फरीदाबाद: देश में जब भी कारगिल युद्ध का जिक्र (Kargil Vijay Diwas ) होता है तब उन शहीदों का जिक्र बड़े गर्व के साथ होता है, जिन्होंने इस लड़ाई में देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी. इन्हीं में से एक हैं पृथला के सोफता गांव के जाकिर हुसैन (Martyr Zakir Hussain). जिनकी शहादत के किस्से बड़े गर्व से उनके गांव में सुनाए जाते हैं. परिजनों ने बताया कि साल 1988 में जाकिर सेना में भर्ती हुए. जाकिर हुसैन भारतीय सेना में लांस नायक थे.
जाकिर को भारतीय सेना में ग्रेनेडियर्स में शामिल किया गया था. आज भी उनकी पत्नी उन्हें याद कर भावुक हो जाती हैं. शहीद जाकिर हुसैन के बेटे अब्दुल ने बताया कि जिस समय उनके पिताजी शहीद हुए उनकी उम्र 9 साल के करीब थी और आज भी उन्हें वो समय याद है,जब उनके पिताजी को घर लाया गया था.उन्होंने कहा कि वो अपने बच्चों को अपने पिताजी की वीरता के बारे में बताते हैं और उन का छोटा भाई नवाज शरीफ आर्मी के लिए तैयारी कर रहा है.
3 जुलाई 1999 को जब कारगिल युद्ध में लड़ाई करने का ऑर्डर आया, तो उस समय शाम हो चुकी थी. 22 फौजियों की टीम पहाड़ी पर जब दुश्मन से 1 किमी की दूरी पर पहुंची तो फायरिंग शुरू हो गई. इसी दौरान जाकिर हुसैन ने सटीक निशाना लगाते हुए एक पाकिस्तानी सिपाही की आंख में गोली मार दी. गोली मारने के बाद जैसे ही वो चट्टान की ओट से बाहर निकले, दुश्मन की एक गोली सीधे उनके माथे में लगी और उन्हें वहीं पर दम तोड़ दिया. उनके बेटे ने ईटीवी भारत के साथ यादें साझा की.
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जाकिर हुसैन की शादी साल 1982 में हुई और 1988 में वो सेना में भर्ती हो गए. साल 1999 में वो शहीद हो गए. जाकिर के सबसे छोटे बेटे नवाज शरीफ तो उनका चेहरा भी नहीं देखा पाए. आज भी उनकी कमी परिवार को महसूस होती है, लेकिन उनकी शहादत पर परिवार को ही नहीं बल्कि पूरे गांव को गर्व है. जाकिर की पत्नी का सपना है कि वो छोटे बेटे को आर्मी में भेजना चाहती हैं. बता दें कि 26 जुलाई 1999 को भारत ने कारगिल युद्ध में विजय हासिल की थी.