करनाल: हरियाणा के करनाल में एक ऐसी भी महिला हुई जिन्होंने सामाजिक कुप्रथाओं की बेड़ियों को तोड़ते हुए महिलाओं के लिए मिशाल बन गईं. जी हां, हम बात कर रहे हैं करनाल की धनपति देवी (first woman sarpanch of Haryana) की. धनपति देवी करनाल के औगंद गांव की रहने वाली थीं. वह महिलाओं के अधिकारों के लिए आगे आईं और उनको घर से बाहर जाने और खुद की पहचान बनाने के लिए प्रेरित किया.
धनपति देवी ने समाज की पर्दा कुप्रथा को बदलते हुए घूंघट की बेड़ियां तोड़ी और वह हरियाणा की पहली महिला सरपंच (Haryana first woman sarpanch) बनी. वह 1978 में सरपंच चुनी गईं और उन्होंने 1983 तक गांव की चौधर की बागडोर संभाली. स्वर्गीय धनपति देवी के पुत्र एडवोकेट राममूर्ति शर्मा ने बताया कि जिस समय उनकी माता सरंपच बनीं तो उनकी उम्र करीब 44 साल की थी. नामांकन भरा तो लोगों ने तरह-तरह की बातें की. समाज ने सवाल उठाए. महिला होकर गांव की पंचायत को कैसे चलाएगी. फिर उनके सरपंच बनने के बाद ग्रामीणों ने सहयोग भी किया और उन्होंने बतौर सरपंच गांव में विकास कार्य कराए.
राममूर्ति के मुताबिक पिता स्वर्गीय हरि सिंह भी सरंपच रहे लेकिन 1978 में जब नामांकन भरे जा रहे थे तब पिता किसी काम के चलते गांव से बाहर गए हुए थे. नामांकन के अंतिम दिन वह गांव में नहीं पहुंच पाए. ऐसे समय पर उनकी माता धनपति देवी का नामांकन सरपंच पद के लिए किया गया था और वह करीब पांच सौ मतों से विजयी (First Women Sarpanch Dhanpati Devi) हुई थीं.
चुनाव में दो पुरुषों के सामने धनपति महिला उम्मीदवार थीं. ग्रामीण ने बताया कि उस समय महिलाएं घर में ही रहती थीं. जब वह सरपंच बनीं तो छोटे विवादों को पंचायत स्तर पर ही निपटा देती थीं. उनकी सूझबूझ से हर कोई प्रभावित होता था. उनके सरपंच बनने के बाद महिलाओं को लेकर लोगों की सोच में अच्छा बदलाव (Haryana woman sarpanch) आया. माना जाता है कि धनपति की उपलब्धि ने महिलाओं के लिए राजनीति में बंद दरवाजों खोले और कुछ वर्ष बाद पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव में महिलाओं के लिए पद आरक्षित किए जाने लगे.
महिलाएं भी गांवों की राजनीति में सक्रिय होने लगीं. इसका मुख्य कारण था कि उन्होंने सरपंच बनने के बाद गांव में विकास का एक नया दौर शुरू किया और गांव को विकास की नई राह दिखाई. ग्रामीण संतोष शर्मा ने बताया कि जब वह सरपंच बनीं तो पूरे जिले में चर्चा का विषय बन गया था कि अब एक महिला गांव संभालेंगी. लेकिन उन्होंने सरपंच पद को 5 वर्ष तक अच्छे से चलाया और गांव का विकास किया. तब गांव में करीब दो हजार मतदाता थे और करीब पांच हजार आबादी थी.