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Holika Dahan 2022: जानें क्या है होलिका दहन की पौराणिक कथा

होलिका दहन 18 मार्च 2022 दिन गुरुवार को पूरे विधि-विधान अनुसार मनाया जाएगा. अगले दिन रंग भरी होली मनाई जाएगी. हिंदू संस्कृति में होली (HOLI CELEBERATION 2022) का त्योहार दो दिवसीय पर्व होता है. इसकी शुरुआत होलिका दहन से होती है. होलिका दहन फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को, मनाया जाता है.

Holika Dahan 2022: क्या है होलिका दहन की पौराणिक कथा व होलिका दहन की पूजन विधि
Holika Dahan 2022: क्या है होलिका दहन की पौराणिक कथा व होलिका दहन की पूजन विधि
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Published : Mar 17, 2022, 3:31 PM IST

Updated : Mar 17, 2022, 7:28 PM IST

करनाल: होलिका दहन 18 मार्च 2022 दिन गुरुवार को पूरे विधि-विधान अनुसार मनाया जाएगा. अगले दिन रंग भरी होली मनाई जाएगी. हिंदू संस्कृति में होली (HOLI CELEBERATION 2022) का त्योहार, दो दिवसीय पर्व होता है. इसकी शुरुआत होलिका दहन से होती है. होलिका दहन फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है. होलिका दहन और पूजा करने का महत्व पुराणों में भी है. होली की पूजा करने से महालक्ष्मी प्रसन्न हो होती हैं. देवी लक्ष्मी घरों में विराजमान होती हैं और शांति का विस्तार होता है.

होलिका दहन की पौराणिक कथा मुख्य रूप से भगवान विष्णु के चौथे अवतार नरसिंह और भक्त उनका परमभक्त प्रहलाद से जुड़ी हुई है. पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु के परम भक्त प्रहलाद का जन्म असुर परिवार में हुआ था. प्रहलाद के राजा हिरण्यकश्यप असुर जाति के थे. हिरण्यकश्यप को भगवान के प्रति प्रहलाद की भक्ति बिल्कुल पसंद नहीं थी. हिरण्यकश्यप अपने छोटे भाई की मौत का बदला लेना चाहता था जिसे भगवान विष्णु ने मारा था.

क्या है होलिका दहन की पौराणिक कथा व होलिका दहन की पूजन विधि
क्या है होलिका दहन की पौराणिक कथा व होलिका दहन की पूजन विधि

इसलिए उसने अपने आप को शक्तिशाली बनाने के लिए उसने सालों तक भगवन ब्रह्मा की कठिन तपस्या की. भगवन ब्रह्मा ने हिरण्यकश्यप को खुश होकर वरदान दिया कि 'आपके बनाए किसी प्राणी, मनुष्‍य, पशु, देवता, दैत्‍य, नागादि किसी से मेरी मृत्‍यु न हो। मैं समस्‍त प्राणियों पर राज्‍य करूं। मुझे कोई न दिन में मार सके न रात में, न घर के अंदर मार सके न बाहर, ना भूमि में ना पाताल में और ना ही आकाश में सकें.

ये भी पढ़ें- Holi Special: मशहूर है हरियाणा में भाभी देवर की कोड़ा मार होली

वरदान मिलने के बाद राजा हिरण्यकश्यप खुद को भगवान समझने लगा और लोगों से खुद की पूजा करने को कहने लगा. वहीं, प्रहलाद किसी दूसरी चीज की चिंता किए बिना भगवन विष्णु की भक्ति में लीन रहता था. प्रहलाद की ये भक्ति हिरण्यकश्यप को बिकुल पसंद नहीं थी. जिसके लिए वह अपने बेटे को बड़ी यातनाएं दीं. बेटे द्वारा अपनी पूजा ना करने से नाराज उस राजा ने अपने बेटे को मारने का निर्णय किया. उसने अपनी छोटी बहन होलिका से प्रहलाद को मारने की बात कही.

