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10 साल बाद भी तिरपाल में रहने को मजबूर हैं मिर्चपुर कांड के विस्थापित दलित, रिपोर्ट - hisar latest news

हिसार के मिर्चपुर गांव में 10 साल पहले हुई जातीय हिंसा का असर आज भी लोगों की जिंदगियों को धीरे-धीरे नोंच रहा है. मिर्चपुर कांड में बेघर करीब दलितों के 258 परिवार आज तिरपाल के घर बना कर रहने को मजबूर हैं.

life of mirchpur village migrant in hisar
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Published : Jan 3, 2020, 11:56 PM IST

हिसार: मिर्चपुर गांव में लगभग 10 साल पहले हुई जातीय हिंसा के बाद गांव से विस्थापित हुए परिवारों के पुनर्वास के लिए 7 जुलाई 2018 को सरकार की ओर से योजना बनाई गई. हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने हिसार के ही ढंडूर गांव में इस योजना की शुरुआत की.

मजबूरी में रह रहे लोग

योजना के लॉन्च होने के डेढ़ साल बाद भी विस्थापित लोग परेशानी के दौर से गुजर रहे हैं. हरियाणा सहित उत्तर भारत में इन दिनों तापमान लगभग शून्य डिग्री के नजदीक पहुंच चुका है लेकिन मिर्चपुर से विस्थापित हुए परिवार 10 साल बाद भी पॉलिथीन की छत वाली झुग्गी में गुजर-बसर करने को मजबूर हैं.

उजड़े 258 परिवार

योजना के तहत ढंढूर गांव में 258 परिवारों के पुनर्वास की तैयारी की गई लेकिन 1 साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी परिवारों को केवल प्लेटों की रजिस्ट्री ही मिल पाई है. योजना के तहत 4 करोड़ 56 लाख की लागत से 8 एकड़ भूमि में शुरुआत की गई. इस बस्ती का नाम दीनदयाल पुरम रखा गया.

10 साल बाद भी तिरपाल में रहने के मजबूर हैं मिर्चपुर कांड के विस्थापित दलित, रिपोर्ट

कुत्ते को पत्थर मारने से बढ़ा विवाद

गौरतलब है कि 2010 में कुत्ते को पत्थर मारने से शुरू हुए विवाद ने जातीय हिंसा का रूप ले लिया. इस दौरान गांव में 70 साल के दलित बुजुर्ग और उसकी बेटी को जिंदा जला दिया गया था. इसके बाद गांव के दलितों ने पलायन कर लिया और वो तंवर फार्म हाउस में रहने लगे. जब ये प्रकरण हुआ तब मामले पर सियासत भी तेज हो गई. राहुल गांधी ने भी मिर्चपुर गांव का दैरा किया था. इस प्रकरण के बाद जांच चली, केस चला और कोर्ट ने 20 दोषियों को उम्रकैद की सजा भी सुनाई गई थी.

तंबू में रहने को मजबूर लोग

गांव के ही बुजुर्ग गुलाब सिंह का कहना है कि सर्दी में उन्हें फटे हुए तिरपाल की झोपड़ियों में रहना पड़ रहा है. उनके लिए ना तो पीने के पानी की कोई सुविधा है और ना ही बच्चों की पढ़ाई को लेकर कोई व्यवस्था की गई है. वहीं पुनर्वास के लिए भी कोई व्यवस्था अभी तक नहीं की गई है. लगभग 7.5 एकड़ जमीन को समतल कर केवल बांस गाढ़ दिए गए हैं.

ये भी पढे़ं:-मिर्चपुर में फिर तनाव की स्थिति, मुर्गी खरीदने को लेकर भिड़े दो पक्ष

ठंड में परेशान विस्थापित

वहीं लिली नाम की महिला का कहना है कि ठंड में इन झोपड़ियों में रहने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. ठंड में पैर मोड़कर सोने को मजबूर हैं. उन्होंने कहा कि सरकार प्लाट देने के नाम पर केवल दिलासा दे रही है. बच्चों को पढ़ने के लिए भी काफी दूर जाना पड़ता है जिससे कुछ बच्चे भी नहीं पढ़ पा रहे हैं. वहीं एक सरिता नाम की महिला का कहना है कि प्लाट के लिए एक-एक किस्त 830 रुपये की भी जमा करवाई जा चुकी है.

