हिसार: कृषि क्षेत्र में आए दिन नई खोज कृषि को और भी सुगम और सरल बना रही है. नई-नई तकनीकें अब खेती में प्रयोग की जा रही हैं. नई तकनीक की बदौलत अब पहले की पारंपरिक खेती की तरह मिट्टी, ढेर सारा पानी और जमीन की जरूरत नहीं पड़ती है. इसी तरह की एक तकनीक है हाइड्रोपोनिक्स फार्मिंग. इस खेती में मिट्टी की जरूरत नहीं पड़ती है. बिना मिट्टी के पानी में सबसे ज्यादा और अच्छी तरीके से पैदा होने वाली फसल है सलाद पत्ता यानी (Lettuce Cultivation) लेट्यूस के फसल की मार्केट वैल्यू बहुत ज्यादा है. ज्यादातर इसका प्रयोग होटलों में बड़े रेस्टोरेंट में किया जाता है.
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार (Haryana Agricultural University Hisar) के वैज्ञानिक डॉ अरविंद मलिक ने बताया कि अब बिना मिट्टी और जमीन के भी सब्जी की खेती संभव है. हाइड्रोपोनिक तकनीक के जरिए सलाद पत्ता वह अन्य सब्जियों की खेती आसानी से की जा सकती है. इसमें दो तकनीक मुख्य हैं. सॉयललेस मीडिया व डायरेक्ट पानी. इसका मुख्य फायदा यह है कि जिन लोगों के पास जमीन नहीं है या फिर जमीन में नमक ज्यादा है. ऐसे में वह इस तकनीक के जरिए इसकी की खेती कर सकते हैं. अब तक के रिसर्च में यह निकल कर सामने आया है कि लेट्यूस या सलाद पत्ता की फसल इस तकनीक से बड़ी आसानी से की जा सकती है और इसकी उपज भी बेहद बढ़िया होती है. किसान चाहे तो इसका उत्पादन कर सकते हैं. यह अच्छे दाम में मार्केट में बिक जाता है.
क्या है यह तकनीक
आसान भाषा में कहें तो हाइड्रोपोनिक्स तकनीक में मिट्टी की जरूरत नहीं होती है. पौधे के लिए सभी आवश्यक खनिज और उर्वरक पानी के माध्यम से दी जाती है. फसल उत्पादन के लिए सिर्फ 3 चीजें पानी, पोषक तत्व और प्रकाश की जरूरत है. यदि ये 3 चीजों हम बिना मिट्टी के उपलब्ध करा दें तो पौधे फल-फूल सकते हैं. इसी को हाइड्रोपोनिक्स तकनीक कहते हैं. हाइड्रोपोनिक तकनीक में मुख्य मॉडल डच बकेट सिस्टम- इस विधि में पानी से भरी हुई बकेट पर पौधा ढक्कन से सपोर्ट देकर खड़ा किया जाता है. इस पानी में बिजली के मोटर के जरिए हवा चलती रहती है जिससे खड़े हुए पानी में ऑक्सीजन की कमी नहीं आती. न्यूट्रिएंट्स फिल्म तकनीक इस तकनीक में पानी लगातार पाइप में चलता रहता है और पौधे की जड़ें उस में डूबी रहती है. इसे एक पाइपलाइन पर इंस्टॉल किया जाता है.
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इस तकनीक की दूसरी खास बात यह है कि हाइड्रोपोनिक ग्रो टॉवर्स - इस तकनीक में प्लास्टिक के पाइप से चैंबर बनाया जाता है. इसे कोको-पिट कहा जाता है. इसमें पौधे को लगाया जाता है. समय अनुसार पानी छोड़ा जाता है जिससे पौधे को जितनी जरूरत हो उतना पानी सोख लेता है.
हाइड्रोपोनिक खेती के लाभ: अगर हाइड्रोपोनिक खेती सही तरीके से की जाए तो 90 प्रतिशत तक पानी की बचत की जा सकती है. पारंपरिक खेती की तुलना में इस विधि से खेती करके कम जगह में अधिक पौधे उगाए जा सकते हैं. पोषक तत्व बर्बाद नहीं होते हैं. उपयोग किए जाने वाले पोषक तत्व पौधों के लिए आसानी से उपलब्ध होते हैं. इस तकनीक में पौधे मौसम, जानवरों या किसी अन्य बाहरी, जैविक और अजैविक कारकों से प्रभावित नहीं होते हैं.
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ये फसलें उगाई जा सकती हैंइस तकनीक के माध्यम से छोटे पौधों की फसलों की खेती की जा सकती है. इनमें गाजर, शलजम, खीरा, मूली, आलू, शिमला मिर्च, मटर, मिर्च, स्ट्रॉबेरी, ब्लैकबेरी, ब्लूबेरी, तरबूज, खरबूजा, अनानास, अजवाइन, तुलसी, पालक, धनिया, शिमला मिर्च, ब्रोकली, पुदीना, स्ट्रॉबेरी, ब्लूबेरी, टमाटर शामिल हैं. ककड़ी, जड़ी बूटी आदि शामिल हैं.
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