होलिका को वरदान था कि वह आग में नहीं जाल सकती. इसलिए हिरण्याकश्यप ने प्रहलाद को होलिका की गोद में बैठा कर अग्नि में बैठा दिया. उनकी योजना प्रहलाद को जलाने की थी, लेकिन उनकी योजना सफल नहीं हो सकी क्योंकि प्रहलाद सारा समय भगवान विष्णु का नाम लेता रहा और बच गया पर होलिका जलकर राख हो गई. होलिका की ये हार बुराई के नष्ट होने का प्रतीक है.

क्या है होलिका दहन की पौराणिक कथा व होलिका दहन की पूजन विधि
क्या है होलिका दहन की पौराणिक कथा व होलिका दहन की पूजन विधि

इसके बाद भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप का वध कर दिया, इसलिए होली का त्योहार (Holi festival 2022), होलिका की मौत की कहानी से जुड़ा हुआ है. भारत के कुछ राज्यों में होली से एक दिन पहले बुराई के अंत के प्रतीक के तौर पर होली जलाई जाती है. पंडित विश्वनाथ ने बताया कि भारत भर में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाने वाला दूसरा सबसे महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है. हरियाणा राज्य की बात करें तो यहां भी यह दो दिवसीय उत्सव छोटी होली या होलिका दहन से शुरू होता है और उसके बाद रंगवाली होली होती है. होली के त्योहार पर देश भर में काफी धूम रहती है. लोग एक दूसरे के गले मिलकर सारे गिले शिकवे भूल जाते हैं और जमकर होली का जश्न मनाते हैं.

ये भी पढ़ें- Holi Special: ये है पानीपत की डाट होली, नजारा देखने के लिए दूर-दूर से आते हैं लोग

होलिका दहन की पूजा विधि क्या है- होलिका दहन की पूजा के लिए सर्वप्रथम स्नान करना बेहद जरूरी है. स्नान के बाद होलिका की पूजा वाले स्थान पर उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुंह करके बैठ जाएं. इसके बाद पूजा के लिए गाय के गोबर से होलिका और प्रहलाद की प्रतिमा बनाए. होलिका पूजन में रोली, धूप, फूल, गुड़, हल्दी, बताशे, गुलाल और नारियल जैसी चीजें अर्पित की जाती है. उंबी, गोबर से बने बड़कुले, नारियल भी अर्पित कर विधिपूर्वक पूजन करें. मिठाइयां और फल भी अर्पित करें. भगवान निरसिंह का भी विधि-विधान से पूजन करें. इसके बाद होलिका के चार और सात बार परिक्रमा करें.

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करनाल: होलिका दहन 18 मार्च 2022 दिन गुरुवार को पूरे विधि-विधान अनुसार मनाया जाएगा. अगले दिन रंग भरी होली मनाई जाएगी. हिंदू संस्कृति में होली (HOLI CELEBERATION 2022) का त्योहार, दो दिवसीय पर्व होता है. इसकी शुरुआत होलिका दहन से होती है. होलिका दहन फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है. होलिका दहन और पूजा करने का महत्व पुराणों में भी है. होली की पूजा करने से महालक्ष्मी प्रसन्न हो होती हैं. देवी लक्ष्मी घरों में विराजमान होती हैं और शांति का विस्तार होता है.

होलिका दहन की पौराणिक कथा मुख्य रूप से भगवान विष्णु के चौथे अवतार नरसिंह और भक्त उनका परमभक्त प्रहलाद से जुड़ी हुई है. पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु के परम भक्त प्रहलाद का जन्म असुर परिवार में हुआ था. प्रहलाद के राजा हिरण्यकश्यप असुर जाति के थे. हिरण्यकश्यप को भगवान के प्रति प्रहलाद की भक्ति बिल्कुल पसंद नहीं थी. हिरण्यकश्यप अपने छोटे भाई की मौत का बदला लेना चाहता था जिसे भगवान विष्णु ने मारा था.

