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करनाल: इस तकनीक से डार्क जोन में भी धान की खेती कर सकते हैं किसान

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Published : Jun 1, 2020, 9:28 AM IST

Updated : Jun 1, 2020, 9:35 AM IST

करनाल स्थित केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान की तकनीक किसानों के लिए कारगर साबित हो रही है. संस्थान ने रेन वाटर हार्वेस्टिंग और सब सरफेस ड्रिप इरीगेशन तकनीक का इस्तेमाल कर पानी के दोहन को आधा कर दिया है.

Drip irrigation technique
Drip irrigation technique

करनाल: सूबे में गिरता जलस्तर चिंता का विषय बना हुआ है. करनाल, जींद, कैथल और भिवानी समेत कई जिले डॉर्क जोन में आ चुके हैं. एक्सपर्ट के मुताबिक हरियाणा में भू-जल स्तर 1 मीटर प्रतिवर्ष की दर से नीचे खिसक रहा है. कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक धान की पैदावार, बढ़ती जनसंख्या और औद्योगिक विकास इसके पीछे मुख्य कारण है.

डार्क जोन वाले इलाकों में सरकार सूक्ष्म सिंचाई परियोजनाओं और रेन वाटर हार्वेस्टिंग के जरिए भू-जल का स्तर संतुलित करना चाहती है. ताकि किसानों को सिंचाई की कमी ना हो. इसके लिए करनाल स्थित केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान की तकनीक किसानों के लिए कारगर साबित हो रही है. संस्थान ने रेन वाटर हार्वेस्टिंग और सब सरफेस ड्रिप इरीगेशन तकनीक का इस्तेमाल कर पानी के दोहन को आधा कर दिया है.

इस तकनीक से डार्क जोन में भी धान की खेती कर सकते हैं किसान!

पानी की कमी को रोका जा सके इसके लिए सरकार ने किसानों से भी धान की सफल ना उगाने की अपील की है. संस्थान के प्रमुख वैज्ञानिक डॉक्टर एचएच जाट ने कहा कि मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान कई सालों से जल प्रबंधन को लेकर काम कर रहा है. संस्थान की रेन वाटर हार्वेस्टिंग और सब सर्विस ड्रिप इरीगेशन तकनीक को अपनाकर खेती में पानी की जरूरत को आधा किया जा सकता है.

ये भी पढ़ें- कोरोना के कहर के बीच देश में गेहूं का रिकॉर्ड उत्पादन, हरियाणा के इस संस्थान का अहम योगदान

करनाल स्तिथ देश के एकमात्र केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान ने पानी बचाने के लिए कई योजनाएं तैयार की हैं और कई परियोजनाओं पर शोध अभी चल रहा है. संस्थान के विशेषज्ञ ने ईटीवी भारत से बतचीत के दौरान सरकार से अपील करते हुए कहा कि विशेषज्ञों के जरिए जो शोध किया है उसपर ठोस कदम उठाए जाए.

करनाल: सूबे में गिरता जलस्तर चिंता का विषय बना हुआ है. करनाल, जींद, कैथल और भिवानी समेत कई जिले डॉर्क जोन में आ चुके हैं. एक्सपर्ट के मुताबिक हरियाणा में भू-जल स्तर 1 मीटर प्रतिवर्ष की दर से नीचे खिसक रहा है. कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक धान की पैदावार, बढ़ती जनसंख्या और औद्योगिक विकास इसके पीछे मुख्य कारण है.

डार्क जोन वाले इलाकों में सरकार सूक्ष्म सिंचाई परियोजनाओं और रेन वाटर हार्वेस्टिंग के जरिए भू-जल का स्तर संतुलित करना चाहती है. ताकि किसानों को सिंचाई की कमी ना हो. इसके लिए करनाल स्थित केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान की तकनीक किसानों के लिए कारगर साबित हो रही है. संस्थान ने रेन वाटर हार्वेस्टिंग और सब सरफेस ड्रिप इरीगेशन तकनीक का इस्तेमाल कर पानी के दोहन को आधा कर दिया है.

इस तकनीक से डार्क जोन में भी धान की खेती कर सकते हैं किसान!

पानी की कमी को रोका जा सके इसके लिए सरकार ने किसानों से भी धान की सफल ना उगाने की अपील की है. संस्थान के प्रमुख वैज्ञानिक डॉक्टर एचएच जाट ने कहा कि मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान कई सालों से जल प्रबंधन को लेकर काम कर रहा है. संस्थान की रेन वाटर हार्वेस्टिंग और सब सर्विस ड्रिप इरीगेशन तकनीक को अपनाकर खेती में पानी की जरूरत को आधा किया जा सकता है.

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करनाल स्तिथ देश के एकमात्र केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान ने पानी बचाने के लिए कई योजनाएं तैयार की हैं और कई परियोजनाओं पर शोध अभी चल रहा है. संस्थान के विशेषज्ञ ने ईटीवी भारत से बतचीत के दौरान सरकार से अपील करते हुए कहा कि विशेषज्ञों के जरिए जो शोध किया है उसपर ठोस कदम उठाए जाए.

Last Updated : Jun 1, 2020, 9:35 AM IST
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