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लॉकडाउन के चलते आशा वर्कर्स ने काली चुन्नी ओढ़कर किया विरोध प्रदर्शन

कैथल में अपनी विभिन्न मांगों को लेकर आशा वर्कर्स ने अपने-अपने कार्यक्षेत्र में रहते हुए सभी सेंटर्स पर काली चुन्नी ओढ़कर एक अनोखा विरोध प्रदर्शन किया.

कैथल
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Published : May 13, 2020, 9:00 AM IST

कैथल: लॉकडाउन के दौरान कैथल में अपना काम करते हुए आशा वर्कर्स ने शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन किया. अपनी विभिन्न मांगों को लेकर आशा वर्कर्स ने अपना काम जारी रखते हुए सभी सेंटर्स पर काली चुन्नी ओढ़कर एक अनोखा विरोध प्रदर्शन किया. उन्होंने सोशल डिस्टेंसिंग की पालना करते हुए व अपने-अपने सेंटर्स पर काम करते हुए विरोध जताया.

आशा वर्कर उर्मिला वर्मा का कहना है कि केंद्र व राज्य सरकार इस महामारी में विभाग के सभी प्रकार के सर्वे आशा वर्कर से करवा रही है. इस महामारी में जब सब लॉकडाउन के चलते अपने घरों में सुरक्षित हैं, उस समय में पूरे देश में आशा वर्कर्स अपनी ड्यूटी कर रहे हैं. प्रदेश के सभी जिलों में आशा वर्कर्स से इस महामारी में अलग-अलग तरह से ड्यूटी कराई जा रही है.

सभी जिलों से ड्यूटी के दौरान आशा वर्कर्स के साथ मारपीट व अभद्र व्यवहार की घटनाएं सामने आई हैं लेकिन सरकार और अधिकारियों का रुख संतोषजनक नहीं है. आशा वर्कर्स यूनियन ने इस महामारी के चलते कई बार इन सब समस्याओं को लेकर उच्च अधिकारियों पत्र लिखे हैं लेकिन आज तक ना ही उच्च अधिकारियों की तरफ से औऱ ना ही सरकार की तरफ से कोई जवाब आया है.

ये भी पढ़ें- पंचकूला: कोरोना पॉजिटिव मरीज मिलने पर बागवाली गांव कंटेनमेंट जोन घोषित

इस महामारी में इतनी समस्याओं को लेकर कार्य कर रही आशा वर्कर्स को सरकार और स्वास्थ्य विभाग ने आंदोलन करने के लिए मजबूर किया है. इन सब समस्याओं के चलते आशा वर्कर्स यूनियन को इस कोरोना महामारी में आंदोलन करने का निर्णय लेना पड़ा है, यह बहुत दुखदाई बात है लेकिन सरकार और विभाग ने प्रदेश भर की लगभग 20,000 आशा वर्कर्स को आंदोलन के लिए मजबूर कर दिया है.

स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत एनएचएम के तहत वर्ष 2005 में आशा वर्कर्स लगाई गई. जिस समय सरकार द्वारा यह परियोजना चलाई गई उस समय इसका लक्ष्य देश में हो रही मातृ मृत्यु, शिशु मृत्यु और टीकाकरण जैसे गंभीर मसलों को सुलझाना था. आशा वर्कर्स लगाए जाने के बाद ना केवल मातृ मृत्यु दर, शिशु मृत्यु दर, टीकाकरण संस्थागत प्रसव की स्थिति में सुधार हुआ है बल्कि आज 15 साल बाद पूरे देश में आशा वर्कर्स स्वास्थ्य विभाग की नींव है.

