हिसार: भारत देश को आजाद हुए 74 साल हो चुके हैं. इस आजाद भारत में आज भी ऐसे गांव हैं जो अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त नहीं हो पाए हैं. हम बात कर रहे हैं. हिसार के रोहनात गांव (Rohnat Village Hisar) की. 1857 की क्रांति के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करने में हिसार के पांच गांवों का अहम योगदान था. इसमें सबसे ज्यादा भागेदारी रोहनात गांव की थी. जिसका बदला लेने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) के घुड़सवार सैनिकों ने पूरे गांव को तबाह कर दिया. इसके बाद रिहायशी इलाकों को छोड़कर अंग्रेजों ने पूरे गांव की जमीन को नीलाम कर दिया.
1857 की क्रांति के दौरान अंग्रेजी शासन ने हिसार जिले पर कब्जा कर लिया. उन्होंने एक लिस्ट बनाई. इस लिस्ट में उन लोगों को शामिल किया गया, जिन्होंने विद्रोह में हिस्सा लिया. विद्रोह में हिस्सा लेने वाले लोगों को जमीन से बेदखल कर दिया. हिसार के पांच गांव के लोग जो विद्रोह में शामिल थे अंग्रेजों ने उनके गांव की नीलामी के आदेश जारी कर दिए. लाल किले में जो पत्र मिले, उनमें इस नीलामी प्रक्रिया का भी जिक्र है. अंग्रेजों ने इन 5 गांव के लोगों पर दमनकारी नीति अपनाते हुए बेहद अत्याचार किए.
यहां तक की पुट्ठी मंगल खां में तोप लगाकर रोहनात गांव को उड़ा दिया. उस समय कई लोगों की मौत हुई और कुछ जान बचाकर भागे. कुछ को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया. बाद में डिप्टी कमिश्नर विलियम ख्वाजा ने तहसीलदार को आदेश जारी किए कि इन पांचों गांवों की जमीन को नीलाम किया जाए. एक-एक करके 4 गांव की अधिकतर जमीन नीलाम कर दी गई और उसके बाद रोहनात गांव जो कि बेहद अधिक टारगेट पर था उस पूरे गांव के नीलाम करने की प्रक्रिया शुरू की गई.
13 नवंबर 1857 में सेक्रेटरी चीफ कमिश्नर पंजाब ने अपने पत्र नंबर 781 के जरिए हिसार के तहसीलदर को आदेश दिया कि रोहनात गांव के लोगों को बेदखल करके पूरे गांव की जमीन को नीलाम किया जाए. फाइनेंशल कमिश्नर पंजाब के पत्र नंबर 1076 के बाद 20 जुलाई 1858 को गांव में जाकर तहसीलदार और स्थानीय अधिकारियों ने नीलामी की प्रक्रिया शुरू की. उस दिन पूरे गांव की 20656 बीघे और 19 बिसवे जमीन में से सिर्फ 13 बीघे 10 बिसवे जमीन छोड़कर (जिसमें तलाब था और गांव बसा था) को नीलाम कर दिया गया. इस सारी जमीन को सिर्फ 8100 रुपये में 61 लोगों को बेच दिया गया. 2025 रुपये मौके पर जमा करवा दिए गए. बाकी कब्जा देने के समय जमा करवाए गए.
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इस नीलामी की रिपोर्ट में ये भी लिखा गया कि जो वृक्ष तालाब के किनारे आम रास्तों पर आराम के लिए हैं, सूखने के बाद उसके मालिक वो लोग होंगे जिन्होंने इस गांव को नीलामी में लिया है. उन दस्तावेजों में लिखा गया कि गांव के इन बागियों के पास 1 खूड़ (इंच) भी जमीन नहीं रहनी चाहिए, इन गांव के मूल निवासियों को बागी कहा जाएगा. इनके बच्चे बागी की संतान कहे जाएंगे. नीलामी की इस प्रक्रिया के बाद डिप्टी कमिश्नर हिसार ने लाहौर के कमिश्नर को इसकी रिपोर्ट भेजी.
रोहनात गांव के युवा नवनीत ने कहा कि हम आज तक भी आजाद नहीं हुए हैं क्योंकि जो अत्याचार अंग्रेजों ने हमारे पूर्वजों के साथ किए थे उन्हें आज तक भुगत रहे हैं, हमारे पूर्वजों ने इस देश के लिए बलिदान दिया और उसी की दी गई अंग्रेजों द्वारा दी गई सजा हम अभी तक भुगत रहे हैं. बलिदान तो पूरे देश ने दिया था लेकिन किसी की जमीनें तो नहीं छीनी गई थी. हमारी तो रोजी रोटी ही छीन ली थी, देश आजाद हुआ तो ये हक तो जरूर बनता था कि जिनकी जमीन छीनी गई उनकी वापस की जाए. हम अभी तक स्वतंत्रता दिवस नहीं बनाते थे नहीं तिरंगा फहराते थे. साल 2018 में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर यहां आए और यहां तिरंगा फहराया. उन्होंने हमें न्याय दिलवाने का आश्वासन दिया, लेकिन आज तक कुछ नहीं हुआ.
लंबे समय से अपने हक को पाने के लिए संघर्ष कर रहे गांव के बुजुर्ग बलवीर सिंह ने बताया कि देश को आजाद हुए 75 साल हो गए और कई सरकारें आई और गई, जो अंग्रेजों के दल्ले थे, उन्हें तो इनाम के तौर पर जमीनें लौटा दी गई, लेकिन जिन्होंने बलिदान दिया, उनकी सजा आज भी बरकरार है. ग्रामीणों ने सरकार से मांग करते हुए कहा कि हमें हमारे पुर्वजों जमीन वापस दिलाई जाए. अगर ऐसा कानूनन संभव नहीं है तो हमें किसी दूसरी जगह जमीन दी जाए. हालत ये है कि अगर हम अपनी जमीन को पैसे दे कर वापस खरीद रहे हैं, तो वो हमारे गांव के नाम से नहीं मिलती. आज भी अंग्रेजों के द्वारा बेचे लोगों के पते पर वो जमीन रिकॉर्ड में है.