हिसार: हरियाणा-पंजाब में हर साल पराली जलाने (Straw Burning Issue) के मामले सामने आते हैं. खासतौर पर इस सीजन में अक्टूबर नवंबर महीने में प्रदूषण भी बेहद बढ़ जाता है. पिछले कई सालों से सरकार इसको लेकर कई नियम कानून बना चुकी है, लेकिन कोई भी समाधान नहीं निकल पाया है. हिसार के रहने वाले मनोज नेहरा और विजय श्योराण ने 2 सालों तक कड़ी मेहनत करके एक ऐसा प्रोजेक्ट तैयार किया है, जिससे पराली से कोयला बनाया (Straw to Coal maker machine) जा सकता है. इस कोयले को इन्होंने फॉर्मल कोल का नाम दिया है.
पराली से बनाए गए इस कोयले को लकड़ी के कोयले की जगह भी इस्तेमाल किया जा सकता है. ये कोयला बेहद सस्ते भाव 5 से 7 किलो के हिसाब से मार्केट में बेचा जा सकता है. इस कोयले का उपयोग ईट भट्टा, तंदूर, फैक्टरी में किया जा सकता है. पराली का कोयला बनाने से किसानों को पराली की जलाने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी और साथ ही उन्हें आमदनी भी होगी.
यह है तकनीक: इस तकनीक में पशुओं के गोबर में पराली को मिलाकर एक मशीन से कोयला तैयार किया जाता है. इसमें सबसे पहले पराली को ग्राइंडर में पीसा जाता है और उसके बाद उसमें 70 फीसदी पराली और लगभग 30 फीसदी पशुओं के गोबर का कंपोस्ट मिलाकर मिक्स किया जाता है. तैयार किए गए घोल को ब्रीकेटिंग मशीन के जरिए प्रेस कर छोटे-छोटे पैलेट बनाए जाते हैं, फिर इन पैलेट को कोयल के विकल्प के तौर पर उपयोग किया जाता है.
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समाधान भी और आमदनी भी: युवा किसान विजय श्योराण और मनोज नेहरा ने बताया कि जो हमने रिसर्च की है, वो किसानों के लिए बेहद लाभकारी है. उन्होंने बताया कि वह खुद इसका इस्तेमाल कर चुके हैं और 60 टन से ज्यादा कोयले का प्रोडक्शन करके, रिजल्ट जानने के लिए अलग-अलग जगह सप्लाई कर चुके हैं. जिसके परिणाम बेहद शानदार आए हैं. वहीं तकनीकी रूप से बात की जाए तो इस कोयले की कैलोरिफिक वैल्यू 5000 के करीब है, जोकि बाजार में मिलने वाले सामान्य कोयले के तुलनात्मक बेहद अच्छी है.
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इस कोयले में क्या है खास: किसान विजय श्योराण ने बताया कि कोयले में अंतर की बात की जाए तो इस तकनीक से बनाया गया कोयला और जो पारंपरिक कोयला है दोनों की कैलोरीफिक वैल्यू बराबर है, जो कोयला फिलहाल ईट भट्टों में इस्तेमाल हो रहा है उसकी कीमत 14 से 20 रुपये प्रति किलो है. इस तकनीक के जरिए कोयला बनाकर हम 7 से 8 रुपये किलो में बेच सकते हैं.
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इन किसानों को सरकार से मदद की आस: किसान विजय श्योराण ने कहा कि हम लगातार इस प्रोजेक्ट को लेकर अधिकारियों और मंत्रियों के चक्कर काट चुके हैं, लेकिन किसी प्रकार का सहयोग नहीं मिल रहा है. अगर सरकार हमारा सहयोग करती है तो किसानों से पराली हम खरीदेंगे और उसके बदले किसानों को उचित पैसे भी देंगे. अगर सरकार चाहे तो इस कोयले का उपयोग थर्मल प्लांट में भी कर सकती है और हम इस पूरे काम में सरकार की सहायता कर सकते हैं.
दोनों युवा अब तक इस प्रोजेक्ट पर लगभग 25,00,000 रुपये तक खर्च कर चुके हैं, और अब सरकार की तरफ से मदद की आस कर रहें. फिलहाल अभी तक दूसरी मशीनों को किराए पर लेकर और जुगाड़ के जरिए वह कोयले का प्रोडक्शन कर रहे हैं, लेकिन अब खुद की मशीन उन्होंने डिजाइन की है जो अगले महीने तक तैयार हो जाएगी. उनका कहना है कि अगर सरकार उन्हें सब्सिडी दे और सहयोग करें तो किसानों को काफी लाभ होगा और पराली का भी समाधान हो जायेगा.
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