करनाल: साल 1955 में स्थापना के बाद से एनडीआरआई में पशुओं पर काफी शोध किए जा रहे हैं. एनडीआरआई में स्थित जलवायु प्रतिरोधी पशुधन अनुसंधान केंद्र में वैज्ञानिक लगातार पशुओं पर प्रयोग कर रहे हैं. वहीं वातावरण में बदलाव से पशुधन पर क्या प्रभाव होता है, इसे लेकर लगातार कृषि वैज्ञानिक अध्ययन कर रहे हैं.
'पशुओं को होता है तनाव'
निरका परियोजना के अन्वेषक डॉ. आशुतोष ने बताया कि जब हम पशु को एक ही जगह पर बांध कर रखते हैं तो वो तनाव में आ जाता है और ठीक तरह से व्यवहार के नहीं करता. उसी को लेकर हमारे यहां पर एक रिसर्च चल रही है, जिसमें पशु अपने आपको रिलैक्स फील करता है. हम यहां पर पशुओं को उस तरह का वातावरण दे रहे हैं जिसमें पशु के ऊपर कोई भी दबाव नहीं है.
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संगीत और भजन सुन रहे पशु
डॉ. आशुतोष ने बताया कि जिस प्रकार हम किसी व्यक्ति को एक कमरे में बंद कर देते हैं और काफी समय बाद उस कमरे को खोलते हैं तो वो व्यक्ति तनाव में चला जाता है. उसको तनाव से मुक्त करने के लिए फिर किसी अलग स्थान पर ले जाते हैं. ठीक उसी प्रकार हमें पशुओं को भी तनावपूर्ण रखना होगा. हमने पशुओं को तनाव मुक्त रखने के लिए संगीत और भजन का सहारा लिया है.
गाय गाना या भजन सुन बढ़ा देती हैं दूध!
डॉ. आशुतोष ने आगे बताया कि ऐसा माना जा रहा है कि गाय गाना या भजन सुनकर ज्यादा दूध देगी और एनडीआरआई में रोज सुबह-शाम गायों को सुनाने के लिए संगीत और भजन की धुन बजाई जाती है. डॉ. आशुतोष ने कहा कि काफी समय पहले सुना था कि गायों को संगीत और भजन काफी पसंद होते हैं. जब इस विधि को अपनाया गया तो इसका परिणाम भी काफी अच्छा मिल रहा है.
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देशी गायों को अपने बच्चों से होता है काफी लगाव
एक शोध के अनुसार, विदेशी गायों के मुकाबले देशी गायों में मातृत्व की भावना अधिक होती है. यही कारण है कि बच्चा मरने के बाद वो दूध नहीं देती. विदेशी गाय ऐसी परिस्थिति में भी दूध दे देती है. संगीत की तरंगें गाय के मस्तिष्क में ऑक्सीटोसिन हार्मोंस को सक्रिय करेंगी और गाय को दूध देने के लिए प्रेरित करेंगी.
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