभा से कांग्रेस की नजर 1 लाख 93 हजार जाट और एक लाख 45 हजार ब्राह्मण वोट पर है.

जेजेपी और आप की तरफ से मैदान में कृष्ण कुमार
जहां जेजेपी और आप गठबंधन से पानीपत के रहने वाले वकील कृष्ण कुमार अग्रवाल अखिल भारतीय अग्रवाल सम्मेलन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं. इसके साथ-साथ विभिन्न अग्रवाल समाज के संगठनों के प्रतिष्ठित पदों पर भी हैं. कृष्ण कुमार हरियाणा में व्यापारी वर्ग की पक्षपाती रहे हैं. अग्रवाल आम आदमी पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ता भी हैं और करनाल लोकसभा से अग्रवाल समाज का वोट बैंक को जुटाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगे.

INLD और BSP+LSP उम्मीदवार भी टक्कर में
आईएनएलडी के प्रत्याशी धर्मबीर पाढा और बीएसपी+एलएसपी गठबंधन से पंकज चौधरी जाट और रोड समाज के वोट काटने का काम जरूर करेंगे. ऐसे में संजय भाटिया की राह आसान नहीं होने के चलते समीकरण बिगड़ भी सकते हैं.

पूरे हरियाणा में करनाल ही एकमात्र ऐसा लोकसभा क्षेत्र है जहां 18 से 25 वर्ष के युवा मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक है, जो कि कुल मतदाताओं का 24 प्रतिशत है. ऐसे में युवा मतदाता मोदी के प्रति कितना झुकाव प्रदर्शित करते हैं वहीं बीजेपी के विजय रथ को आगे बढ़ाने में मददगार साबित होगा.

किसान निभाएंगे बड़ी भूमिका!
वहीं अगर किसानों की बात करें तो केंद्र की तरफ से किसानों के हित के लिए बहुत सी योजनाएं शुरू की गई हैं. जिनका फायदा सीधे तौर पर किसानों को मिलना शुरू भी हुआ, लेकिन कई किसानों का यह भी कहना है कि सरकार की तरफ से योजनाएं तो अच्छी शुरू की गई हैं, लेकिन उन योजनाओं में काम अच्छी तरह नहीं हो रहा है. किसानों को जो लाभ पहुंचना चहिए वो नहीं मिल रहा है. ऐसे में किसान क्या सोचता है ,लोकसभा चुनाव में मोदी की किसान हित लाभकारी योजनाओं का बीजेपी को कितना फायदा मिलता है यह देखना होगा.

मुख्यमंत्री मनोहर लाल का विधानसभा क्षेत्र करनाल ही है. जहां करनाल लोकसभा सीट से पानीपत के रहने वाले पंजाबी समाज से सम्बन्ध रखने वाले संजय भाटिया के नाम पर मुख्यमंत्री की इच्छा से ही उनके नाम पर मुहर लगी है. 5 महीने बाद विधानसभा का चुनाव है विधायकों को संगठन का सीधा-सीधा मैसेज है कि संसदीय सीट चाहिए. विधानसभा टिकट ना कटे इसलिए सभी 9 के 9 विधायक जिताने के लिए जोर लगाएंगे.

बीजेपी के अंदर की बात!
जिस विधानसभा क्षेत्र में भाजपा को पराजय मिली वहां से भाजपा विधायक का टिकट कटना तय है. इसलिए किसी भी तरह का आपसी विरोध को दरकिनार कर सभी काम करेंगे. यह भी एक संजय भाटिया के लिए प्लस पॉइंट होगा. संजय भाटिया 1970 में नगर पालिका के चेयरमैन रहे हैं, लेकिन पब्लिक हित में भाजपा समर्थित प्रदेश सरकार से भी भिड़ गए. तत्कालीन सीएम ओम प्रकाश चौटाला से इतनी दूरी थी कि 1 साल तक पालिका बिना चेयरमैन के रहा. संजय भाटिया पर कोई भ्रष्टाचार का आरोप नहीं है. यह भी संजय भाटिया के लिए एक प्लस प्वाइंट है.

