गुरुग्रामः लोकसभा चुनाव के घोषणा पत्र में जहां केंद्र सरकार द्वारा साल 2022 तक किसानों की आय दो गुना करने की बात कही जा रही थी. वहीं केंद्र सरकार के घोषणा पत्र की जमीनी हकीकत हरियाणा के सोहना की अनाज मंडी में देखने को मिली है.
जहां पर किसानों की फसलों की सरकारी खरीद ही नहीं हो रही है. अधिकारियों के मुताबिक यहां पर जो फसल होती है सरकार उसकी खरीदी नहीं करती. इसलिए प्राइवेट व्यापारी ही इसे कौड़ियों के भाव खरीद रहे हैं.
नहीं हो रही सरकारी खरीद
हरियाणा के किसानों को अपनी धान की फसल की बिक्री को लेकर काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. धान की बिक्री को लेकर किसान पिछले कई दिनों से मंडियों में ठहरे हुए हैं, लेकिन उनका धान नहीं बिक रहा है. वहीं सोहना के किसानों की फसलों की तो सरकारी खरीद ही शुरू नहीं हुई है.
किसानों का कहना है कि सरकार किसानों को बर्बाद करने का काम कर रही है क्योंकि जो धान पिछले साल 3 हजार से ऊपर के रेट में बिक रहा था. इस साल वही धान 2300 रुपये तक के दाम पर सिमटकर रह गया है.
फसल के दामों में गिरावट
पिछले साल के मुकाबले इस साल किसानों की धान की फसल आधे दामों पर खरीदी जा रही है. किसान की कपास की फसल के दाम में भी पिछली साल की अपेक्षा गिरावट आई है. किसानों ने बताया कि पिछले कई सालों से इस धान की कीमत बाजार में 3400 रुपये से लेकर 3500 रुपये क्विंटल मिल रही थी लेकिन मंडियों में किसानों को इस बार मात्र 2200 रुपये से लेकर 2400 तक ही दाम मिल रहे हैं. वहीं कपास के दाम 5500 रुपये प्रति क्विंटल थे जो इस बार गिरकर 5000 पर रह गए हैं. सोहना के किसानों का कहना है कि सरकार ने उन्हें बर्बाद करने का काम किया है.
इस फसल की नहीं होती सरकारी खरीद- अधिकारी
वहीं किसानों के इस गंभीर मुद्दे को लेकर जब हमने मार्किट कमेटी के सचिव से बात की तो उनका जवाब सुनकर हमारे भी होश उड़ गए. उन्होंने बताया कि जिस धान की फसल यहां पर होती है, उसको सरकार नहीं खरीदती.
उन्होंने कहा कि किसानों की कपास भी सरकार द्वारा नहीं खरीदी जा रही है. उन्होंने बताया कि प्राइवेट व्यापारी ही किसानों के धान और कपास को खरीद रहे हैं. यानी जो भी किसान अपनी धान की फसल लेकर सरकार के भरोसे यहां बेचने आ रहे हैं उनकी फसल खरीद प्राइवेट व्यापारियों के भरोसे है.
व्यापारियों की बल्ले-बल्ले!
गौरतलब है कि सोहना अनाज मंडी में हरियाणा सरकार द्वारा किसानों की धान और कपास की खरीद नहीं की जा रही है. जिसके चलते व्यापारी मनमर्जी तरीके से ओने-पोने दामो में किसान की धान और कपास की फसल को खरीद रहे है.
सरकार के इस कदम से एक ओर जहां व्यापारियों की बल्ले-बल्ले हो रही है तो वहीं धरतीपुत्रों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है क्योंकि उन्हें उनकी मेहनत से उगाई गई फसल को व्यापारी के मन मुताबिक दामों में बेचना पड़ रहा है.
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