हिसार: मिर्चपुर गांव में लगभग 10 साल पहले हुई जातीय हिंसा के बाद गांव से विस्थापित हुए परिवारों के पुनर्वास के लिए 7 जुलाई 2018 को सरकार की ओर से योजना बनाई गई. हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने हिसार के ही ढंडूर गांव में इस योजना की शुरुआत की.

मजबूरी में रह रहे लोग

योजना के लॉन्च होने के डेढ़ साल बाद भी विस्थापित लोग परेशानी के दौर से गुजर रहे हैं. हरियाणा सहित उत्तर भारत में इन दिनों तापमान लगभग शून्य डिग्री के नजदीक पहुंच चुका है लेकिन मिर्चपुर से विस्थापित हुए परिवार 10 साल बाद भी पॉलिथीन की छत वाली झुग्गी में गुजर-बसर करने को मजबूर हैं.

उजड़े 258 परिवार

योजना के तहत ढंढूर गांव में 258 परिवारों के पुनर्वास की तैयारी की गई लेकिन 1 साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी परिवारों को केवल प्लेटों की रजिस्ट्री ही मिल पाई है. योजना के तहत 4 करोड़ 56 लाख की लागत से 8 एकड़ भूमि में शुरुआत की गई. इस बस्ती का नाम दीनदयाल पुरम रखा गया.

10 साल बाद भी तिरपाल में रहने के मजबूर हैं मिर्चपुर कांड के विस्थापित दलित, रिपोर्ट

कुत्ते को पत्थर मारने से बढ़ा विवाद

गौरतलब है कि 2010 में कुत्ते को पत्थर मारने से शुरू हुए विवाद ने जातीय हिंसा का रूप ले लिया. इस दौरान गांव में 70 साल के दलित बुजुर्ग और उसकी बेटी को जिंदा जला दिया गया था. इसके बाद गांव के दलितों ने पलायन कर लिया और वो तंवर फार्म हाउस में रहने लगे. जब ये प्रकरण हुआ तब मामले पर सियासत भी तेज हो गई. राहुल गांधी ने भी मिर्चपुर गांव का दैरा किया था. इस प्रकरण के बाद जांच चली, केस चला और कोर्ट ने 20 दोषियों को उम्रकैद की सजा भी सुनाई गई थी.

तंबू में रहने को मजबूर लोग

गांव के ही बुजुर्ग गुलाब सिंह का कहना है कि सर्दी में उन्हें फटे हुए तिरपाल की झोपड़ियों में रहना पड़ रहा है. उनके लिए ना तो पीने के पानी की कोई सुविधा है और ना ही बच्चों की पढ़ाई को लेकर कोई व्यवस्था की गई है. वहीं पुनर्वास के लिए भी कोई व्यवस्था अभी तक नहीं की गई है. लगभग 7.5 एकड़ जमीन को समतल कर केवल बांस गाढ़ दिए गए हैं.

ये भी पढे़ं:-मिर्चपुर में फिर तनाव की स्थिति, मुर्गी खरीदने को लेकर भिड़े दो पक्ष

ठंड में परेशान विस्थापित

वहीं लिली नाम की महिला का कहना है कि ठंड में इन झोपड़ियों में रहने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. ठंड में पैर मोड़कर सोने को मजबूर हैं. उन्होंने कहा कि सरकार प्लाट देने के नाम पर केवल दिलासा दे रही है. बच्चों को पढ़ने के लिए भी काफी दूर जाना पड़ता है जिससे कुछ बच्चे भी नहीं पढ़ पा रहे हैं. वहीं एक सरिता नाम की महिला का कहना है कि प्लाट के लिए एक-एक किस्त 830 रुपये की भी जमा करवाई जा चुकी है.