ये समीकरण भी मायने रखते हैं!
इस बार परिस्थितियां अलग है. मोदी की लहर भी पिछली बार से कुछ कम आंकी जा रही है, इसलिए कांग्रेस के साथ इनेलो और जेजेपी के प्रत्याशी भी जीत के समीकरण बनाने जुट गए हैं. जातीय समीकरण में अहम बात यह है कि जहां संजय भाटिया पंजाबी समुदाय से हैं. वहीं कुलदीप शर्मा ब्राह्मण समुदाय से हैं. अभी तक हुए लोकसभा चुनावों में पंजाबी और ब्राह्मण समुदाय ने मिलकर लोकसभा प्रत्याशियों की जीत की कथा लिखी है. इस बार दोनों वर्गों से खड़े हुए प्रत्याशियों के कारण वोटों का बटना भी तय है. देखना बड़ा ही दिलचस्प होगा कि इसका खामियाजा दोनों पार्टियों को ना उठाना पड़े.

ये है करनाल का जातिय समीकरण
पंजाबी वोटर करीब 1,91,000
जाट वोटर करीब 1,93,000
ब्राह्मण वोटर करीब 1,45,000

कांग्रेस ने 9 बार जीत का परचम लहराया है!
करनाल लोकसभा क्षेत्र में कुल 9 विधानसभा सीटें हैं. करनाल और पानीपत जिले के मतदाता करनाल लोकसभा सीट के तहत ही आते हैं. नीलोखेड़ी, इंद्री, करनाल, घरौंडा, असंध, पानीपत ग्रामीण, पानीपत सिटी, इसराना और समालखा विधानसभा इस लोकसभा में शामिल हैं. 1951 से अब तक कांग्रेस नौ बार यहां से चुनाव जीती है. तीन बार बीजेपी ने जीत दर्ज की है. करनाल सीट पर कांग्रेस का वर्चस्व रहा है.

करनाल के बारे में ये भी पढ़ें
महाभारत के पात्र कर्ण की नगरी करनाल लोकसभा दिग्गजों की हार के लिए भी जानी जाती है. यही वो सीट है जहां पर पूर्व मुख्यमंत्री भजन लाल को हार का सामना करना पड़ा था. इस हार के बाद से ही उनकी राजनीति की पीएचडी खत्म हो गई थी. बीजेपी की दिग्गज नेता और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज करनाल से एक अदद जीत के लिए तरस गई थीं. वहीं चार दफा करनाल से जीत दर्ज करने वाले पंडित चिरंजी लाल अंतिम चुनाव यहां से 1996 में हार गए. करनाल सीट को ब्राह्मण सीट के तौर पर पहचाना जाता है, लेकिन पिछले चुनाव में यह मिथ टूटा. यहां से बीजेपी प्रत्याशी अश्विनी कुमार चोपड़ा को जीत मिली थी. साल 2014 में मोदी लहर में करनाल से बीजेपी के अश्विनी चोपड़ा ने यहां से दो बार लगातार कांग्रेस से सांसद रहे डॉ. अरविंद शर्मा को 3,60,147 वोटों से हराया था. बीजेपी से अश्विनी को कुल 5,94,817 वोट मिले, जबकि अरविंद शर्मा को 2,34,670 वोट पड़े थे.

करनाल का इतिहास
करनाल लोकसभा सीट के तहत आने वाले करनाल और पानीपत देश के इतिहास में अहम स्थान रखते हैं. पानीपत की धरती पर हुए तीन युद्ध भारतीय इतिहास में अमिट हैं. मोहम्मद गौरी और पृथ्वी राज चौहान के बीच में तरावड़ी में लड़ाई हुई थी. तरावड़ी में आज भी पृथ्वी राज चौहान का किला है. करनाल जिले के कई गांव धर्मक्षेत्र-कुरुक्षेत्र की 48 कोस की जमीन की सीमा में आते हैं. करनाल में कई बड़ी फैक्ट्रियां हैं, जिसमें कृषि उपकरण, राइस शैलर, वनस्पति, तेल और दवाइयां तैयार की जाती हैं. पानीपत का हैंडलूम उद्योग विश्व स्तर पर अपनी पहचान रखता है. पर्यटक के लिहाज से कर्ण लेक, कलंदर शाह, छावनी चर्च और सीता माई मंदिर खास हैं.

