फतेहाबादः मुख्यमंत्री के वादे और आश्वासन के बाद भी आज तक फतेहाबाद की महिलाएं चूल्हे पर खाना बनाने को मजबूर हैं. महिलाओं का कहना है कि मुख्यमंत्री ने वादा तो जरूर किया लेकिन अभी तक पूरा नहीं कर पाए हैं. महिलाओं का आरोप है कि उन्हें रैली में भीड़ जुटाने के लिए गैस सिलेंडर का झूठा आश्वासन देकर बुलाया गया.
'सीएम के वादे झूठे'
ईटीवी भारत की टीम ने मुख्यमंत्री के इस वादे की जब जमीनी स्तर पर पड़ताल की तो पता चला कि वंचित परिवार अभी भी चूल्हे पर ही रोटियां बनाकर खा रहे हैं. परिवार की महिलाएं और लोग सीएम मनोहर लाल खट्टर के इस वादे को झूठा और खोखला बता रहे हैं. उनका कहना है कि एक साल से वो सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन आज तक उन्हें ये सुविधा मुहैया नहीं करवाई गई.
महिलाओं का कहना
सालों के गैस सिलेंडर के इंतजार में बैठीं हरदो देवी और कमला देवी ने सरकारी अधिकारियों पर लापरवाही के आरोप लगाए हैं. उनका कहना है कि अधिकारियों की लापरवाही की मार उन्हें झेलनी पड़ रही है. यही कारण है कि आज भी फतेहाबाद की महिलाएं चूल्हे पर खाना बना रही हैं.
अधिकारियों का दावा
खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के अधिकारी वीरेंद्र सिंह ने कहा कि इस संबंध में वे संबंधित गैस कंपनी और गैस एजेंसी को विभाग की ओर से रिमाइंडर आदेश जारी कर देंगे. उन्होंने कहा कि जल्द से जल्द महिलाओं को सुविधाएं मुहैया करवा दी जाएंगी.
मुख्यमंत्री का वादा
दरअसल, मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा था कि महिलाओं को गोस्से और लकड़ियां जलाने की जरुरत नहीं पड़ेगी क्योंकि अब सबको गैस सिलेंडर मिलेंगे. मुख्यमंत्री ने फतेहाबाद में आयोजित एक रैली के दौरान जिले की महिलाओं से पूछा कि आपको गैस सिलेंडर मिला है तो 10-12 महिलाओं ने हाथ खड़े कर दिए और कहा कि उन्हें उपभोक्ता गैस सिलेंडर नहीं मिला.
'डीसी के घर से उठा ले जाना सिलेंडर'
इसके बाद मुख्यंमत्री मनोहर लाल खट्टर ने जनसभा में ही फतेहाबाद के डीसी को आदेश दे दिए कि इन महिलाओं को 48 घंटे के अंदर यानी दो दिन के अंदर गैस उपभोक्ता सिलेंडर मिल जाना चाहिए. इसी दौरान सीएम ने ग्रामीणों से कहा कि अगर आपको गैस सिलेंडर 48 घंटे में न मिले तो तुम सब लोग डीसी के घर से गैस सिलेंडर उठाकर ले जाना.
ये है जमीनी हकीकत!
इस पूरे मामले पर सवाल ये है कि मुख्यमंत्री ने कार्यक्रम के मंच से जिस दमदार तरीके से वंचित परिवारों को योजना का लाभ देने का दम भरा. असल में जमीनी स्तर पर अधिकारी केवल कागजी कार्रवाई तक ही सीमित रहे. 48 घंटे तो छोड़िए, वंचित परिवारों तक गैस सिलेंडर पहुंचाने की ये प्रक्रिया 17 अगस्त को 1 सप्ताह बीत जाने के बाद भी पूरी नहीं हो पाई और वंचित परिवार आज भी चूल्हे पर ही लकड़ियां जलाकर धुएं में खाना पकाने को मजबूर हैं.