करनाल: एक कहावत है कि जहां चाह होती है वहां राह होती है. करनाल के पुष्पेंद्र कुमार ने इसी को सार्थक कर दिखाया है. जहां युवा पढ़ाई के बाद रोजगार की तलाश में भटक रहे हैं. वहीं पुष्पेंद्र सिंह ने लीक से हटकर स्वरोजगार शुरू किया है. वे जिले के खानपुर गांव में देसी कोल्हू से तेल तैयार कर रहे हैं. एमबीए पढ़ें पुष्पेंद्र के इस तेल की डिमांड देश ही नहीं, विदेश में भी बढ़ने लगी है. पुष्पेंद्र का कहना है कि उनके जीवन का लक्ष्य प्रकृति का दोहन करने की बजाय प्रकृति की ओर चलने का है.
'किए बहुत विध्वंस धरा का, अब खुद को न ओर चलो. प्रकृति का दोहन छोड़कर, सखे प्रकृति की ओर चलो'... इन्हीं पंक्तियों को चरितार्थ कर रहे हैं करनाल जिले के गांव खानपुर के रहने वाले पुष्पेंद्र. उन्होंने 2010 में एमबीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद दिल्ली और गुड़गांव में नौकरी की थी. उसके बाद 2017 में हैयर कैंपस के नाम से खुद का यमुनानगर में हैयर ट्रांसप्लांट अस्पताल खोला. लेकिन मन में कहीं न कहीं एक टीस थी कि दुनिया से हटकर कुछ किया जाए.
मन की इच्छा को पूरी करने के लिए उन्होंने करीब 9 महीने पहले पुश्तैनी गांव खानपुर में अपनी जमीन पर एक कनाल में देसी कोल्हू से तेल बनाने का कार्य शुरू किया ताकि लोगों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद की जा सके. इसके लिए उन्होंने किसी आधुनिक मशीन का इस्तेमाल नहीं किया, बल्कि एक देसी कोल्हू लगाया. पुष्पेंद्र के साथ इस काम में उनका छोटा भाई मनीष भी मदद करता है.
अमेरिका और यूके में भी की सप्लाई : बड़ी बात यह है कि जिस काम को आधुनिक मशीन कुछ घंटों में ही पूरा कर देती है. वहीं इस पद्धति में एक क्विंटल अनाज से तेल निकालने के लिए 25 घंटे तक मंथन किया जाता है. पुष्पेंद्र ने बताया कि 9 महीने में ही वे अमेरिका और यूके में कई लोगों को इन तेलों की डिलीवरी दे चुके हैं. इस कार्य में उनकी मदद दो देसी बैल 'हीरा और बादल' करते हैं. जो दिन रात कड़ी मेहनत कर सरसों, नारियल, मूंगफली, तिलहन व अलसी से तेल निकालते हैं.
कच्ची घानी का तेल है सेहतमंद : पुष्पेंद्र का कहना है कि आज हम प्रकृति से दूर होकर, जो खान पान अपना रहे हैं. उससे आए दिन नई नई बीमारियां फैल रही हैं. लोगों के पास पैसा है, डाइटिशियन की सलाह से खाना, हेल्थ के लिए बंद कमरे में एक्सरसाइज करना आदि विकल्प हैं. बावजूद इसके लोगों को कैंसर जैसी गंभीर बीमारी अपनी चपेट में ले रही है. इसका कारण है हमारा प्रकृति से दूर होना. अपनी प्राचीन संस्कृति को संजोए रखने के लिए ही उन्होंने इस कार्य की पहल की है ताकि अन्य युवा भी हमारी संस्कृति को बचाने के लिए कदम उठा सकें.
लगन और जुनून से तैयार हुआ प्रोजेक्ट: पुष्पेंद्र ने बताया कि जब वह 10वीं क्लास में पढ़ाई करते थे तो उनके सिर से पिता का साया उठ गया. मां ने कड़ी मेहनत कर उन्हें पढ़ाया. मूलरूप से गांव खानपुर के रहने वाला पुष्पेंद्र का परिवार काफी समय से इंद्री में रह रहा है. उन्होंने बताया कि जब इस प्रोजेक्ट को लगाने के लिए उन्होंने अपने दोस्तों से बात की तो सभी ने कहा कि यह काम नहीं चलेगा. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अपनी कड़ी मेहनत, लगन और जुनून के साथ अपना प्रोजेक्ट तैयार किया. उन्होंने बताया कि एक कोल्हू लगाने पर 60 से 90 हजार रुपये के बीच खर्च आता है.
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पूरी तरह से ठंडा होता है ये तेल: उन्होंने बताया के आधुनिक मशीन से बनने वाला तेल जहां गर्म होता है. वहीं कोल्हू में तैयार तेल पूरी तरह से ठंडा होता है. जहां आधुनिक मशीन से हम एक क्विंटल अनाज से 40 प्रतिशत तेल प्राप्त करते हैं. वहीं कोल्हू से हमें यह केवल 20 प्रतिशत ही प्राप्त होता है. कई डॉक्टरों ने भी इस तेल को काफी सराहा है. उन्होंने बताया कि यह तेल 100 प्रतिशत सेहतमंद होता है. देसी पद्धति से तैयार यह तेल हमारी संस्कृति को भी दर्शाता है.
इस तेल के हैं अनगिनत फायदे : यह तेल कैंसर जैसी लाइलाज बीमारी से बचाने में भी सहायक है. क्योंकि इस तेल में किसी तरह के केमिकल का इस्तेमाल नहीं किया जाता. पुष्पेंद्र अपने दो कोल्हू में सरसों, नारियल, मूंगफली, तिलहन और अलसी का तेल तैयार करते हैं. वे बैल संचालित दो कोल्हू तैयार कर चुके हैं और तीसरा जल्द लगाने की तैयारी है. कोल्हू में काम कर रहे देसी बैलों की भी बेहतर परवरिश हो रही है. यहीं नहीं वह अपने बैलों को नाम से पुकारते हैं. उन्होंने युवाओं से भी इस तरह के स्वरोजगार अपनाने की अपील की है.