कर्ण की नगरी है करनाल!
दंतकथा के अनुसार करनाल शहर को महाभारत के राजा कर्ण ने बसाया था. राजा कर्ण के नाम पर ही शहर का नाम करनाल पड़ा है. यहां 1952 में पहला लोकसभा चुनाव हुआ था, जिसमें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विरेंद्र कुमार सत्यवादी ने जीत हासिल की थी. घरौंड़ा, निलोखेड़ी, असंध, इंदरी और तरावड़ी इसके मुख्य दर्शनीय स्थल हैं. दिल्ली से इसकी दूरी 117 किलोमीटर है.

करनाल: करनाल लोकसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशियों सहित कुल 21 प्रत्याशी 17वीं लोकसभा के लिए मैदान में उतरें है .बड़ी पार्टियों से बीजेपी के उम्मीदवार संजय भाटिया, कांग्रेस के कद्दावर नेता और पूर्व विधानसभा स्पीकर कुलदीप शर्मा, जेजेपी आप के गठबंधन में कृष्ण अग्रवाल, आईएनएलडी के धर्मबीर पाढा और बीएसपी-एलएसपी गठबंधन से पंकज चौधरी अपनी-अपनी जीत का दावा करते हुए चुनावी प्रचार प्रसार में जुट गए है. इन सबके भाग्य का फैसला करनाल लोकसभा से कुल 18 लाख 98 हजार 816 मतदाताओं के हाथ में है.

कांग्रेस का कुलदीप शर्मा पर बड़ा भरोसा!
कांग्रेस ने भी मजबूत प्रत्याशी को उतारा है. करनाल लोकसभा से 2004 में निर्दलीय चुनाव लड़ चुके कुलदीप शर्मा इस बार कांग्रेस के प्रत्याशी बन गए हैं. कुलदीप शर्मा इस सीट पर खड़े सभी उम्मीदवारों से सबसे अनुभवी राजनीतिक है. 4 बार पिता चिरंजीलाल करनाल लोकसभा के सांसद रहे. 2004 में कुलदीप शर्मा खुद निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में करनाल लोकसभा से चुनाव लड़ चुके हैं जहां उन्हें सिर्फ 27223 वोट मिले थे . पिछले दो बार से गनौर के विधायक हैं. करनाल लोकसभा से कांग्रेस की नजर 1 लाख 93 हजार जाट और एक लाख 45 हजार ब्राह्मण वोट पर है.

जेजेपी और आप की तरफ से मैदान में कृष्ण कुमार
जहां जेजेपी और आप गठबंधन से पानीपत के रहने वाले वकील कृष्ण कुमार अग्रवाल अखिल भारतीय अग्रवाल सम्मेलन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं. इसके साथ-साथ विभिन्न अग्रवाल समाज के संगठनों के प्रतिष्ठित पदों पर भी हैं. कृष्ण कुमार हरियाणा में व्यापारी वर्ग की पक्षपाती रहे हैं. अग्रवाल आम आदमी पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ता भी हैं और करनाल लोकसभा से अग्रवाल समाज का वोट बैंक को जुटाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगे.

INLD और BSP+LSP उम्मीदवार भी टक्कर में
आईएनएलडी के प्रत्याशी धर्मबीर पाढा और बीएसपी+एलएसपी गठबंधन से पंकज चौधरी जाट और रोड समाज के वोट काटने का काम जरूर करेंगे. ऐसे में संजय भाटिया की राह आसान नहीं होने के चलते समीकरण बिगड़ भी सकते हैं.

पूरे हरियाणा में करनाल ही एकमात्र ऐसा लोकसभा क्षेत्र है जहां 18 से 25 वर्ष के युवा मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक है, जो कि कुल मतदाताओं का 24 प्रतिशत है. ऐसे में युवा मतदाता मोदी के प्रति कितना झुकाव प्रदर्शित करते हैं वहीं बीजेपी के विजय रथ को आगे बढ़ाने में मददगार साबित होगा.

किसान निभाएंगे बड़ी भूमिका!
वहीं अगर किसानों की बात करें तो केंद्र की तरफ से किसानों के हित के लिए बहुत सी योजनाएं शुरू की गई हैं. जिनका फायदा सीधे तौर पर किसानों को मिलना शुरू भी हुआ, लेकिन कई किसानों का यह भी कहना है कि सरकार की तरफ से योजनाएं तो अच्छी शुरू की गई हैं, लेकिन उन योजनाओं में काम अच्छी तरह नहीं हो रहा है. किसानों को जो लाभ पहुंचना चहिए वो नहीं मिल रहा है. ऐसे में किसान क्या सोचता है ,लोकसभा चुनाव में मोदी की किसान हित लाभकारी योजनाओं का बीजेपी को कितना फायदा मिलता है यह देखना होगा.

