करनाल: दीपावली का पर्व 5 दिन तक मनाया जाता है, जिसकी शुरुआत धनतेरस से हो जाती है. धनतेरस के दिन को छोटी दिवाली के नाम से भी जाना जाता है और दीपावली को दीपों का त्योहार कहा जाता है क्योंकि इसमें हर कोई अपने घर में दीपक जलता है. दिवाली की शुरुआत तब हुई थी, जब भगवान श्री राम लंका पर विजय पाकर अयोध्या पहुंचे थे. उनकी खुशी में पूरे अयोध्या को दीपों से सजाया गया था और तब से इस पर्व को मनाया जाता है. इस दिन विशेष तौर पर मिट्टी के दीये में सरसों का तेल डालकर उसको जलाया जाता है, जिससे पूरा घर और उनके आसपास का क्षेत्र रोशन हो जाता है.
दिवाली पर साफ-सफाई के पीछे क्या है मान्यता?: हालांकि मौजूदा समय में कर को रोशन करने के लिए बिजली से चलने वाली लड़ियां भी आ गई हैं. दीपावली से पहले अपने घर को रोशन करने से पहले घर की साफ सफाई कर लेनी चाहिए. मान्यता है कि माता लक्ष्मी उसी घर में वास करती हैं, जिनके घर में साफ सफाई होती है और रोशनी होती है. दीपक जलाना एक परंपरा ही नहीं इसे घर के प्रत्येक व्यक्ति के लिए काफी शुभ प्रतीक माना जाता है. माना जाता है कि दीपक जलाने से माता लक्ष्मी और भगवान गणेश प्रसन्न होते हैं और घर में सुख समृद्धि और लक्ष्मी का वास होता है.
दिवाली पर दिए जलाने की परंपरा कैसे हुई शुरू?: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, त्रेता युग में भगवान श्री राम माता सीता और अपने भाई लक्ष्मण के साथ लंका विजय करने के बाद 14 वर्षों के वनवास काटकर अपने घर अयोध्या में लौटे थे, जिस दिन वह अयोध्या में लौटे थे वह कार्तिक महीने की अमावस्या तारीख थी, जिस दिन दीपावली होती है. अयोध्या वासियों ने उनके स्वागत के लिए रास्ते में लाइनों में दिए जलाए थे और पूरे अयोध्या को भी दिए जलाकर जगमग किया था. मान्यता है कि तभी से दीपावली मनाई जा रही है और दीपावली पर दीये जलाने का विशेष प्रचलन है.
दीपावली के दिन पहले दीपक किसके नाम का होता है?: पंडित शशि शर्मा के अनुसार दीपावली के दिन दीपक जलाना सबसे महत्वपूर्ण होता है. इसकी शुरुआत धनतेरस या छोटी दिवाली के दिन से हो जाती है. माना जाता है कि दीपावली के दिन सबसे पहले का दीपक घर के बुजुर्ग जलाते हैं, जिसको फिर घर के सदस्य घर के हर कोने में लेकर जाते हैं. इस दीपक को यम या यमराज कहा जाता है और फिर इस दीपक को घर के बाहर दक्षिण दिशा में या कूड़ेदान या नाली में रख देते हैं या किसी दूर के स्थान पर रख देते हैं. ऐसी मान्यता है कि यम दीपक जलाने से घर से सभी प्रकार की बुराइयां और नकारात्मक शक्तियां भाग जाती हैं. इस दीपक को जलाने के लिए पुराने दीपक का ही प्रयोग किया जाता है.
दीपावली के दिन 13 दीपक जलाने का महत्व: दीपावली के दिन पहले दीपक यमराज के नाम का होता है. यमराज दीपक जलाने के पीछे ऐसी मान्यता है कि परिवार में किसी की भी अकाल मृत्यु नहीं होती. उसके बाद माता लक्ष्मी और भगवान गणेश के आगे मिट्टी के दीपक जलाने चाहिए. लेकिन, खास मान्यता यह कि दीपावली के दिन 13-13 दीपक 2 जगह जलाकर रखने चाहिए. छोटी दिवाली या धनतेरस के दिन अंधेरा होते ही 13 दीपक जलाकर घर के मुख्य द्वार के आगे रखें और उसके बाद 13 दीपक और जलाकर घर में रखें.
