करनाल/जींद: संयुक्त किसान मोर्चा एवं ट्रेड यूनियनों के संयुक्त आह्वान पर मंगलवार को किसान आंदोलन की चौथी बरसी एवं संविधान दिवस के अवसर पर किसान, मजदूरों ने शहर में चेतावनी प्रदर्शन किया. प्रदर्शनकारियों ने लघु सचिवालय पहुंच कर उपायुक्त को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के नाम ज्ञापन सौंपा. इससे पहले किसान-मजदूर नेहरू पार्क में एकत्रित हुए और जनसभा की.
किसान-मजदूरों का प्रदर्शन: मजदूर और किसानों ने बताया कि चार साल पहले कृषि कानून के खिलाफ किसानों ने प्रदर्शन किया था. लंबे संघर्ष के बाद कृषि कानून वापस ले लिए गए, लेकिन किसानों से किए गए वादे आज तक पूरे नहीं हुए हैं. दूसरी तरफ मजदूर विरोधी चारों श्रम कोडों को केंद्र सरकार देश में लागू कर रही है. जो मजदूरों के लिए गुलामी के समान है. उन्होंने मांग की कि सभी फसलों के लिए खरीद की कानूनी गारंटी हो.
इन मांगों को लेकर प्रदर्शन: मजदूर विरोधी चारों श्रम संहिताओं को निरस्त किया जाए. श्रम की आउटसोर्सिंग और ठेका करण की नीति खत्म हो. संगठित, असंगठित, स्कीम वर्कर्स और कृषि क्षेत्र के सभी श्रमिकों के लिए न्यूनतम वेतन 26 हजार रुपये मासिक व सामाजिक सुरक्षा लागू की जाए. किसानों व मजदूरों की कर्ज मुक्त हो. सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों व सामाजिक सेवाओं का निजीकरण बंद हो. बिजली के स्मार्ट मीटर लगाने बंद किए जाए.
डीसी को सौंपा ज्ञापन: किसान-मजदूरों की मांग है कि अंधाधुंध भूमि अधिग्रहण समाप्त हो. मनरेगा में 200 दिन काम व 600 रुपये मजदूरी दी जाए. जो किसी योजना में शामिल नहीं हैं. उनको 10 हजार रुपये मासिक पेंशन दी जाए. निर्माण मजदूरों का कल्याण बोर्ड में पंजीकरण हो. सार्वजनिक धन के निगमीकरण और लोगों को विभाजित करने वाली विभाजनकारी नीतियों के उद्देश्य से सांप्रदायिक व कॉरपोरेट परस्त नीतियों पर प्रतिबंध लगाया जाए
खेत मजदूरों सहित असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए केंद्रीय कानून बने व लागू हो. डीएपी, यूरिया खाद की आपूर्ति बढ़ाई जाए ताकि किसानों को आपूर्ति अनुसार दिया जा सके. पराली जलाने के नाम पर बनाए गए झूठे मुकदमों को रद्द किया जाए.
करनाल में भी प्रदर्शन: करनाल में भी किसान-मजदूरों ने विरोध प्रदर्शन किया. उन्होंने महात्मा गांधी चौक से सेक्टर 12 तक पैदल नारेबाजी करते हुए प्रदर्शन किया. किसान और मजदूरों ने कहा कि जब तक लंबित मांगे पूरी नहीं होगी, इसी तरह विरोध प्रदर्शन जारी रहेगा. उन्होंने कहा कि हमने 26 नवंबर को लामबंदी के माध्यम से विरोध दिवस के रूप में चुना है, क्योंकि यही वो दिन है. जब ट्रेड यूनियनों ने मजदूर विरोधी चार श्रम कोडों के विरोध में राष्ट्रव्यापी हड़ताल की थी. किसानों ने 2020 में तीन कृषि कानूनों के खिलाफ संसद की ओर अपना ऐतिहासिक मार्च शुरू किया था. किसानों के लंबे संघर्ष के बाद कृषि कानून वापस लिए गए, लेकिन किसानों की मांगे आज भी पेंडिंग हैं.