मुख्यमंत्री मनोहर लाल का विधानसभा क्षेत्र करनाल ही है. जहां करनाल लोकसभा सीट से पानीपत के रहने वाले पंजाबी समाज से सम्बन्ध रखने वाले संजय भाटिया के नाम पर मुख्यमंत्री की इच्छा से ही उनके नाम पर मुहर लगी है. 5 महीने बाद विधानसभा का चुनाव है विधायकों को संगठन का सीधा-सीधा मैसेज है कि संसदीय सीट चाहिए. विधानसभा टिकट ना कटे इसलिए सभी 9 के 9 विधायक जिताने के लिए जोर लगाएंगे.

बीजेपी के अंदर की बात!
जिस विधानसभा क्षेत्र में भाजपा को पराजय मिली वहां से भाजपा विधायक का टिकट कटना तय है. इसलिए किसी भी तरह का आपसी विरोध को दरकिनार कर सभी काम करेंगे. यह भी एक संजय भाटिया के लिए प्लस पॉइंट होगा. संजय भाटिया 1970 में नगर पालिका के चेयरमैन रहे हैं, लेकिन पब्लिक हित में भाजपा समर्थित प्रदेश सरकार से भी भिड़ गए. तत्कालीन सीएम ओम प्रकाश चौटाला से इतनी दूरी थी कि 1 साल तक पालिका बिना चेयरमैन के रहा. संजय भाटिया पर कोई भ्रष्टाचार का आरोप नहीं है. यह भी संजय भाटिया के लिए एक प्लस प्वाइंट है.

ये समीकरण भी मायने रखते हैं!
इस बार परिस्थितियां अलग है. मोदी की लहर भी पिछली बार से कुछ कम आंकी जा रही है, इसलिए कांग्रेस के साथ इनेलो और जेजेपी के प्रत्याशी भी जीत के समीकरण बनाने जुट गए हैं. जातीय समीकरण में अहम बात यह है कि जहां संजय भाटिया पंजाबी समुदाय से हैं. वहीं कुलदीप शर्मा ब्राह्मण समुदाय से हैं. अभी तक हुए लोकसभा चुनावों में पंजाबी और ब्राह्मण समुदाय ने मिलकर लोकसभा प्रत्याशियों की जीत की कथा लिखी है. इस बार दोनों वर्गों से खड़े हुए प्रत्याशियों के कारण वोटों का बटना भी तय है. देखना बड़ा ही दिलचस्प होगा कि इसका खामियाजा दोनों पार्टियों को ना उठाना पड़े.

ये है करनाल का जातिय समीकरण
पंजाबी वोटर करीब 1,91,000
जाट वोटर करीब 1,93,000
ब्राह्मण वोटर करीब 1,45,000

कांग्रेस ने 9 बार जीत का परचम लहराया है!
करनाल लोकसभा क्षेत्र में कुल 9 विधानसभा सीटें हैं. करनाल और पानीपत जिले के मतदाता करनाल लोकसभा सीट के तहत ही आते हैं. नीलोखेड़ी, इंद्री, करनाल, घरौंडा, असंध, पानीपत ग्रामीण, पानीपत सिटी, इसराना और समालखा विधानसभा इस लोकसभा में शामिल हैं. 1951 से अब तक कांग्रेस नौ बार यहां से चुनाव जीती है. तीन बार बीजेपी ने जीत दर्ज की है. करनाल सीट पर कांग्रेस का वर्चस्व रहा है.