दीये जलाकर घर में कहां-कहां रखें?: ज्योतिषाचार्य के अनुसार, 13 दीपक घर में रखने के लिए तैयार किए जाते हैं. वह घर के अंदर घर के आंगन, रसोई और जहां सोते हैं उस कमरे में रखें. इसके साथ-साथ अगर कोई गांव में रहता है, वहां पर दादे खेड़े पर, गांव के कुएं पर, चौपाल और अपने कुल देवता के आगे दीपक रखें. वहीं, अपने घर के बने कमरों में हर कोनों में भी दीपक जलाकर रखें. पांच दीप देसी घी डालकर जलाएं और उनको अपने मंदिर में माता लक्ष्मी और भगवान गणेश और अन्य देवी देवताओं के आगे रखें.
व्यापारी दीपावली के दिन अपना खाता बही क्यों बदलते हैं?: ऐसी मान्यता है कि जितने भी व्यापारी वर्ग लोग हैं वे अपनी पुरानी बही खाता हटाकर नया खाता बही लगाते हैं. इन दिनों किसानों की मुख्य फसल धान की कटाई होने के बाद वह अनाज मंडी में जाते हैं और उसे बेचकर आते हैं. धान की फसल किसानों की मुख्य फसल होती है और किसानों की अगर फसल अच्छी होती है तो उससे हर वर्ग को फायदा होता है. साथ ही बाजार में ज्यादा खरीदारी होती है. मान्यता है कि व्यापारी लोग दिवाली के त्योहार को एक प्रकार से नव वर्ष के रूप में देखते हैं. दीपावली के दिन वह अपनी बही खाता की पूजा अर्चना करते हैं, क्योंकि एक प्रकार से उनके व्यापार में अब नया वर्ष शुरू होने वाला होता है. दरअसल दिवाली के दिन को माता लक्ष्मी और भगवान कुबेर का दिन माना जाता है और उनकी पूजा अर्चना भी धन समृद्धि के लिए की जाती है.
दिवाली के दिन खाता बही पर स्वास्तिक और शुभ लाभ क्यों बनाया जाता है?: पंडित ने अनुसार दीपावली का त्योहार हर किसी के लिए खुशी से लेकर आता है. इस दिन विशेष तौर पर माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना की जाती है, ताकि सभी के घरों में लक्ष्मी की कभी भी कमी ना हो. व्यापारी लोग इस दिन अपनी नई बही खाता बनाते हैं और उसके ऊपर स्वास्तिक बनाते है. बही खाता पर शुभ-लाभ भी लिखते हैं. बही खाता पर ऐसा इसलिए लिखा जाता है क्योंकि इसको शुभ का प्रतीक माना जाता है. मान्यता है कि ऐसा करने से उनके व्यापार में वृद्धि होती है और उन पर धन की वर्षा होती है. बही खाता की विधिवत रूप से पूजा अर्चना भी की जाती है. जैसे माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा अर्चना की जाती है उसी प्रकार बही खाता की पूजा में भी फल फूल दीप मिठाई इत्यादि का भोग लगाकर की जाती है. विशेष तौर पर खाता बही पर चंदन, केसर और रोली के साथ स्वास्तिक बनाए जाते हैं.
दीपावली के दिन दीपक से क्यों बनाया जाता है काजल?: पंडित के मुताबिक काला रंग शुरू से ही बुरी नजर से बचाने वाला रंग होता है, जिसमें हम काला टीका या नजर बट्टू लगते हैं. ऐसी परंपरा पिछले काफी वर्षों से चलती आ रही है कि दीपावली के दिन जो हम दीप जलाते हैं, उस दीये से हम काजल बनाते हैं. उस काजल को अपने बच्चों को काले टीके के रूप में लगाते हैं. हालांकि इसके पीछे वैज्ञानिक दृष्टि से अगर देखें तो यह इसलिए तैयार किए जाते हैं, क्योंकि दीपावली के दिनों में प्रदूषण काफी होता है और इसी के चलते बच्चों को काजल लगाया जाता है. ताकि आंखों पर प्रदूषण का प्रभाव न पड़े. धार्मिक दृष्टि से भी इसका विशेष महत्व है, क्योंकि दीपावली के दीये से तैयार किया गया काजल काफी शुभ माना जाता है. मान्यता है कि काजल का टीका लगाने से बच्चे पर किसी भी प्रकार की बुरी शक्ति का प्रभाव नहीं पड़ता है और बच्चा स्वस्थ रहता है.
ये भी पढ़ें: दिवाली 2023: जानिए कैसे तैयार करें पूजा की थाली, माता लक्ष्मी और गणेश भगवान की मूर्ति कैसी हो?