फरीदाबाद: देश के लिए लाखों वीर जवानों ने सीमा पर हंसते-हंसते अपनी जान दे दी, लेकिन देश ने उनके लिए क्या किया ये सोचने वाली बात है. आज भी हजारों जवानों की शहादत की अनदेखी की जा रही है. ऐसे ही 1965 में भारत-पाकिस्तान के युद्ध में शहीद हुए फरीदाबाद (Faridabad) के गांव सुनपेड निवासी शहीद विक्रम सिंह की शहादत और उनके शौर्य को भुला दिया गया. विक्रम सिंह के परिवार के मुताबिक कई नेताओं ने उन्हें आश्वासन दिया कि उनके गांव में एक शहीद स्मारक बनाया जाएगा, लेकिन वो वादे ही बस रह गए. नेता आए और चले गए, लेकिन परिवार की मांग (Martyr Vikram Singh family demand) नहीं पूरी हुई.
शहीद विक्रम सिंह का जन्म गांव सुनपेड़ के किसान भूरू सिंह के परिवार में हुआ था. और 10वीं तक पढ़े. फिर 12 जुलाई-1963 को सेना की कुमाऊं रेजीमेंट में भर्ती हुए. आठ सितंबर-1965 को पाकिस्तान से युद्ध (1965 INDIA-PAKISTAN WAR) शुरू हो गया. उन्हें भी युद्ध में भेज दिया गया, वे सियालकोट सेक्टर पाकिस्तान में तैनात थे. उन्होंने वहां पर आमने-सामने पाकिस्तानी सैनिकों से जमकर लड़ाई लड़ी और सीने पर गोली खाई. गोली लगने से वे मौके पर ही मातृभूमि पर बलिदान हो गए.
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विक्रम सिंह के शहीद होने के बाद से ही उनका परिवार चाहता था कि उनकी प्रतिमा या शहीद स्मारक गांव में बने, लेकिन इतना समय बीत जाने के बाद भी आज तक कोई शहीदी स्मारक नहीं बन पाया है. परिवार के लोगों ने शहीदी स्मारक बनवाने के लिए हर संभव प्रयास किया, लेकिन नेताओं और अधिकारियों के चक्कर लगाने के बाद भी सिर्फ आश्वासन के उनको कुछ नहीं मिला. शहीद के बेटे ने बताया कि वह चाहते हैं कि उनके पिता की शहीदी स्मारक गांव में बने ताकि युवाओं को प्रेरणा मिल सके.
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