करनाल के बारे में ये भी पढ़ें
महाभारत के पात्र कर्ण की नगरी करनाल लोकसभा दिग्गजों की हार के लिए भी जानी जाती है. यही वो सीट है जहां पर पूर्व मुख्यमंत्री भजन लाल को हार का सामना करना पड़ा था. इस हार के बाद से ही उनकी राजनीति की पीएचडी खत्म हो गई थी. बीजेपी की दिग्गज नेता और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज करनाल से एक अदद जीत के लिए तरस गई थीं. वहीं चार दफा करनाल से जीत दर्ज करने वाले पंडित चिरंजी लाल अंतिम चुनाव यहां से 1996 में हार गए. करनाल सीट को ब्राह्मण सीट के तौर पर पहचाना जाता है, लेकिन पिछले चुनाव में यह मिथ टूटा. यहां से बीजेपी प्रत्याशी अश्विनी कुमार चोपड़ा को जीत मिली थी. साल 2014 में मोदी लहर में करनाल से बीजेपी के अश्विनी चोपड़ा ने यहां से दो बार लगातार कांग्रेस से सांसद रहे डॉ. अरविंद शर्मा को 3,60,147 वोटों से हराया था. बीजेपी से अश्विनी को कुल 5,94,817 वोट मिले, जबकि अरविंद शर्मा को 2,34,670 वोट पड़े थे.

करनाल का इतिहास
करनाल लोकसभा सीट के तहत आने वाले करनाल और पानीपत देश के इतिहास में अहम स्थान रखते हैं. पानीपत की धरती पर हुए तीन युद्ध भारतीय इतिहास में अमिट हैं. मोहम्मद गौरी और पृथ्वी राज चौहान के बीच में तरावड़ी में लड़ाई हुई थी. तरावड़ी में आज भी पृथ्वी राज चौहान का किला है. करनाल जिले के कई गांव धर्मक्षेत्र-कुरुक्षेत्र की 48 कोस की जमीन की सीमा में आते हैं. करनाल में कई बड़ी फैक्ट्रियां हैं, जिसमें कृषि उपकरण, राइस शैलर, वनस्पति, तेल और दवाइयां तैयार की जाती हैं. पानीपत का हैंडलूम उद्योग विश्व स्तर पर अपनी पहचान रखता है. पर्यटक के लिहाज से कर्ण लेक, कलंदर शाह, छावनी चर्च और सीता माई मंदिर खास हैं.

कर्ण की नगरी है करनाल!
दंतकथा के अनुसार करनाल शहर को महाभारत के राजा कर्ण ने बसाया था. राजा कर्ण के नाम पर ही शहर का नाम करनाल पड़ा है. यहां 1952 में पहला लोकसभा चुनाव हुआ था, जिसमें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विरेंद्र कुमार सत्यवादी ने जीत हासिल की थी. घरौंड़ा, निलोखेड़ी, असंध, इंदरी और तरावड़ी इसके मुख्य दर्शनीय स्थल हैं. दिल्ली से इसकी दूरी 117 किलोमीटर है.

HAR                             KARNAL
REPORTER                 RAKESH KUMAR SHARMA

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महाभारत के पात्र कर्ण की नगरी करनाल लोकसभा  दिग्गजों की हार के लिए भी जानी जाती है। यही वह सीट है जहां पर पूर्व मुख्यमंत्री भजन लाल को हार का सामना करना पड़ा था। इस हार के बाद से ही उनकी राजनीति की पीएचडी खत्म हो गई थी। बीजेपी की दिग्गज नेता और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज करनाल से एक अदद जीत के लिए तरस गई थीं।वहीं चार दफा करनाल से जीत दर्ज करने वाले पंडित चिरंजी लाल अंतिम चुनाव यहां से 1996 में हार गए।  करनाल सीट को ब्राह्मण सीट के तौर पर पहचाना जाता है लेकिन पिछले चुनाव में यह मिथ टूटा। यहां से बीजेपी प्रत्याशी अश्विनी कुमार चोपड़ा को जीत मिली थी। साल 2014 में मोदी लहर में करनाल से बीजेपी के अश्विनी चोपड़ा ने यहां से दो बार लगातार कांग्रेस से सांसद रहे डॉ. अरविंद शर्मा को 3,60,147 वोटों से हराया था। बीजेपी से अश्विनी को कुल 5,94,817 वोट मिले, जबकि अरविंद शर्मा को 2,34,670 वोट पड़े थे।


करनाल लोकसभा क्षेत्र में कुल 9 विधानसभा सीटें हैं। करनाल और पानीपत जिले के मतदाता करनाल लोकसभा सीट के तहत ही आते हैं। नीलोखेड़ी, इंद्री, करनाल, घरौंडा, असंध, पानीपत ग्रामीण, पानीपत सिटी, इसराना और समालखा विधानसभा इस लोकसभा में शामिल हैं। 1951 से अब तक कांग्रेस नौ बार यहां से चुनाव जीती है। तीन बार बीजेपी ने जीत दर्ज की है। करनाल सीट पर कांग्रेस का वर्चस्व रहा है।