क्या है होलिका दहन की पौराणिक कथा व होलिका दहन की पूजन विधि
क्या है होलिका दहन की पौराणिक कथा व होलिका दहन की पूजन विधि

इसलिए उसने अपने आप को शक्तिशाली बनाने के लिए उसने सालों तक भगवन ब्रह्मा की कठिन तपस्या की. भगवन ब्रह्मा ने हिरण्यकश्यप को खुश होकर वरदान दिया कि 'आपके बनाए किसी प्राणी, मनुष्‍य, पशु, देवता, दैत्‍य, नागादि किसी से मेरी मृत्‍यु न हो। मैं समस्‍त प्राणियों पर राज्‍य करूं। मुझे कोई न दिन में मार सके न रात में, न घर के अंदर मार सके न बाहर, ना भूमि में ना पाताल में और ना ही आकाश में सकें.

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वरदान मिलने के बाद राजा हिरण्यकश्यप खुद को भगवान समझने लगा और लोगों से खुद की पूजा करने को कहने लगा. वहीं, प्रहलाद किसी दूसरी चीज की चिंता किए बिना भगवन विष्णु की भक्ति में लीन रहता था. प्रहलाद की ये भक्ति हिरण्यकश्यप को बिकुल पसंद नहीं थी. जिसके लिए वह अपने बेटे को बड़ी यातनाएं दीं. बेटे द्वारा अपनी पूजा ना करने से नाराज उस राजा ने अपने बेटे को मारने का निर्णय किया. उसने अपनी छोटी बहन होलिका से प्रहलाद को मारने की बात कही.

होलिका को वरदान था कि वह आग में नहीं जाल सकती. इसलिए हिरण्याकश्यप ने प्रहलाद को होलिका की गोद में बैठा कर अग्नि में बैठा दिया. उनकी योजना प्रहलाद को जलाने की थी, लेकिन उनकी योजना सफल नहीं हो सकी क्योंकि प्रहलाद सारा समय भगवान विष्णु का नाम लेता रहा और बच गया पर होलिका जलकर राख हो गई. होलिका की ये हार बुराई के नष्ट होने का प्रतीक है.

क्या है होलिका दहन की पौराणिक कथा व होलिका दहन की पूजन विधि
क्या है होलिका दहन की पौराणिक कथा व होलिका दहन की पूजन विधि

इसके बाद भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप का वध कर दिया, इसलिए होली का त्योहार (Holi festival 2022), होलिका की मौत की कहानी से जुड़ा हुआ है. भारत के कुछ राज्यों में होली से एक दिन पहले बुराई के अंत के प्रतीक के तौर पर होली जलाई जाती है. पंडित विश्वनाथ ने बताया कि भारत भर में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाने वाला दूसरा सबसे महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है. हरियाणा राज्य की बात करें तो यहां भी यह दो दिवसीय उत्सव छोटी होली या होलिका दहन से शुरू होता है और उसके बाद रंगवाली होली होती है. होली के त्योहार पर देश भर में काफी धूम रहती है. लोग एक दूसरे के गले मिलकर सारे गिले शिकवे भूल जाते हैं और जमकर होली का जश्न मनाते हैं.

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होलिका दहन की पूजा विधि क्या है- होलिका दहन की पूजा के लिए सर्वप्रथम स्नान करना बेहद जरूरी है. स्नान के बाद होलिका की पूजा वाले स्थान पर उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुंह करके बैठ जाएं. इसके बाद पूजा के लिए गाय के गोबर से होलिका और प्रहलाद की प्रतिमा बनाए. होलिका पूजन में रोली, धूप, फूल, गुड़, हल्दी, बताशे, गुलाल और नारियल जैसी चीजें अर्पित की जाती है. उंबी, गोबर से बने बड़कुले, नारियल भी अर्पित कर विधिपूर्वक पूजन करें. मिठाइयां और फल भी अर्पित करें. भगवान निरसिंह का भी विधि-विधान से पूजन करें. इसके बाद होलिका के चार और सात बार परिक्रमा करें.

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Last Updated : Mar 17, 2022, 7:28 PM IST
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