आज इस महामारी में पूरे देश और हरियाणा प्रदेश में आशा वर्कर्स अहम भूमिका निभा रही हैं. इस महामारी में स्वास्थ्य विभाग के तमाम तरह के स्वास्थ्य से जुड़े हुए सर्वे करते करते आज आशा इस महामारी की चपेट में आ गई हैं और दुख की बात यह है कि केंद्र व राज्य सरकारों ने महामारी के चलते स्वास्थ्य विभाग में ड्यूटी करने वाले सभी पैरामेडिकल डॉक्टर नर्स का दुर्घटना बीमा करने की घोषणा की है लेकिन केंद्र व राज्य सरकारों ने इस बीमा योजना में भी आशा वर्कर्स के साथ भेदभाव किया है.

आशा वर्कर्स इंसेंटिव आधारित कार्य करती हैं. इस महामारी के चलते प्रदेशभर की आशा वर्कर्स के इंसेंटिव आधारित कार्य प्रभावित हुए हैं. इससे तमाम हरियाणा की आशा वर्कर को आर्थिक नुकसान हुआ है. एक तरफ आशा वर्कर्स इस महामारी से लड़ने में सबसे अगली पंक्ति में खड़ी हैं और दूसरी तरफ आशा को आर्थिक नुकसान हो रहा है. यहां तक कि हरियाणा प्रदेश में केंद्र सरकार द्वारा इस महामारी के सर्वे के लिए घोषित ₹1000 की राशि का भी कोई पत्र जारी नहीं किया है.

ये भी पढ़ें- हिसार में रेलवे ट्रेक पार करते वक्त तीन बच्चों की दर्दनाक मौत

हरियाणा सरकार ने कोरोना महामारी में ड्यूटी करने वाले डॉक्टर पैरामेडिकल स्टाफ नर्स के लिए दोगुने वेतन की घोषणा की है. इस घोषणा से भी हरियाणा सरकार ने आशा वर्कर को वंचित रखा है और इस महामारी के चलते प्रदेश भर में स्वास्थ्य विभाग आशा वर्कर्स पर आशा सर्वेक्षण ऐप के माध्यम से ऑनलाइन रिपोर्ट भेजने का दबाव बना रहा है जबकि राज्य सरकार और स्वास्थ्य विभाग ने आशा वर्कर्स को कोई ऐसा उपकरण उपलब्ध नहीं करवा रखा जिससे वह इस रिपोर्ट को ऑनलाइन भेज सके. अगर सरकार ने समय रहते इन सब समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया तो आशा वर्कर्स बड़ा आंदोलन करने को मजबूर होंगी.

कैथल: लॉकडाउन के दौरान कैथल में अपना काम करते हुए आशा वर्कर्स ने शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन किया. अपनी विभिन्न मांगों को लेकर आशा वर्कर्स ने अपना काम जारी रखते हुए सभी सेंटर्स पर काली चुन्नी ओढ़कर एक अनोखा विरोध प्रदर्शन किया. उन्होंने सोशल डिस्टेंसिंग की पालना करते हुए व अपने-अपने सेंटर्स पर काम करते हुए विरोध जताया.

आशा वर्कर उर्मिला वर्मा का कहना है कि केंद्र व राज्य सरकार इस महामारी में विभाग के सभी प्रकार के सर्वे आशा वर्कर से करवा रही है. इस महामारी में जब सब लॉकडाउन के चलते अपने घरों में सुरक्षित हैं, उस समय में पूरे देश में आशा वर्कर्स अपनी ड्यूटी कर रहे हैं. प्रदेश के सभी जिलों में आशा वर्कर्स से इस महामारी में अलग-अलग तरह से ड्यूटी कराई जा रही है.

सभी जिलों से ड्यूटी के दौरान आशा वर्कर्स के साथ मारपीट व अभद्र व्यवहार की घटनाएं सामने आई हैं लेकिन सरकार और अधिकारियों का रुख संतोषजनक नहीं है. आशा वर्कर्स यूनियन ने इस महामारी के चलते कई बार इन सब समस्याओं को लेकर उच्च अधिकारियों पत्र लिखे हैं लेकिन आज तक ना ही उच्च अधिकारियों की तरफ से औऱ ना ही सरकार की तरफ से कोई जवाब आया है.