करनाल लोकसभा सीट के तहत आने वाले करनाल और पानीपत देश के इतिहास में अहम स्थान रखते हैं। पानीपत की धरती पर हुए तीन युद्ध भारतीय इतिहास में अमिट हैं। मोहम्मद गौरी और पृथ्वी राज चौहान के बीच में तरावड़ी में लड़ाई हुई थी। तरावड़ी में आज भी पृथ्वी राज चौहान का किला है। करनाल जिले के कई गांव धर्मक्षेत्र-कुरुक्षेत्र की 48 कोस की जमीन की सीमा में आते हैं। करनाल में कई बड़ी फैक्ट्रियां हैं, जिसमें कृषि उपकरण, राइस शैलर, वनस्पति, तेल और दवाइयां तैयार की जाती हैं। पानीपत का हैंडलूम उद्योग विश्व स्तर पर अपनी पहचान रखता है। पर्यटक के लिहाज से कर्ण लेक, कलंदर शाह, छावनी चर्च और सीता माई मंदिर खास हैं।

दंतकथा के अनुसार करनाल शहर को महाभारत के राजा कर्ण ने बसाया था। राजा कर्ण के नाम पर ही शहर का नाम करनाल पड़ा है। यहां 1952 में पहला लोकसभा चुनाव हुआ था, जिसमें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विरेंद्र कुमार सत्यवादी ने जीत हासिल की थी। घरौंड़ा, निलोखेड़ी, असंध, इंदरी और तरावड़ी इसके मुख्य दर्शनीय स्थल हैं। दिल्ली से इसकी दूरी 117 किलोमीटर है।

करनाल लोकसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशियों सहित कुल 21 प्रत्याशी 17वीं लोकसभा के लिए मैदान में उतरें है ।बड़ी पार्टियों से  बीजेपी के उम्मीदवार संजय भाटिया ,कॉग्रेस के कदावर नेता व् पूर्व में रहे विधानसभा स्पीकर कुलदीप शर्मा,जेजेपी आप के गठबंधन में कृष्ण अग्रवाल ,आईएनएलडी के धर्मबीर पाढा और बीएसपी-एलएसपी गठबंधन से पंकज चौधरी अपनी अपनी जीत का दावा करते हुए चुनावी प्रचार प्रसार में जुट गए है । इन सबके भाग्य का फैसला करनाल लोकसभा से  कुल 18 लाख 98 हजार 816 मतदाताओं के हाथ में है।


पूरे हरियाणा में करनाल ही एकमात्र ऐसा लोकसभा क्षेत्र है जहां 18 से 25 वर्ष के युवा मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक है जो कि कुल मतदाताओं का 24 प्रतिशत है।  ऐसे में युवा मतदाता मोदी के प्रति कितना झुकाव प्रदर्शित करते हैं वही बीजेपी के विजय रथ को आगे बढ़ाने में सहायक होगा ।

इस चुनाव में महिला मतदाताओं की मोदी के योजनाओं से लाभान्वित हो कर बीजेपी को जिताने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है ऐसे  विचार मीडिया के सामने स्पष्ट रूप से नहीं आ पाते हैं। 

वहीं अगर किसानो की बात करे तो मोदी सरकार द्वारा किसानो के हित के लिए बहुत सी योजनाएं शुरू की गई है जिनका फ़ायदा सीदे तौर पर किसानो को मिलना शुरू भी हुआ है लेकिन कई किसानो का यह भी कहना है की सरकार द्वारा योजनाएं तो अच्छी शुरू की गई है लेकिन उन योजनाओं में काम अच्छी तरह नहीं हो रहा है और किसानो को जो लाभ पहुंचना चहिये वो नहीं मिल रहा है। ऐसे में किसान क्या सोचता है ,लोकसभा चुनाव में मोदी की किसान हित लाभकारी योजनाओं का बीजेपी को कितना फायदा मिलता है यह देखना होगा। 

