करनाल: एनडीआरआई करनाल लगातार पशुओं की नस्ल सुधार पर काम कर रहा है. वैज्ञानिक भाषा में इस प्रक्रिया को क्लोनिंग कहा जाता है और इस क्लोन तकनीक में एनडीआरआई (राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान) दुनियाभर में अग्रणी है. एनडीआरआई ने इसी तकनीक के जरिए मुर्रा नस्ल के एक अपग्रेड कटड़े का क्लोन बनाया है. एनडीआरआई का दावा है कि इस क्लोन से डेयरी व्यावसाय में सकारात्मक बदलाव आएंगे.
इस तकनीक में नए रिसर्च के बारे में ईटीवी भारत की टीम ने एनडीआरआई के निदेशक डॉ. मनमोहन सिंह चौहान से बातचीत की. डॉ. मनमोहन सिंह का कहना है कि देश में जितना गर्भाधारण योग्य गोवंश है हम उन में बमुश्किल तीस फीसदी को ही सीमेन डोज उपलब्ध करा पा रहे हैं. इसे बढ़ाकर पचास फीसदी तक ले जाना है. ऐसा तभी संभव होगा जब उम्दा नस्ल के कटड़े मिले और क्लोन तकनीक से हम यही कमी दूर करने की कोशिश कर रहे हैं.
नई नस्ल से सीमन डोज बढ़ाने में मिलेगी मदद
डॉ. चौहान के मुताबिक साल 2021-22 में पशु गर्भाधारण के लिए सीमेन की 14 करोड़ दूज की जरूरत होगी. अभी देश में इसकी उपलब्धता महज 8.5 करोड है. वहीं 52 सीमेन फ्रीजिंग फार्म में स्टोर है. इन्हें बढ़ाने में क्लोन तकनीक कारगर होगी.
उन्होंने कहा कि इससे विकसित एक उम्दा नस्ल के कटड़े की सीमेन से प्रति वर्ष तक से 12 कटड़ियां पैदा होंगी. एक भैसे से प्रति वर्ष लगभग 5000 सीमेन डोज फ्रीज की जा सकती हैं जो 1250 भैंस के गर्भाधारण के लिए काफी है. ये सामान्य भैंसे से कई गुना अधिक क्षमता है.
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एनडीआरआई ने विकसित किए 30 क्लोन
एनडीआरआई में ऐसे 30 क्लोन विकसित किए गए हैं. इन 30 क्लोन में 7 हिसार स्थित सीआईआरबी(राष्ट्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान) में है. इसके साथ ही पूरे देश के संस्थानों में बड़े पैमाने पर यह क्लोन विकसित किए जा रहे हैं.
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मुर्रा नस्ल को बेहतर बनाने में जुटा है रिसर्च सेंटर
डॉ. चौहान ने कहा कि मुर्रा की नई नस्ल के भैंसे के सीमन से पैदा होने वाली भैंस प्रतिदिन 10-15 लीटर दूध देगी. जोकि मुर्रा नस्ल की ही पुरानी भैंसों के करीब दोगुना दुग्ध क्षमता है. उन्होंने बताया कि फिलहाल मुर्रा नस्ल की भैंसों में 5 से 8 किलो का औसत दूध उत्पादन है. इसके लिए उम्दा नस्ल के अधिकतम क्लोन कटडे विकसित किए जा रहे हैं जो आकार प्रकार से लेकर प्रजनन क्षमता तक हूबहू मूल क्लोन कटड़ी जैसे ही होंगे ताकि इनके सीमेन से होने वाले गर्भाधारण के जरिए बेहतर दूध देने वाली भैंस को की संख्या बढ़ाई जा सके.
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प्रोजनिंग टेस्टेड कटड़ों पर हो रहा है प्रयोग- विशेषज्ञ
हमारी टीम ने संस्थान में एनिमल बायो टेक्नोलॉजी सेंटर के विशेषज्ञ डॉक्टर मनोज के सिंह से भी बात की उन्होंने बताया कि 2009 में एड्स गाइडेड क्लोन तकनीक से क्लोन कटड़ी गरिमा को विकसित किया था. अब क्लोनिंग के उन्नत स्वरूप में वह उम्दा नस्ल के प्रोजनिंग टेस्टेड कटड़ों और उन्नत नस्ल की भैंसों पर प्रयोग कर रहे हैं.
इनके तहत इनकी कान के नीचे के भाग शरीर के अन्य हिस्सों त्वचा, मूत्र से लेकर दूध तक का इस्तेमाल करके ऐसे पशु तैयार किए जा रहे हैं. जो सीमेन और दुग्ध उत्पादन बढ़ाने में कई गुना उपयोगी होंगे.
दशकों से पशुओं को लेकर सकारात्मक रिसर्च कर रहा है NDRI
बता दें कि करनाल स्थित राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान वर्ष 1923 में बेंगलुरु में पशुपालन एवं डेयरी के इंपीरियल इंस्टिट्यूट के रूप में स्थापित हुआ. साल 1955 में संस्थान का मुख्यालय करनाल में स्थानांतरित कर दिया गया और इसे दोबारा राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान का नाम दिया गया. बहरहाल इसमें कोई दो राय नहीं है तब से लेकर आज तक इस संस्थान ने भारत देश में दुग्ध उत्पादन और दूध से उत्पाद बनाने वाले संस्थानों के लिए भी क्रांतिकारी योगदान दिया है.