करनाल: इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हर कोई करियर बनाने की होड़ में लगा है. जिसकी वजह से आजकल देरी से शादी करने का चलन बढ़ रहा है. आजकल के युवा 32 या 35 साल की उम्र के बाद शादी की सोचते हैं. क्या आपने कभी सोचा है कि देर से शादी करने पर पैदा होने वाले बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ता है? डॉक्टर्स के मुताबिक अगर कोई महिला 35 साल के बाद मां बनती है तो उसके बच्चे में डाउन सिंड्रोम नाम की बीमारी होने का खतरा ज्यादा होता है. इस बीमारी की वजह से पैदा होने वाले बच्चों में शारीरिक विकार हो सकता है. इसके साथ बच्चा मंद बुद्धि हो सकता है.
क्या है डाउन सिंड्रोम बीमारी? आजकल बच्चों में डाउन सिंड्रोम नाम की बीमारी बड़ी समस्या बन चुकी है. नेशनल सर्वे के मुताबिक 700 बच्चों में से एक बच्चे में डाउन सिंड्रोम की बीमारी मिल रही है. डाउन सिंड्रोम ऐसी बीमारी है, जिसमें बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास आम बच्चों जैसा नहीं हो पाता. इसका सबसे बड़ा कारण है ज्यादा उम्र में मां बनना. 35 साल की उम्र के बाद महिला अगर गर्भवती होती है तो उसका बच्चे में डाउन सिंड्रोम की बीमारी होने का खतरा ज्यादा रहता है.
क्यों होती है ये बीमारी? ये एक अनुवांशिक समस्या है. जो क्रोमोसोम की वजह से होती है. गर्भावस्था में गर्भ को 46 क्रोमोसोम मिलते हैं. जिनमें 23 माता और 23 पिता के होते हैं, लेकिन डाउन सिंड्रोम पीड़ित बच्चों में से 21वें क्रोमोजोम की एक प्रति ज्यादा होती है. यानी उसमें 47 क्रोमोजोम पाए जाते हैं. जिससे उसका मानसिक और शारीरिक विकास धीमा हो जाता है. क्रोमोजोम की अधिकता की वजह से बीमारी गर्भावस्था में ही बच्चे के अंदर पनपती है.
क्या हैं बीमारी के लक्षण? डॉक्टर निधि ने बताया कि जिन बच्चों में डाउन सिंड्रोम बीमारी होती है. वो ज्यादातर मंदबुद्धि होते हैं. उन बच्चों का शारीरिक विकास भी ठीक से नहीं हो पाया. ऐस बच्चों की नाक ज्यादा चपटी होती है. जीभ मोटी हो जाती है, जिससे बच्चे के बोलने की क्षमता कम होती है. इस बीमारी में कुछ बच्चों की नाक लंबी हो जाती है. कुछ की आंखें सामान्य से छोटी या कुछ की सामान्य से बड़ी हो जाती हैं. बच्चों के हथेलियों में लकीरें नहीं होती. इस बीमारी में बच्चों के होंठ फटे हो सकते हैं. कान में भी विकृति पैदा हो सकती है. बच्चे में चलने की भी समस्या हो सकती है.
क्या संभव है डाउन सिंड्रोम बीमारी का इलाज? डॉक्टर निधि ने बताया कि डाउन सिंड्रोम जैसी बीमारी से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम चलाया हुआ है. जिसमें 30 बीमारियों को चुना गया है. जिसमें डाउन सिंड्रोम मुख्य बीमारी है. इन बीमारियों से बचने के लिए स्वास्थ्य विभाग समय-समय पर जागरूकता कैंप लगाए जाते हैं. जिसके लिए करनाल में 11 टीमें बनाई हुई हैं. ये टीमें गांवों और शहरों में स्क्रीनिंग टेस्ट करती हैं. अगर किसी महिला का बच्चा इससे पीड़ित पाया जाता है, तो उसकी रिपोर्ट जिला स्तर पर दी जाती है.
डॉक्टर की सलाह पर फिर उनका इलाज शुरू किया जाता है. इस बीमारी की पहचान करने के लिए गर्भवती महिला के शुरुआती कुछ महीनों में स्पेशल स्क्रीनिंग टेस्ट और अल्ट्रासाउंड कराए जाते हैं. उसके बाद उनका ट्रीटमेंट शुरू कर दिया जाता है. शुरुआती तौर पर महिलाओं के ट्रीटमेंट से इस पर काफी हद तक काबू पाया जाता है. वहीं जन्म के बाद भी बच्चों का स्पेशल थेरेपी और स्पेशल ट्रीटमेंट देख कर बच्चों का इलाज किया जाता है. ये एक जेनेटिक डिसऑर्डर बीमारी है.
डॉक्टर निधि ने बताया कि ये इसमें पहले माता-पिता की हिस्ट्री पर ट्रीटमेंट किया जाता है.
अगर इसमें पहला बच्चा इस बीमारी से ग्रस्त है, तो उसके दूसरे बच्चे का भी इस ग्रस्त होने के 25% चांस होते हैं. अगर परिवार में किसी को भी इस प्रकार की पहले बीमारी है, तो होने वाला बच्चा इस बीमारी का शिकार हो सकता है. करनाल जिले की बात करें तो साल 2021-22 में सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार जिले के सरकारी अस्पताल में 7 डाउन सिंड्रोम के सामने आए थे. साल 2023 के शुरुआत में ही अब तक डाउन सिंड्रोम के 14 केस सामने आ चुके हैं. ये एक सिर्फ नागरिक अस्पताल की रिपोर्ट है. शहर के बाकी अस्पतालों में और भी मामले हो सकते हैं.