मुख्यमंत्री मनोहर लाल का विधानसभा क्षेत्र करनाल ही है। जहां करनाल लोकसभा सीट से पानीपत के रहने वाले पंजाबी समाज से सम्बन्ध  रखने वाले संजय भाटिया के नाम पर मुख्यमंत्री की इच्छा से ही उनके नाम पर मोहर लगी है। 5 माह बाद विधानसभा का चुनाव है विधायकों को संगठन का सीधा सीधा मैसेज है संसदीय सीट चाहिए ।विधानसभा टिकट ना कटे इसलिए सभी 9 के 9 विधायक जिताने के लिए जोर लगाएंगे । जिस विधानसभा क्षेत्र में भाजपा को पराजय मिली वहां से भाजपा विधायक का टिकट कटना तय है । इसलिए किसी भी प्रकार का आपसी विरोध को दरकिनार कर सभी काम करेंगे यह भी एक संजय भाटिया के लिए प्लस पॉइंट होगा ।1970 में नगर पालिका के चेयरमैन रहे हैं संजय भाटिया लेकिन पब्लिक हित में भाजपा समर्थित प्रदेश सरकार से भी भिड़ गए । तत्कालीन सीएम ओम प्रकाश चौटाला से इतनी दूरी थी कि 1 साल तक पालिका बिना चेयरमैन के रहा । मतलब की कोई भ्रष्टाचार का आरोप नहीं है । यह भी एक प्लस प्वाइंट है संजय भाटिया के लिए । 

इस बार परिस्थितियां अलग है।मोदी की लहर भी पिछली बार से कुछ कम आंकी जा रही है , इसलिए कांग्रेस के साथ इनेलो और ज ज पा के प्रत्याशी  भी जीत के समीकरण बनाने जुट गए है क्योंकि करनाल लोकसभा में 1 लाख 91 हजार पंजाबी वोटर है ,जाट वोट 1 लाख 93 हजार से भी कम है उस पर 1लाख 45 हजार ब्राह्मण वोटर हैं। कांग्रेस ने भी मजबूत प्रत्याशी को उतारा है। करनाल लोकसभा से 2004 में निर्दलीय चुनाव लड़ चुके कुलदीप शर्मा इस बार कांग्रेस के प्रत्याशी बन गए हैं । कुलदीप शर्मा सबसे अनुभवी राजनीतिक है 4 बार पिता चिरंजीलाल करनाल लोकसभा के सांसद रहे 2004 में कुलदीप शर्मा खुद निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में करनाल लोकसभा से चुनाव लड़ चुके हैं जहां उन्हें सिर्फ 27223 वोट मिले थे । पिछले दो बार से गनौर के विधायक हैं । करनाल लोकसभा से कांग्रेस की नजर 1 लाख 93 हजार जाट और एक लाख 45 हजार ब्राह्मण वोट पर है ।

जहां जेजेपी आप गठबन्दन से पानीपत के रहने वाले आदिवक्ता कृष्ण कुमार अग्रवाल अखिल भारतीय अग्रवाल सम्मेलन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष होने के साथ-साथ विभिन्न अग्रवाल समाज के संगठनों के प्रतिष्ठित पदों पर रहते हुए पूरे हरियाणा में व्यापारी वर्ग की आवाज विभिन्न मंचों से उठाते रहे हैं । आम आदमी पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ता भी हैं और करनाल लोकसभा से अग्रवाल समाज का वोट बैंक को जुटाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगे।  
वहीं आई एनएलडी के प्रत्याशी धर्मबीर पाढा व बीएसपी एलएसपी गठबन्दन से पंकज चौधरी जाट और रोड समाज के वोट काटने का काम जरूर करेंगे ऐसे में संजय भाटिया की राह आसान नहीं होने के चलते समीकरण बिगड़ भी सकते है तो मुकाबला रोचक भी हो सकता है।
   
वहीँ  जातीय समीकरण में एहम बात यह है कि जहां संजय भाटिया पंजाबी समुदाय से हैं वहीं कुलदीप शर्मा ब्राह्मण समुदाय से हैं। अभी तक हुए लोकसभा चुनावों में पंजाबी और ब्राह्मण समुदाय ने मिलकर लोकसभा प्रत्याशी के जीत की कथा लिखी है।  लेकिन इस बार दोनों वर्गों से खड़े हुए प्रत्याशियों के कारण वोटों का बटना भी तय है। देखना बड़ा ही दिलचस्प होगा कि इसका खामियाजा दोनों पार्टियों को ना उठाना पड़े ।




Last Updated : Apr 26, 2019, 5:07 PM IST

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