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इस महामारी में इतनी समस्याओं को लेकर कार्य कर रही आशा वर्कर्स को सरकार और स्वास्थ्य विभाग ने आंदोलन करने के लिए मजबूर किया है. इन सब समस्याओं के चलते आशा वर्कर्स यूनियन को इस कोरोना महामारी में आंदोलन करने का निर्णय लेना पड़ा है, यह बहुत दुखदाई बात है लेकिन सरकार और विभाग ने प्रदेश भर की लगभग 20,000 आशा वर्कर्स को आंदोलन के लिए मजबूर कर दिया है.

स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत एनएचएम के तहत वर्ष 2005 में आशा वर्कर्स लगाई गई. जिस समय सरकार द्वारा यह परियोजना चलाई गई उस समय इसका लक्ष्य देश में हो रही मातृ मृत्यु, शिशु मृत्यु और टीकाकरण जैसे गंभीर मसलों को सुलझाना था. आशा वर्कर्स लगाए जाने के बाद ना केवल मातृ मृत्यु दर, शिशु मृत्यु दर, टीकाकरण संस्थागत प्रसव की स्थिति में सुधार हुआ है बल्कि आज 15 साल बाद पूरे देश में आशा वर्कर्स स्वास्थ्य विभाग की नींव है.

आज इस महामारी में पूरे देश और हरियाणा प्रदेश में आशा वर्कर्स अहम भूमिका निभा रही हैं. इस महामारी में स्वास्थ्य विभाग के तमाम तरह के स्वास्थ्य से जुड़े हुए सर्वे करते करते आज आशा इस महामारी की चपेट में आ गई हैं और दुख की बात यह है कि केंद्र व राज्य सरकारों ने महामारी के चलते स्वास्थ्य विभाग में ड्यूटी करने वाले सभी पैरामेडिकल डॉक्टर नर्स का दुर्घटना बीमा करने की घोषणा की है लेकिन केंद्र व राज्य सरकारों ने इस बीमा योजना में भी आशा वर्कर्स के साथ भेदभाव किया है.

आशा वर्कर्स इंसेंटिव आधारित कार्य करती हैं. इस महामारी के चलते प्रदेशभर की आशा वर्कर्स के इंसेंटिव आधारित कार्य प्रभावित हुए हैं. इससे तमाम हरियाणा की आशा वर्कर को आर्थिक नुकसान हुआ है. एक तरफ आशा वर्कर्स इस महामारी से लड़ने में सबसे अगली पंक्ति में खड़ी हैं और दूसरी तरफ आशा को आर्थिक नुकसान हो रहा है. यहां तक कि हरियाणा प्रदेश में केंद्र सरकार द्वारा इस महामारी के सर्वे के लिए घोषित ₹1000 की राशि का भी कोई पत्र जारी नहीं किया है.

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हरियाणा सरकार ने कोरोना महामारी में ड्यूटी करने वाले डॉक्टर पैरामेडिकल स्टाफ नर्स के लिए दोगुने वेतन की घोषणा की है. इस घोषणा से भी हरियाणा सरकार ने आशा वर्कर को वंचित रखा है और इस महामारी के चलते प्रदेश भर में स्वास्थ्य विभाग आशा वर्कर्स पर आशा सर्वेक्षण ऐप के माध्यम से ऑनलाइन रिपोर्ट भेजने का दबाव बना रहा है जबकि राज्य सरकार और स्वास्थ्य विभाग ने आशा वर्कर्स को कोई ऐसा उपकरण उपलब्ध नहीं करवा रखा जिससे वह इस रिपोर्ट को ऑनलाइन भेज सके. अगर सरकार ने समय रहते इन सब समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया तो आशा वर्कर्स बड़ा आंदोलन करने को मजबूर होंगी.

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