Intro:एंकर - हिसार के मिर्चपुर गांव में लगभग 10 साल पहले हुई जातीय हिंसा के बाद गांव से विस्थापित हुए परिवारों के पुनर्वास के लिए 7 जुलाई 2018 को हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने हिसार के ही ढंडूर गांव में पुनर्वास हेतु बनाई गई योजना की लॉन्चिंग की। योजना के लॉन्च होने के डेढ़ साल बाद भी विस्थापित लोग परेशानी भरे दौर से गुजर रहे हैं। हरियाणा सहित उत्तर भारत में इन दिनों तापमान लगभग शून्य डिग्री के नजदीक पहुंच चुका है लेकिन मिर्चपुर से विस्थापित हुए लगभग 100 से ज्यादा परिवार 10 साल बाद भी पॉलिथीन की छत वाली झुग्गी में गुजर-बसर करने को मजबूर हैं।

योजना के तहत ढंढूर गांव में 258 परिवारों के पुनर्वास की तैयारी की गई लेकिन 1 साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी परिवारों को केवल प्लेटों की रिजिस्ट्रीयां ही मिल पाई हैं। योजना के तहत 4 करोड़ 56 लाख की लागत से 8 एकड़ भूमि में शुरुआत की गई। इस बस्ती का नाम दीनदयाल पुरम रखा गया।

गौरतलब है कि 2010 में कुत्ते को पत्थर मारने से शुरू हुए विवाद ने जातीय हिंसा का रूप ले लिया। इस दौरान गांव में 70 साल के दलित बुजुर्ग और उसकी बेटी को जिंदा जला दिया गया था। इसके बाद गांव के दलितों ने पलायन कर लिया और वह तंवर फार्म हाउस में रहने लगे। जब यह प्रकरण हुआ तब मामले पर सियासत भी तेज हुई, राहुल गांधी भी मिर्चपुर पहुंचे थे। इस प्रकरण के बाद जांच चली, केस चला और हाल ही में आरोपियों को कोर्ट द्वारा सजा भी सुनाई गई।

वीओ - बुजुर्ग गुलाब सिंह ने बताया कि सर्दी में उन्हें फटे हुए तिरपाल की झोपड़ियों में रहना पड़ रहा है। उनके लिए ना तो पीने के पानी की कोई सुविधा है और ना ही बच्चों की पढ़ाई को लेकर कोई व्यवस्था की गई है। वहीं पुनर्वास के लिए भी कोई व्यवस्था अभी तक नहीं की गई है। उन्होंने कहा कि लगभग 7.5 एकड़ जमीन को समतल कर केवल बांस गाड़े गए हैं। गुलाब सिंह ने बताया कि लगभग 120 परिवार इसी प्रकार जीवन यापन करने को मजबूर हैं।

बाइट - गुलाब सिंह।




Body:वीओ - महिला लिली ने बताया कि ठंड में इन झोपड़ियों में रहने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। ठंड में पैर मोड़कर सोने पर मजबूर हैं। उन्होंने कहा कि सरकार प्लाट देने के नाम पर केवल दिलासा दे रही है। बच्चों को पढ़ने के लिए भी काफी दूर जाना पड़ता है जिससे कुछ बच्चे ही पढ़ पा रहे हैं वहीं अन्य आजीविका के लिए काम करते हैं।

बाइट - लिली।

वीओ - महिला सरिता ने बताया कि लगभग 120 परिवार यहां रह रहे हैं। बुजुर्गो, बच्चों सहित सभी को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। उन्होंने बताया कि प्लाटों के लिए एक-एक किस्त 830 रुपए की भी जमा करवाई जा चुकी है। इसके बाद भी उन्हें किसी भी तरह की जानकारी नहीं मिली है।

बाइट - सरिता।


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